जानें कब और कैसे बना तालिबान, अफगानिस्तान के 65% इलाके पर अब तक कर चुका है कब्जा

तालिबान का अफगानिस्तान में एक के बाद एक प्रमुख शहरों पर कब्जा होता जा रहा है। पश्तो लड़ाकों के इस संगठन को अफगानिस्तान की पश्तो बहुल आबादी का भी समर्थन मिलता है। यही वजह है कि पिछले तीन महीने में इस संगठन के कब्जे वाले शहरों की संख्या 77 से बढ़कर 242 तक पहुंच चुकी है। देश के 65% इलाके पर अब तालिबान का कब्जा है। कंधार पर कब्जे के बाद तालिबान की पकड़ मजबूत हुई है। पिछले आठ दिन में तालिबान ने 13 शहरों पर कब्जा कर लिया है। पाकिस्तान के पूर्व सीनेटर अफरासियाब खट्टक ने दावा किया है कि अफगानिस्तान के बिगड़ते हालात के पीछे पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई (ISI) का हाथ है, जिसका समर्थन तालिबानियों को मिला हुआ है।

अफरासियाब ने कहा कि आईएसआई तालिबानियों की मदद, अफगानिस्तान को अस्थिर करने में कर रहा है। महज कुछ दिनों के भीतर ही तालिबानी आतंकी काबुल पर भी कब्जा कर लेंगे।

दरअसल, अमेरिका और नाटो देशों के सैनिकों ने इस साल मई में अफगानिस्तान छोड़ना शुरू किया। इसके बाद से अफगानिस्तान के अलग-अलग शहरों में तालिबना का प्रभाव बढ़ने लगा। कंधार और उत्तरी अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद अफगान सरकार संकट में है। आशंका जताई जा रही है कि अब तालिबान देश की राजधानी काबुल को पूरी तरह घेर लेगा। अब अफगान सरकार को तय करना है कि काबुल सहित वो अपने कब्जे वाले इलाकों पर सेना बढ़ाए या जिन इलाकों पर तालिबान कब्जा कर चुका है, उन्हें छुड़ाने की कोशिश करे।

अफगानिस्तान में कुल 407 जिले हैं। 12 अगस्त तक तालिबान के कब्जे में कंधार समेत 242 जिले आ चुके हैं। अफगान सरकार का कब्जा सिमट कर 65 जिलों तक ही रह गया है। 100 जिलों में दोनों पक्षों में संघर्ष जारी है। पिछले 20 साल में पहली बार है जब तालिबान ने कई राज्यों की राजधानी पर भी एक साथ कब्जा किया है। इनमें जरांज, अब्दुल रशीद दोस्तम की पकड़ वाला शबरघान, तालिकान, शेर-ए-पुल, कॉमर्शियल हब कुंदुज, ऐबक, फराह सिटी, पुल-ए-खुमरी और फैजाबाद शामिल हैं। अब जो शहर अफगान सरकार के कब्जे में हैं वो पूरी तरह से कट चुके हैं। उनकी सप्लाई लाइन को तालिबान ने लगभग बंद कर दिया है।

तालिबान की भारत को चेतावनी

तालिबान ने भारत को चेतावनी दी है। विद्रोही संगठन के प्रवक्ता ने साफ कर दिया है कि अफगानिस्तान में भारत को सैन्य मौजूदगी से बचना चाहिए। तालिबान के प्रवक्ता ने कहा कि अगर भारत, अफगानिस्तान में सैन्य रूप से आता है और यहां उसकी उपस्थिति होती है, तो यह उनके लिए अच्छा नहीं होगा। उन्होंने अफगानिस्तान में दूसरे देशों के सैन्य उपस्थिति की हालत देखी, तो यह उनके लिए एक खुली किताब है। समाचार एजेंसी एएनआई से बातचीत में तालिबान के प्रवक्ता सुहैल शाही ने कहा कि सैन्य भूमिका से आपका मतलब क्या है? अगर वे सैन्य तौर पर अफगानिस्तान आते हैं, तो मुझे नहीं लगता कि यह उनके लिए अच्छा होगा। उन्होंने अफगानिस्तान में दूसरे देशों की सैन्य मौजूदगी का भाग्य देखा है। ऐसे में यह उनके लिए खुली किताब है।

