UP Election Result: 2007 में भारी बहुमत के साथ सरकार बनाने वाली बसपा 2022 में सिमटकर एक विधायक पर आ गई

5 राज्यों के विधानसभा चुनाव के नतीजों में BJP चार राज्यों में सत्ता बरकरार रखने में कामयाब रही है। यूपी, उत्तराखंड और मणिपुर में वह लगातार दूसरी बार सत्ता पर विराजमान हुई है। गोवा में उसकी हैट्रिक है। उत्तर प्रदेश में फिर योगी सरकार को स्पष्ट बहुमत मिला है। उसने 273 सीटें हासिल की हैं। हालांकि इस बार सीटें कम हुई हैं। भाजपा पिछली बार रिकॉर्ड 312 सीटों पर जीती थी। राज्य में समाजवादी पार्टी का प्रदर्शन भी सुधरा है। वह 125 सीटें जीतने में कामयाब रही है। पिछली बार सपा ने 48 सीटें जीती थीं लेकिन इन नतीजों ने बसपा के अस्तित्व पर सवाल खड़े कर दिए हैं। चर्चा तेज हो गई है कि क्या बसपा अपना जनाधार खो चुकी है। क्या मायावती का जादू खत्म हो गया है, क्या बसपा अपना मूल वोट बैंक भी नहीं बचा पाई?

1984 में बनी ही बसपा

38 साल पहले 1984 में बनी बसपा ने 2007 में उत्तर प्रदेश में भारी बहुमत के साथ सरकार बनाई थी, वही बसपा 10 साल में सिमटकर एक विधायक पर आ गई है। 2022 के चुनाव में सिर्फ एक विधायक (रसड़ा से उमाशंकर सिंह) ने ही जीत हासिल की है, बसपा के बाकी सभी प्रत्याशी चुनाव हार चुके हैं। 2017 के चुनाव में बसपा के 19 विधायक थे, लेकिन 2022 आते-आते बसपा में 3 विधायक बचे थे। पार्टी सुप्रीमो मायावती के कभी खास सिपहसालार रहे राम अचल राजभर, लालजी वर्मा, नसीमुद्दीन सिद्दीकी जैसे नेता उन्हें छोड़कर चले गए।

दलितों में चेतना और राजनीतिक एकता जगाने के लिए बनी थी बसपा


दलितों में राजनैतिक चेतना जगाने के नाम पर, कांशीराम ने बसपा की स्थापना की थी। दलितों में चेतना और राजनीतिक एकता बढ़ाने के लिए शुरू किए गए कांशीराम के मिशन को मायावती ने राजनैतिक मुकाम दिलाया। आंकड़ों पर नजर डाले तो 1990 के बाद से बसपा ने अपने वोट बैंक में धीरे-धीरे इजाफा किया। 1993 से बसपा ने विधान सभा चुनावों में 65 से 70 सीटों पर जीतना शुरू किया। 2002 में भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाने वाली बसपा का वोट प्रतिशत 23% पार कर गया। 2007 में बसपा को सबसे ज्यादा 40.43% वोट मिले और उसने अपने दम पर सरकार भी बनाई लेकिन जैसे-जैसे आगे चुनाव हुए बसपा का गिरता ग्राफ गिरता चला गया और 2022 के चुनाव में बिल्कुल खात्मे पर आ गई बसपा।

यूं सिमटता जनाधार

दरअसल, खुद को दलितों की देवी के तौर पर स्थापित करने के लिए नोएडा लखनऊ में स्मारक तो बनवाए। लेकिन दलितों के उत्थान के लिए ऐसा कोई काम नहीं हुआ जिससे दलितों के वोट रोके जा सकें। इसी दौरान, राम मंदिर आंदोलन के बाद से लगातार वनवास पर रही भाजपा की सत्ता में वापसी हुई, तो उसने सबसे पहले बसपा के मूल दलित वोट बैंक पर निशाना साधा। हर विधानसभा में दलित वोटों की निर्णायक भूमिका को देखते हुए बीजेपी ने बसपा के मूल कैडर के नेताओं को पार्टी में शामिल कराया। बृजलाल, असीम अरुण जैसे तमाम अफसरों को बीजेपी में जगह दी। 2014 में वाराणसी से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चुनाव लड़ने के बाद से ही ओबीसी और एससी वोटरों पर भारतीय जनता पार्टी ने काम करना शुरू कर दिया था। इसका नतीजा 2017 देखने को मिला और बसपा 19 सीटों पर सिमट कर रह गई और 2022 में तो बसपा सिर्फ एक सीट रसड़ा जीत पाई। 2022 में बीजेपी ने दोबारा सत्ता हासिल की तो इसका सबसे बड़ा कारण बसपा की कमजोरी और उसके मूल वोटर का बीजेपी में शामिल होना बताया जा रहा है।