जयपुर सीरियल बम धमाकों की सुनवाई करेगा सुप्रीम कोर्ट, स्वीकार की विशेष अनुमति याचिकाएँ, हाईकोर्ट से बरी हुए थे आरोपी

जयपुर। सर्वोच्च न्यायालय ने 2008 के जयपुर सीरियल बम धमाकों से संबंधित चार महत्वपूर्ण मामलों में विशेष अनुमति याचिकाएं (SLP)स्वीकार कर ली हैं। वर्ष 2008 में जयपुर में हुए बम धमाकों के मामले में निचली अदालत ने दो अभियुक्तों को वर्ष 2019 में सजा सुनाई थी। मगर बाद में हाई कोर्ट ने उन्हें बरी कर दिया था। राजस्थान सरकार ने हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देने के लिए सु्प्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिकाएं (SLP) दायर की थीं। सर्वोच्च न्यायालय का इन याचिकाओं को स्वीकार करना 2008 के जयपुर सीरियल बम धमाकों के पीड़ितों के लिए न्याय की दिशा में एक और महत्वपूर्ण कदम है। हाई कोर्ट के फैसले के बाद पीड़ितों की ओर से वकील शिव मंगल शर्मा ने सर्वोच्च न्यायालय में पहली SLP दायर की थी। इसके बाद, राज्य सरकार ने उन्हें बम धमाकों के मामलों में राज्य का प्रतिनिधित्व करने के लिए विशेष वकील नियुक्त किया। वह अतिरिक्त महाधिवक्ता के रूप में राज्य का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं।

सुप्रीम कोर्ट में भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और अतिरिक्त महाधिवक्ता शिव मंगल शर्मा राजस्थान सरकार की ओर से प्रस्तुत हुए। ये याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में न्यायमूर्ति एम.एम. सुंदरेश और माननीय न्यायमूर्ति अरविंद कुमार के समक्ष सूचीबद्ध किए गए हैं।

निचली अदालत ने 2019 में सुनाई थी फांसी की सजा

जयपुर में 13 मई 2008 को 20 मिनट के अंदर 7 स्थानों पर 8 बम धमाके हुए थे। इन धमाकों में 71 लोगों की मौत हो गई थी और 200 लोग घायल हो गए थे। इस मामले में एक विशेष अदालत ने दिसंबर 2019 में चार लोगों को दोषी ठहराते हुए मौत की सजा सुनाई थी। अदालत ने मोहम्मद सैफ, मोहम्मद सरवर आजमी, सैफुर रहमान और मोहम्मद सलमान को बम लगाने और धमाके करने का दोषी ठहराया था। इस मामले में एक और अभियुक्त शहबाज अहमद पर ई-मेल कर धमाकों की जिम्मेदारी लेने का आरोप था मगर अदालत ने उसे नाबालिग होने के आधार पर बरी कर दिया था।

हाई कोर्ट ने 2023 में कर दिया सभी आरोपियों को बरी


राजस्थान हाई कोर्ट ने 29 मार्च 2023 को निचली अदालत के फैसलों पर रोक लगाते हुए चारों अभियुक्तों को बरी कर दिया। अदालत ने साथ ही पांचवें अभियुक्त को बरी करने के फैसले को भी बहाल रखा था। अदालत ने अभियुक्तों को बरी करने का फैसला सुनाते हुए कहा था कि पुलिस के आतंकवाद-निरोधी दस्ता कोई सबूत पेश नहीं कर सका और इस धमाके में साजिश को साबित करने का कोई आधार नहीं साबित कर पाया। अदालत ने साथ ही यह भी कहा कि इनमें से कई सबूत बनाए हुए लग रहे थे। अदालत ने पुलिस के खिलाफ जांच के आदेश दिए थे।