14 फरवरी को पुलवामा आतंकवादी हमले के बाद केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी (Nitin Gadkari) ने कहा है कि भारत ने पाकिस्तान जाने वाले अपने हिस्से का पानी रोकने का फैसला किया है। पुलवामा में सीआरपीएफ जवानों के हमले के बाद सिंधु जल समझौते के तहत पाकिस्तानी को मिलने वाले पानी पर रोक लगाने की मांग की जा रही है। व्यास, रावी और सतलज नदियों का पानी भारत से होकर पाकिस्तान पहुंचता है। मोदी सरकार ने बड़ा कदम उठाते हुए पाकिस्तान को जाने वाले अपने हिस्से के पानी को रोकने का फैसला किया है। इसके साथ ही इस पानी को जम्मू और कश्मीर और पंजाब की तरफ मोड़ने का फैसला भी केंद्र सरकार ने लिया है।
केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने ट्वीट कर यह जानकारी दी। केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने अपने ट्वीट में लिखा, 'पीएम मोदी के नेतृत्व में हमारी सरकार ने पाकिस्तान के ओर जाने वाले अपने हिस्से के पानी को रोकने का फैसला किया है। हम पूर्वी नदियों के पानी का रुख जम्मू कश्मीर और पंजाब की तरफ मोड़ेंगे।' नितिन गडकरी ने एक अन्य ट्वीट में कहा, शाहपुर-कंडी में रावी नदी पर बांध बनाने का काम शुरू हो चुका है। वहीं UJH प्रोजेक्ट हमारे हिस्से के पानी को जम्मू-कश्मीर के लिए संग्रहित करेगा और शेष पानी दूसरे रावी-ब्यास लिंक के जरिए बहते हुए दूसरे बेसिन राज्यों को मिलेगा।
बता दे, सिंधु जल समझौते के तहत तीन 'पूर्वी नदियां' ब्यास, रावी और सतलुज के पानी का इस्तेमाल भारत बिना किसी बाधा के कर सकता है। वहीं, तीन 'पश्चिमी नदियां' सिंधु, चिनाब और झेलम पाकिस्तान को आवंटित की गईं हैं। सिंधु जल संधि दो देशों के बीच पानी के बंटवारे की वह व्यवस्था है जिस पर 19 सितम्बर, 1960 को तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान ने कराची में हस्ताक्षर किए थे। इसमें छह नदियों ब्यास, रावी, सतलुज, सिंधु, चिनाब और झेलम के पानी के वितरण और इस्तेमाल करने के अधिकार शामिल हैं। इस समझौते के लिए विश्व बैंक ने मध्यस्थता की थी। सिंधु बेसिन की सभी नदियों का स्रोत भारत में है। समझौते के तहत भारत को सिंचाई, परिवहन और बिजली उत्पादन के लिए इन नदियों का उपयोग करने की अनुमति दी गई है, जबकि भारत को इन नदियों पर परियोजनाओं का निर्माण करने के लिए काफी बारीकी से शर्तें तय की गईं कि भारत क्या कर सकता है और क्या नहीं कर सकता है।
पाकिस्तान को हमेश इस बात कर डर सताता रहता है कि अगर भारत के साथ युद्ध होता है तो वह पाकिस्तान में सूखे की आशंका पैदा कर सकता है। इसलिए इस संबंध में एक स्थायी सिंधु आयोग का गठन किया गया। बाद में दोनों देशों के बीच तीन युद्ध हुए, लेकिन एक द्विपक्षीय तंत्र होने से सिंधु जल संधि पर किसी विवाद की नौबत नहीं आई। इसके तहत दोनों देशों के अधिकारी आंकड़ों का आदान-प्रदान करते हैं, इन नदियों का एक-दूसरे के यहां जाकर निरीक्षण करते हैं तथा किसी छोटे-मोटे विवाद को आपस में ही सुलझा लेते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि इस समझौते से भारत को एकतरफा नुकसान हुआ है और उसे छह सिंधु नदियों की जल व्यवस्था का महज 20 फीसदी पानी ही मिला है। पाकिस्तान ने इसी साल जुलाई में भारत की तरफ से झेलम और चिनाब नदियों पर जल विद्युत परियोजनाओं का निर्माण करने तैयारी की आशंका में अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता की मांग की थी।
सिंधु जल को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच मतभेददरहसल, सिंधु जल पर हमेशा से भारत और पाकिस्तान के बीच मतभेद रहा है। भारत का कहना है कि 1960 की सिंधु जल संधि के कार्यान्वयन पर मतभेद है। एक ऐसा मतभेद जिसे विश्व बैंक के तत्वावधान में एक अंतर्राष्ट्रीय न्यायाधिकरण में भेजा जा चुका है। इस मामले पर भारत सरकार ने पहले भी कहा है कि कोई भी संधि 'एकतरफा' नहीं हो सकती।
अब सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि क्या भारत इस समझौते को रद्द कर सकता है? जिसकी संभावना कम लग रही है। दरहसल, दोनों देशों के बीच तीन युद्धों के बावजूद यह संधि बनी रही है। लेकिन 14 फरवरी को पुलवामा में हुए आतंकी हमले के बाद भारत ने इस मुद्दे को उठाया है। भारत का कहना है कि कोई भी संधि दोनों पक्षों के बीच 'आपसी सहयोग और विश्वास' पर ही टिकी होती है। लेकिन, यह किसी वास्तविक खतरे की तुलना में दबाव बनाने की रणनीति ज्यादा प्रतीत होती है। ऐसा भारत पहले भी कह चुका है। अगर भारत इसे रद्द करेगा तो दुनिया के शक्तिशाली देश इसकी आलोचना करेंगे क्योंकि यह समझौते कई मुश्किल हालात में भी टिका रहा है।
हालाकि कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि अगर भारत 'पश्चिमी नदियों' के पानी का भंडारण शुरू कर दे (संधि के तहत जिसकी इजाजता है, भारत 36 लाख एकड़ फीट का इस्तेमाल कर सकता है) तो पाकिस्तान के लिए कड़ा संदेश होगा।पाकिस्तान इस मामले में भारत के कुछ करने की आहट से ही अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता के लिए दौड़ पड़ता है।