
नई दिल्ली | वरिष्ठ पत्रकार और पूर्व केंद्रीय मंत्री एमजे अकबर की एक बार फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की टीम में वापसी हुई है। 2018 में 'मीटू' विवाद के चलते केंद्र सरकार से इस्तीफा देने वाले अकबर को अब एक अहम कूटनीतिक मिशन का हिस्सा बनाया गया है। भारत सरकार ने आतंकवाद के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर समर्थन जुटाने के उद्देश्य से सात सदस्यीय सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल गठित किया है, जिसमें एमजे अकबर को शामिल किया गया है।
भारत की कूटनीतिक पहल: आतंकवाद पर पाकिस्तान को घेरने की तैयारीयह प्रतिनिधिमंडल यूनाइटेड किंगडम, फ्रांस, जर्मनी, इटली और डेनमार्क का दौरा करेगा, जहां यह भारत की ओर से आतंकवाद के खिलाफ उठाए गए कदमों—विशेषकर हाल ही में हुए 'ऑपरेशन सिंदूर'—को लेकर वैश्विक समर्थन हासिल करने की कोशिश करेगा। रवि शंकर प्रसाद के नेतृत्व में इस डेलीगेशन में अन्य सदस्यों में शशि थरूर (कांग्रेस), सुप्रिया सुले (NCP-SP), कनिमोझी (DMK), संजय झा (JDU), बैजयंत पांडा (BJP) और श्रीकांत शिंदे (शिवसेना) शामिल हैं।
एमजे अकबर: फिर से केंद्र में एक जिम्मेदारीएमजे अकबर की वापसी को लेकर कई राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह एक राजनयिक अनुभव और अंतरराष्ट्रीय संबंधों में उनकी समझ को देखते हुए किया गया रणनीतिक फैसला है।
अकबर पाकिस्तान और आतंकवाद के मसले पर हमेशा से मुखर रहे हैं। हाल ही में उन्होंने ऑपरेशन सिंदूर को लेकर भारतीय सेना की प्रशंसा की थी और पीएम मोदी की रणनीतिक नेतृत्व की सराहना करते हुए कहा था कि,“आप वो करते हैं जो बाकी सोच भी नहीं पाते।”
मीटू विवाद में फंसे थे एमजे अकबरदरअसल, 2018 में 'मीटू विवाद' से अकबर के करियर को तगड़ा झटका लगा था। कई पूर्व महिला सहकर्मियों ने उन पर यौन उत्पीड़न के आरोप लगाए, जिसके बाद उन्हें मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा। अकबर ने इन आरोपों को निराधार बताते हुए पत्रकार प्रिया रमानी के खिलाफ मानहानि का मुकदमा दायर किया था। 2021 में दिल्ली की एक अदालत ने रमानी को बरी कर दिया, जिसके खिलाफ अकबर ने दिल्ली हाई कोर्ट में अपील की। इस विवाद ने उनकी पब्लिक इमेज को प्रभावित किया और वह कुछ समय के लिए वो राजनीतिक हाशिए पर चले गए।
7 सांसदों के नेतृत्व में डिलीगेशन का दौराबता दें कि जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में 22 अप्रैल को हुए आतंकी हमले का बदला लेने के लिए भारत ने 'ऑपरेशन सिंदूर' के जरिए पाकिस्तान और पीओके के 9 आतंकी ठिकानों को ध्वस्त कर दिया था। अब, भारत आतंकवाद पर अपना पक्ष रखने के लिए 7 सांसदों के नेतृत्व में डिलीगेशन को अलग-अलग देशों में भेज रहा है। इनमें बीजेपी की ओर से रवि शंकर प्रसाद और बैजयंत पांडा, कांग्रेस से शशि थरूर, जेडीयू से संजय कुमार झा, डीएमके से कनिमोझी करुणानिधि, एनसीपी-एसपी से सुप्रिया सुले और शिवसेना से श्रीकांत शिंदे को शामिल किया गया है।
पत्रकारिता और राजनीति का दौरएमजे अकबर ने 1970 के दशक में संडे और एशिया जैसे प्रकाशनों में अपनी लेखनी से धूम मचाई थी। बाद में द टेलीग्राफ और एशियन एज जैसे अखबारों के संपादक के रूप में उन्होंने पत्रकारिता को नए आयाम दिए। उनकी किताबें, नेहरू: द मेकिंग ऑफ इंडिया और कश्मीर: बिहाइंड द वेल, इतिहास और राजनीति के गहन विश्लेषण के लिए जानी जाती हैं।
1989 में अकबर ने बिहार के किशनगंज से कांग्रेस सांसद के रूप में राजनीति में कदम रखा, लेकिन 1991 में वह यह सीट हार गए। 2014 में बीजेपी में शामिल होने के बाद उनकी राजनीतिक पारी ने नया मोड़ लिया। 2015 में राज्यसभा सांसद बनने के बाद 2016 में वह मोदी सरकार में विदेश राज्य मंत्री बने। इस दौरान उन्होंने भारत की कूटनीति को वैश्विक मंच पर मजबूत करने में योगदान दिया।
क्या यह वापसी स्थायी होगी?यह देखना दिलचस्प होगा कि यह कूटनीतिक जिम्मेदारी एमजे अकबर के लिए सिर्फ एक मिशन तक सीमित रहती है या यह उनकी पूर्ण राजनीतिक पुनर्वापसी की शुरुआत बनती है।
भारत की कूटनीति के इस अभियान में उनकी भूमिका कितनी प्रभावशाली होती है, यह भी उनके राजनीतिक भविष्य की दिशा तय कर सकता है।