आलोक वर्मा को पद से हटाए जाने पर विपक्षी दलों का PM मोदी पर हमला कहा - जांच से बहुत डरते हैं

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मात्र दो दिन बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में गुरुवार को हाई पावर सेलेक्शन कमेटी ने आलोक वर्मा को सीबीआई डायरेक्टर के पद से हटा दिया। इसके बाद विपक्षी दलों और कानूनी विशेषज्ञों ने सरकार पर जोरदार हमला बोलते हुए कहा कि यह सरकार की 'हताशा' है 'क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राफेल जेट सौदे में कोई जांच नहीं चाहते हैं' फैसले के आलोचकों ने यह भी पूछा कि चयन समिति वर्मा का पक्ष सुने बिना फैसला कैसे सुना सकती है। कांग्रेस ने समिति के फैसले की आलोचना की और कहा कि मोदी ने यह दिखाया है कि वे राफेल सौदे की जांच से 'बहुत डर गए' हैं।

कांग्रेस ने ट्वीट किया, "आलोक वर्मा को उनका पक्ष रखने का मौका दिए बिना, उन्हें पद से हटाकर पीएम मोदी ने एक बार फिर दिखाया है कि वह जांच से बहुत डरते हैं, चाहे वह स्वतंत्र सीबीआई निदेशक द्वारा की जाए या संसद द्वारा जेपीसी के माध्यम से की जाए।"

भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने कहा कि अगर वर्मा को हटाने का बहुमत का फैसला था, तो यह दुर्भाग्यपूर्ण है। उन्होंने कहा, "मुझे नहीं पता कि वर्मा को उनके खिलाफ आरोपों का जवाब देने के लिए क्यों नहीं कहा गया। केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) को लेकर मेरी राय बहुत खराब है।"

वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने प्रधानमंत्री की भूमिका में 'हितों के टकराव' की बात कही क्योंकि प्रधानमंत्री उस तीन सदस्यीय समिति का हिस्सा हैं जिसने वर्मा को पद से हटाया है। इसमें लोकसभा में कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे और सर्वोच्च न्यायालय के मनोनीत प्रतिनिधि प्रधान न्यायाधीश द्वारा नामित न्यायमूर्ति ए.के. सीकरी हैं।

उन्होंने कहा, "सीबीआई निदेशक के रूप में पदभार संभालने के एक दिन बाद, मोदी की अध्यक्षता वाली समिति ने फिर से आलोक वर्मा को बिना सुनवाई के जल्दबाजी में हटा दिया, क्योंकि उन्हें डर था कि राफेल घोटाले में मोदी के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज होने की संभावना है।"

उन्होंने कहा, "आलोक वर्मा का पक्ष सुने बिना समिति यह कैसे तय कर सकती है? यह सरकार की हताशा को दर्शाता है। इसमें प्रधानमंत्री के हितों का टकराव है। इतनी हताशा, किसी भी जांच को रोकने के लिए है," एक अन्य वरिष्ठ वकील व राज्यसभा सदस्य मजीद मेमन ने वर्मा को हटाने को 'सत्ता का अतिक्रमण' करार दिया। मेमन ने कहा, "आलोक वर्मा के खिलाफ चयन समिति का फैसला पूरी तरह से 'सत्ता का अतिक्रमण' है। समिति को उनकी बात सुननी चाहिए थी। मामले में सीवीसी की भूमिका भी संदेह के घेरे में है।"

कांग्रेस नेता व वरिष्ठ वकील अभिषेक सिंघवी ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि वर्मा को आरोपों के आधार पर हटा दिया गया, जबकि सीवीसी की कोई विश्वसनीयता नहीं है। उन्होंने कहा, "प्रधानमंत्री इस बात से आशंकित हैं कि उनके खिलाफ जांच होने पर कई सबूत सामने आएंगे"

वही इस मामले पर इस मामले पर अपनी चुप्पी तोड़ते हुए आलोक वर्मा ने गुरुवार देर रात पीटीआई को दिए एक बयान में कहा कि सीबीआई उच्च सार्वजनिक स्थानों में भ्रष्टाचार से निपटने वाली एक प्रमुख जांच एजेंसी है, एक ऐसी संस्था है जिसकी स्वतंत्रता को संरक्षित और सुरक्षित किया जाना चाहिए। आगे उन्होंने कहा कि इसे बिना किसी बाहरी प्रभावों यानी दखलअंदाजी के कार्य करना चाहिए। मैंने संस्था की साख बनाए रखने की कोशिश की है, जबकि इसे नष्ट करने के प्रयास किए जा रहे हैं। पैनल ने पाया कि सीवीसी ने आलोक वर्मा पर गंभीर टिप्पणियां की हैं। पैनल को लगा कि आलोक वर्मा जिस तरह के संवेदनशील संस्था के प्रमुख थे, उन्होंने वैसा आचरण नहीं किया। पैनल के मुताबिक सीवीसी को लगा है कि मोइन क़ुरैशी मामले में आलोक वर्मा की भूमिका संदेहास्पद है। IRCTC केस में सीवीसी को ये लगा है कि जानबूझकर वर्मा ने एक नाम हटाया है। वहीं सीवीसी को कई दूसरे मामलों में भी शर्मा के खिलाफ सबूत मिले हैं। फ़िलहाल उन्हें डीजी फायर सर्विसेज़, सिविल डिफेंस और होमगार्ड का बनाया गया है।