ऐसे हुई थी तालिबान की शुरुआत

अफगान गुरिल्ला लड़ाकों ने 1980 के दशक के अंत और 1990 के शुरुआत में तालिबान का गठन किया था। ये वो दौर था जब अफगानिस्तान पर सोवियत संघ का कब्जा (1979-89) था। इन लड़ाकों को अमेरिकी खुफिया एजेंसी CIA और पाकिस्तान की ISI का समर्थन प्राप्त था।

अफगान लड़ाकों के साथ पश्तो आदिवासी स्टूडेंट भी इसमें शामिल थे। ये लोग पाकिस्तान के मदरसों में पढ़ते थे। पश्तों में स्टूडेंट को तालिबान कहते हैं। यहीं से इन्हें तालिबान नाम मिला। अफगानिस्तान में पश्तून बहुसंख्यक हैं। देश के दक्षिणी और पूर्व इलाके में इनकी अच्छी पकड़ है। वहीं, पाकिस्तान के उत्तरी और पश्चिमी इलाके में भी पश्तूनों की बहुलता है।

1994 में कंधार और 1996 में काबुल पर तालिबान ने किया था कब्जा

सोवियत संघ के अफगानिस्तान से जाने के बाद इस आंदोलन को अफगानिस्तान के आम लोगों का समर्थन मिला। आंदोलन की शुरुआत में इसे चलाने वाले लड़ाकों ने वादा किया कि सत्ता में आने बाद देश में शांति और सुरक्षा स्थापित होगी। इसके साथ ही शरिया के कानून को सख्ती से लागू किया जाएगा। अपने विरोधी मुजाहिदीन ग्रुप से चले चार साल के संघर्ष के बाद अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्जा हुआ। इसके साथ ही देश में सख्त शरिया कानून लागू हुआ। 1994 में तालिबान ने कंधार पर कब्जा किया। सितंबर 1996 में काबुल पर कब्जे के साथ ही अफगानिस्तान पर तालिबान का पूरी तरह से नियंत्रण हो गया। इसी साल तालिबान ने अफगानिस्तान को इस्लामिक राष्ट्र घोषित कर दिया। मुल्ला मोहम्मद उमर देश के आमिर-अल-मोमिनीन यानी कमांडर बनाए गए।

अफगानिस्तान के 90% इलाके पर था तालिबान का कब्जा

2001 से पहले अफगानिस्तान के 90% इलाके तालिबान के कब्जे में थे। इस दौरान शरिया कानून को सख्ती से लागू किया गया। महिलाओं को बुर्का पहनने को कहा गया। म्यूजिक और टीवी पर बैन लगा दिया गया। जिन पुरुषों की दाढ़ी छोटी होती थी, उन्हें जेल तक में डाल दिया जाता था। लोगों की सामाजिक जरूरतों और मानवाधिकारों तक की अनदेखी की गई।

कई एक्सपर्ट्स का कहना है कि तालिबान अफगानिस्तान के लोकतांत्रिक संस्थानों, नागरिकों के अधिकारों और क्षेत्रीय सुरक्षा के लिए खतरा है। इस संगठन ने दुनिया के सबसे शक्तिशाली सिक्योरिटी अलाएंस नाटो का सामना किया है। ऐसे में उसका मोराल काफी हाई है। तालिबान को मॉनिटर करने वाली UN की टीम ने 2021 की अपनी रिपोर्ट में कहा है कि इस संगठन के आतंकी संगठन अल-कायदा से मजबूत संबंध हैं। रिपोर्ट के मुताबिक अल-कायदा पर तालिबान की पकड़ लगातार मजबूत हो रही है।