नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को बिहार सरकार की आलोचना करते हुए कहा कि पुल ढहने की घटना के बाद सरकार के अधिकारियों को निलंबित कर दिया गया था, लेकिन हंगामा शांत होने के बाद उन्हें वापस बुला लिया गया।
इस मामले की सुनवाई भारत के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ ने की, जिसमें न्यायमूर्ति संजय कुमार शामिल थे। पीठ ने कहा, पुल ढहने की घटना के बाद कुछ अधिकारियों को विधिवत निलंबित कर दिया गया था, लेकिन घटना पर हंगामा शांत होने के बाद उन्हें वापस बुला लिया गया।
सुनवाई के दौरान सरकार ने कहा कि उसने राज्य में करीब 10,000 पुलों का निरीक्षण किया है। पीठ ने कहा कि उसने जवाबी हलफनामे को पढ़ा है और वह मामले को पटना उच्च न्यायालय को स्थानांतरित कर रही है। पीठ ने कहा, जवाबी हलफनामे में उन्होंने (राज्य अधिकारियों ने) इस बात का ब्यौरा दिया है कि वे क्या कर रहे हैं...।
पीठ ने कहा कि राज्य सरकार के जवाबी हलफनामे में घटनाओं के लिए कोई कारण नहीं बताया गया है, लेकिन इसमें योजनाओं और नीतियों की एक लंबी सूची है।
पीठ ने कहा कि उच्च न्यायालय बिहार में पुलों के संरचनात्मक और सुरक्षा ऑडिट सुनिश्चित करने के लिए उठाए गए कदमों की हर महीने निगरानी कर सकता है। पीठ ने याचिकाकर्ता, राज्य के अधिकारियों और भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) को 14 मई को उच्च न्यायालय में पेश होने को कहा, जब वहां अगली सुनवाई की तारीख तय की जाएगी।
याचिका में बिहार में पुलों की सुरक्षा और दीर्घायु के बारे में चिंता जताई गई थी। याचिका में हाल के महीनों में कई ऐसे ढांचे ढहने का दावा किया गया था। शीर्ष अदालत ने वकील याचिकाकर्ता ब्रजेश सिंह द्वारा दायर याचिका पर राज्य सरकार और उसके अधिकारियों के लंबे जवाब पर भी असंतोष व्यक्त किया।
सर्वोच्च न्यायालय ने पिछले वर्ष नवंबर में बिहार सरकार एवं अन्य को इस मुद्दे पर जनहित याचिका पर अपना जवाब दाखिल करने का अंतिम अवसर दिया था।