वक्फ इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं, यह एक प्रकार का दान है: सुप्रीम कोर्ट में केंद्र का बयान

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को केंद्र सरकार ने स्पष्ट रूप से कहा कि वक्फ एक धार्मिक कर्तव्य नहीं, बल्कि एक प्रकार का दान है और इसे इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं माना जा सकता। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत को बताया कि वक्फ बोर्ड केवल धर्मनिरपेक्ष कार्यों का निर्वहन करते हैं, और इनका प्रबंधन मंदिरों की तरह पूरी तरह धार्मिक नहीं होता। इसलिए इन्हें किसी भी धर्म का व्यक्ति संभाल सकता है।

मेहता ने कहा, वक्फ इस्लामी परंपरा में है, लेकिन यह इस्लाम का मूल तत्व नहीं है। यह मात्र दान की एक व्यवस्था है। जैसे हिंदुओं में 'दान', ईसाइयों में चैरिटी और सिखों में सेवा की परंपरा होती है, वैसे ही वक्फ भी एक समान विचार है।

यह बयान मुस्लिम पक्ष की दलीलों के एक दिन बाद आया, जहां सॉलिसिटर जनरल ने तर्क दिया कि केंद्र सरकार को कानूनी रूप से यह अधिकार है कि वह 'वक्फ-बाय-यूजर' सिद्धांत के तहत घोषित संपत्तियों को वापस ले सके, यदि वे सरकारी जमीन हों।

उन्होंने जोर देते हुए कहा, कोई भी व्यक्ति सरकारी जमीन पर अधिकार नहीं जता सकता। सुप्रीम कोर्ट का स्पष्ट फैसला है कि यदि कोई संपत्ति सरकारी है, तो सरकार उसे बचाने का पूरा हक रखती है, भले ही वह वक्फ घोषित क्यों न हो।

गौरतलब है कि 'वक्फ-बाय-यूजर' का प्रावधान, जिसे नए संशोधित कानून में हटाया गया है, किसी संपत्ति को लंबे समय तक धार्मिक या सामाजिक उपयोग में आने पर बिना दस्तावेजों के भी वक्फ घोषित करने की अनुमति देता था।

सुनवाई के दौरान तुषार मेहता ने यह भी स्पष्ट किया कि 'वक्फ-बाय-यूजर' कोई मौलिक अधिकार नहीं है। उन्होंने कहा, अब यह प्रावधान केवल तीन स्थितियों में मान्य होगा — अगर संपत्ति रजिस्टर्ड है, वह निजी है, या वह सरकार की है।

केंद्र ने अदालत को यह भी बताया कि वक्फ कानून में किए गए नए संशोधन उन समस्याओं को हल करने की कोशिश हैं, जो ब्रिटिश काल से लेकर अब तक अनसुलझी थीं।

मेहता ने अदालत को बताया, हम 1923 से चली आ रही इस गड़बड़ी को दूर कर रहे हैं। हर पक्ष की राय सुनी गई है। कुछ याचिकाकर्ता पूरे मुस्लिम समुदाय का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकते। हमें 96 लाख प्रतिक्रियाएं प्राप्त हुईं और संसद की संयुक्त समिति (JPC) ने 36 बैठकें कीं।

इस बीच, मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि संसद से पारित किसी भी कानून को संवैधानिक माना जाता है, जब तक कि कोई स्पष्ट और गंभीर मामला न पेश किया जाए।

मुख्य न्यायाधीश बी आर गवई ने याचिका पर सुनवाई के दौरान वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल से कहा, हर कानून के पीछे संवैधानिकता की मान्यता होती है। अंतरिम राहत के लिए याचिकाकर्ता को बहुत ठोस और स्पष्ट मामला बनाना होगा।

केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से आग्रह किया है कि सुनवाई को तीन मुख्य बिंदुओं तक सीमित रखा जाए — 'वक्फ-बाय-यूजर' का प्रावधान, केंद्रीय व राज्य वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति, और वक्फ के रूप में घोषित सरकारी जमीन की पहचान।