सुप्रीम कोर्ट ने आदेश बदला सिनेमाघरों में राष्ट्रगान बजाना अब जरूरी नहीं

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को अपने 30 नवंबर 2017 के आदेश में संशोधन करते हुए कहा कि देशभर के सिनेमाघरों में राष्ट्रगान बजाना अनिवार्य नहीं है।

इससे पहले सुप्रीम कोर्ट की एक पीठ ने नवम्बर 2016 में सिनेमाघरों में फिल्म दिखाए जाने से पहले राष्ट्रगान बजाना अनिवार्य कर दिया था। इस पीठ में न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा भी शामिल थे।

न्यायालय ने मंगलवार को यह आदेश केंद्र सरकार की उस याचिका के बाद दिया जिसमें सरकार ने इसके लिए अंतर-मंत्रिमंडलीय समिति के गठन की बात कही है जो यह तय करेगी कि राष्ट्रगान कब बजाना चाहिए या कब इसे सम्मान के साथ गाया जाना चाहिए। सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय से कहा कि पहले के आदेश की समीक्षा हो सकती है।

महान्यायवादी के.के. वेणुगोपाल ने न्यायालय से आग्रह किया कि वह सिनेमा हॉलों में राष्ट्रगान बजाए जाने के आदेश को संशोधित कर इसे 'करना होगा' के दायरे से निकालकर 'किया जा सकता है' में लाए।

न्यायालय ने 2016 में अपने आदेश में सिनेमा हॉल में उपस्थित सभी दर्शकों को सिनेमा दिखाए जाने से पहले राष्ट्रगान बजने पर खड़े होने का आदेश दिया था।

न्यायालय ने श्याम नारायण चौकसे की याचिका को निपटाते हुए उन्हें इस मामले को अंतर-मंत्रिमंडलीय समिति के पास ले जाने की इजाजत दी।

केंद्र ने क्यों बदला स्टैंड?

दरअसल, राष्ट्रगान को अनिवार्य करने के केंद्र के निर्देश के बाद कई घटनाएं सामने आई थीं, जिसमें भीड़ ने किसी कारण से खड़े नहीं होने पर लोगों को पीट दिया था। कुछ ऐसी भी घटनाएं सामने आईं, जिसमें शारीरिक रूप से अक्षम व्यक्ति राष्ट्रगान के समय सिनेमा हॉल में खड़ा नहीं हो सका और भीड़ ने उसकी पिटाई कर दी। एक-दो लोगों को नहीं पूरे परिवार को ही हॉल से बाहर कर दिया गया।