नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट में न्यायाधीशों की नियुक्ति और स्थानांतरण से संबंधित कॉलेजियम की 70 सिफारिशों पर कार्रवाई में केंद्र की ओर से देरी पर सवाल खड़ा किया है। उच्चतम न्यायालय ने केंद्र से पूछा है कि आखिर इन सिफारिशों पर अब तक फैसला क्यों नहीं लिया गया। अदालत ने टिप्पणी की है कि वह मामले की निगरानी कर रही है। जजों की नियुक्ति के लिए नामों को मंजूरी देने में केंद्र की ओर से देरी का आरोप लगाने वाली बंगलूरू के एडवोकेट्स एसोसिएशन की याचिका पर सुनवाई कर रही जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस सुधांशु धूलिया की पीठ ने ये बातें कही है। पीठ की ओर से सवाल उठाए जाने पर अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने जवाब देने के लिए एक हफ्ते का समय मांगा। जस्टिस कौल ने इसे स्वीकार कर लिया और कहा, मैं बहुत कुछ कहना चाहता था लेकिन अटॉर्नी जनरल केवल सात दिन मांग रहे हैं इसलिए मैं खुद को रोक रहा हूं। मैं लंबे समय तक चुप नहीं रहूंगा।
केंद्र की हीलाहवाली की वजह से मणिपुर हाईकोर्ट को नहीं मिल रहा नया चीफ जस्टिस दरअसल, जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस सुधांशु धूलिया को तब गुस्सा आया जब वो बेंगलुरू के एक वकीलों की संस्था के साथ एनजीओ कॉमन काज की रिट पर सुनवाई कर रहे थे। एनजीओ की तरफ से पेश सीनियर एडवोकेट प्रशांत भूषण ने कोर्ट को बताया कि कॉलेजियम की 70 सिफारिशें अभी तक केंद्र के पास लंबित हैं। इनमें कुछ मसले काफी संवेदनशील हैं। वो मणिपुर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस की खाली पड़ी कुर्सी की तरफ इशारा कर रहे थे। हिंसा से झुलस रहे मणिपुर को कॉलेजियम की सिफारिश के बाद भी नया चीफ जस्टिस नहीं मिल सका है।
केंद्र की ओर से चार दिन पहले 10 नामों को दी गई मंजूरीपीठ ने कहा, 11 नवंबर, 2022 से सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की ओर से की गई 70 सिफारिशें केंद्र सरकार के पास लंबित हैं। इनमें से सात नाम ऐसे हैं जिन्हें कॉलेजियम ने दोहराया है। जस्टिस कौल ने कहा कि चार दिन पहले तक 80 फाइलें लंबित थीं, जब दस फाइलों को मंजूरी दी गई। पीठ ने कहा, 70 नामों में से 26 नाम हाईकोर्ट के न्यायाधीशों के स्थानांतरण से संबंधित हैं और एक मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति से संबंधित है।
हर 10 से 12 दिन के अंतराल पर इस मामले की होगी सुनवाईकोर्ट ने कहा कि वह हर 10 से 12 दिन में मामले पर सुनवाई करती रहेगी। पीठ ने कहा हाईकोर्ट के न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए 70 नाम 10 महीने से लंबित हैं। इन 70 नामों के लिए बुनियादी प्रक्रिया होती है। हाईकोर्ट में 70 न्यायाधीश नहीं हैं। उनमें से औसतन 50 फीसदी नियुक्ति नहीं हो पाती है। यदि आपका दृष्टिकोण पता चलेगा तो कॉलेजियम निर्णय लेगा, लेकिन यदि नहीं आता है तब...। फैसले के तहत तय की गई समय सीमा लगभग चार महीने है। उन्हें (केंद्र) पांच महीने लेने दीजिए।
जस्टिस कौल बोले- पिछली सुनवाई के बाद से कोई कदम नहीं उठाया गयाजस्टिस कौल ने अटॉर्नी जनरल से कहा, मैं इसे चिह्नित कर रहा हूं ताकि आप निर्देश ले सकें। कम से कम अप्रैल के अंत तक की हाईकोर्ट की सिफारिश कॉलेजियम के पास होनी चाहिए। इस साल जुलाई में भारत के मुख्य न्यायाधीश(सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाले सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने मणिपुर हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति के लिए दिल्ली हाईकोर्ट के न्यायाधीश सिद्धार्थ मृदुल की सिफारिश की थी। हालांकि अभी तक उनकी नियुक्ति को सरकार द्वारा अधिसूचित नहीं किया गया है। अदालत ने कहा कि मामले की पिछली सुनवाई के बाद से पिछले कई महीनों में कुछ नहीं हुआ है। पीठ ने कहा कि मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति बहुत संवेदनशील मामला है।
प्रशांत भूषण बोले- देरी के चलते कई उम्दा वकील नहीं बनना चाहते जजप्रशांत भूषण ने कहा कि स्थिति विकट होती जा रही है। कई उम्दा वकील जिनको कॉलेजियम जज बनाना चाहता था वो अपने नाम वापस ले रहे हैं। जस्टिस संजय किशन कौल ने कहा कि उनको पता है कि कुछ बेहतरीन वकील अब जज बनने के इच्छुक नहीं हैं, क्योंकि उनको लगता है कि कॉलेजियम की सिफारिशों पर केंद्र देरी से अमल कर रहा है। कई सिफारिशों को वो दबाकर भी बैठ गया है। इससे उनको डर लगता है।
अदालत ने कहा- उम्मीदवार देरी होने के चलते नाम लेते हैं वापसएक हस्तक्षेपकर्ता की ओर से पेश वकील प्रशांत भूषण ने केंद्र की ओर से नामों को अलग करने और देरी के कारण उम्मीदवारों की तरफ से सहमति वापस लेने का मुद्दा उठाया। पीठ ने कहा कि ऐसे नौ मामले हैं और अदालत ने अटॉर्नी जनरल को संकेत दिया है कि हर 10 दिन में वह इस मामले को उठाएगी और एकमात्र चिंता यह है कि सात महीने के अंतराल के बाद वकील रुचि खो देते हैं और अपना नाम वापस ले लेते हैं। हम विभिन्न न्यायालयों में उपलब्ध सर्वोत्तम प्रतिभाओं को प्राप्त करने का प्रयास करें।
मामले में अगली सुनवाई की तारीख 9 अक्तूबर तय की गईपीठ ने मामले की सुनवाई की तारीख 9 अक्तूबर तय करते हुए कहा, हमने इन चीजों को आगे बढ़ाने का प्रयास किया है। अब हम इसकी बारीकी से निगरानी करना चाहते हैं। इस साल की शुरुआत में, अदालत ने केंद्र को चेतावनी दी थी कि उसके कॉलेजियम की ओर से हाईकोर्ट के न्यायाधीशों के स्थानांतरण को मंजूरी देने में किसी भी देरी के परिणामस्वरूप प्रशासनिक और न्यायिक, दोनों तरह की कार्रवाइयां हो सकती हैं, जो सुखद नहीं होंगी। पीठ ने अटॉर्नी जनरल से कहा था कि हमें ऐसा रुख अपनाने पर मजबूर न करें जो बहुत असुविधाजनक हो। एक सितंबर, 2023 तक देश भर के 25 हाईकोर्ट में 1,114 न्यायाधीशों की स्वीकृत संख्या में से 340 न्यायाधीशों की रिक्तियां थीं।