लगातार मिलती हार के कारण टूट गए थे जितिन प्रसाद, कांग्रेस से हो चुका था मोहभंग!

2022 के यूपी विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस को आज बुधवार को बड़ा झटका लगा है। राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के 3 करीबी साथियों में से एक रहे जितिन प्रसाद (Jitin Prasada) ने पार्टी छोड़ बीजेपी का दामन थाम लिया है। केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल और भाजपा सांसद अनिल बलूनी की मौजूदगी में प्रसाद ने पार्टी मुख्यालय में आयोजित एक संवाददाता सम्मेलन के दौरान भाजपा की सदस्यता ग्रहण की। कांग्रेस के बड़े ब्राह्मण चेहरों में से एक जितिन प्रसाद पिछले कई दिनों से पार्टी हाईकमान से नाराज थे। वह यूपी कांग्रेस के कुछ नेताओं से अपनी नाराजगी जाहिर भी कर चुके थे, लेकिन फायदा नहीं हुआ। ज्योतिरादित्य सिंधिया के बाद कांग्रेस सांसद राहुल गांधी की टीम से जितिन प्रसाद के रूप में एक और बेहद अहम विकेट गिरा है।

जितिन प्रसाद का कांग्रेस से अलग होना, कोई चौंकाने वाली बात नहीं है। इसकी पटकथा वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव के बाद ही लिखनी शुरू हो गई थी। उत्तर प्रदेश की राजनीति में कांग्रेस के ब्राह्मण चेहरे के रूप में अहम भूमिका निभाने वाले जीतेंद्र प्रसाद के बेटे जितिन प्रसाद का राहुल गांधी का साथ छोड़ना सियासी गलियारों में चर्चा का विषय जरूर है।

दरअसल, कुंवर जितिन प्रसाद उत्तर प्रदेश के शाही परिवार से ताल्लुक रखने वाले कांग्रेस के वो युवा चेहरे हैं, जिन्होंने दो बार लोकसभा चुनाव जीत कर मनमोहन सिंह की कैबिनेट में मानव संसाधन विकास मंत्रालय और पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस जैसे महत्वपूर्ण मंत्रालय में राज्यमंत्री का दायित्व संभाला। लेकिन जैसे ही उत्‍तर प्रदेश कांग्रेस में प्रियंका गांधी की एंट्री हुई है, तब से जितिन प्रसाद की अहमियत पार्टी की नजरों कम होती नजर आने लगी। प्रियंका के आने के बाद यूपी प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार उर्फ लल्लू बनाए गए। कई अहम समितियों में भी जितिन प्रसाद का नाम नदारद रहा। इसके बाद जितिन प्रसाद को पश्चिम बंगाल का चुनाव प्रभारी बना दिया था। जितिन प्रसाद के लिए ये संकेत काफी था। उन्‍हें उत्‍तर प्रदेश की राजनीति से दूर करने का प्रयास किया जा रहा था।

साल 2014 में केन्द्र से कांग्रेस सरकार की विदाई के साथ ही जितिन के भी दुर्दिन शुरू हो गये। वर्ष 2014 का चुनाव वे धौरहरा से हार गये। इतनी बुरी हार हुई कि जितिन सीधे चौथी पोजिशन पर लुढ़क गये। लोकसभा में मिली करारी हार के बाद जितिन ने 2017 का यूपी विधानसभा का चुनाव तिलहर से लड़ा। यहां भी वे मात खा गये। इस हार ने तो जितिन को रुला दिया। तिलहर मुस्लिम और ब्राह्मण बाहुल्य सीट है। यहां भी वे जीत नहीं पाये। फिर 2019 में भी जितिन धौरहरा से लोकसभा का चुनाव लड़े, लेकिन फिर हार गये। इस तरह 2004 और 2009 में लगातार दो बार सांसदी जीतने के बाद जितिन तीन बार लगातार हारे। लगातार मिलती हार के कारण पार्टी में साख भी गिरती गयी।

कांग्रेस पर किया तीखा प्रहार

बुधवार को बीजेपी ज्वाइन करने के बाद जितिन प्रसाद ने कांग्रेस पर तीखा हमला बोला। ज‍ित‍िन प्रसाद ने बताया क‍ि बीजेपी में शाम‍िल होने का फैसला बहुत सोच समझकर ल‍िया है। ज‍िस दल (कांग्रेस) में था वह मुझे महसूस होने लगा क‍ि हम लोग राजनीति करने लगे हैं। राजनीत‍िक एक माध्‍यम या दल एक माध्‍यम है लेक‍िन जब आप अपने लोगों के हितों की रक्षा नहीं कर सकते। अगर उनके ल‍िए काम नहीं कर पाते हैं तो आपका उस दल में और राजनीत‍ि में रहने का क्‍या मकसद? यहीं मेरे मन में आया क‍ि आप चाहे देश में हो, राज्‍य में हो या ज‍िले में हो अगर आप अपने लोगों का काम नहीं आ सकते, उनकी सहायता नहीं कर सकते हो तो फि‍र क्‍या फायदा। यहीं बात मुझे महसूस होने लगा था क‍ि मैं वह काम कांग्रेस पार्टी में नहीं कर पा रहा हूं।

जितिन प्रसाद ने कहा कि पिछले 8-10 वर्षों में मैंने महसूस किया है कि अगर कोई एक पार्टी है जो वास्तव में राष्ट्रीय है, तो वह भाजपा है। अन्य दल क्षेत्रीय हैं, लेकिन यह राष्ट्रीय दल है, आज देश जिस स्थिति से गुजर रहा है, अगर कोई राजनीतिक दल या नेता देश के हित के लिए खड़ा है, तो वह भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं। उन्‍होंने कहा क‍ि प्रधानमंत्री नए भारत का न‍िर्माण कर रहे हैं और अब उसमें एक छोटा सा योगदान मुझे भी करने को म‍िलेगा। यह योगदान भारत के प्रत‍ि और आने वाले पीढ़ि‍यों के प्रति होगा।

जितिन प्रसाद का यह बयान काफी अहम है। जिस तरह से कोरोना काल में केंद्र और प्रदेश की सरकार पर विपक्ष हमलावर था, उससे कहीं न कहीं बीजेपी को संजीवनी मिलेगी।

यूपी की राजनीति में ब्राह्मणों की अहम भूमिका

जानकार बताते हैं कि यूपी की राजनीति में ब्राह्मण मतदाता हमेशा से ही अहम भूमिका निभाते रहे हैं। ऐसे में जितिन प्रसाद का बीजेपी में शामिल होना अहम है। कहा जा रहा है कि उन्हें पार्टी में महत्वपूर्ण भूमिका दी जाएगी।

हालांकि, कांग्रेस जितिन प्रसाद के जाने को बड़ी बात नहीं मान रही। कांग्रेस प्रवक्ता विवेक बंसल कहते हैं कि जो अपने बलबूते एक चुनाव नहीं जीत सकते उनके जाने का कोई मतलब नहीं। कांग्रेस सत्ता में नहीं है तो ऐसा उन्होंने किया।