नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को तमिलनाडु के पूर्व मंत्री वी सेंथिल बालाजी की जमानत याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया, जिन्हें पिछले साल मनी लॉन्ड्रिंग मामले में प्रवर्तन निदेशालय ने गिरफ्तार किया था।
जस्टिस अभय एस ओका और ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और बालाजी की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी और सिद्धार्थ लूथरा की दलीलें सुनीं।
सुनवाई के दौरान मेहता ने डीएमके नेता को जमानत दिए जाने का विरोध किया और कहा कि मुकदमे में देरी पूर्व मंत्री की वजह से हुई है। रोहतगी ने दलील दी कि बालाजी एक साल से अधिक समय से जेल में हैं और मुकदमे के जल्द पूरा होने की कोई संभावना नहीं है।
उन्होंने कहा, उस समय आरोप लगाया गया था कि मैं प्रभावशाली हूं, लेकिन अब मैं विभाग नहीं संभाल रहा हूं। अभी मेरी सर्जरी हुई है। और क्या चाहिए?”
उच्च न्यायालय ने बालाजी की जमानत याचिका खारिज करते हुए कहा था कि अगर उन्हें इस तरह के मामले में जमानत पर रिहा किया जाता है, तो इससे गलत संकेत जाएगा और यह व्यापक जनहित के खिलाफ होगा।
इसने कहा था कि चूंकि याचिकाकर्ता आठ महीने से अधिक समय से हिरासत में है, इसलिए विशेष अदालत को समय सीमा के भीतर मामले का निपटारा करने का निर्देश देना उचित होगा।
इसने आदेश दिया था, तदनुसार, चेन्नई की प्रधान विशेष अदालत को इस आदेश की प्रति प्राप्त होने की तारीख से तीन महीने की अवधि के भीतर मामले का निपटारा करने का निर्देश दिया जाएगा।
उच्च न्यायालय ने आदेश दिया कि शीर्ष अदालत द्वारा जारी दिशा-निर्देशों के अनुसार मुकदमे की सुनवाई दिन-प्रतिदिन की जाएगी। बालाजी को पिछले साल 14 जून को ईडी ने एक कथित कैश-फॉर-जॉब घोटाले से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में गिरफ्तार किया था, जब वे पिछली एआईएडीएमके सरकार में परिवहन मंत्री थे।
ईडी ने पिछले साल 12 अगस्त को बालाजी के खिलाफ 3,000 पन्नों का आरोप पत्र दायर किया था। 19 अक्टूबर को उच्च न्यायालय ने बालाजी की पिछली जमानत याचिका खारिज कर दी थी। एक स्थानीय अदालत भी उनकी जमानत याचिकाओं को तीन बार खारिज कर चुकी है।