विवादित बयान : कुमारस्वामी ने कहा - PM मोदी का ISRO जाना 'अशुभ' साबित हुआ 'विक्रम' के लिए

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) की ओर से चंद्रयान-2 (chandrayaan-2) के लैंडर विक्रम (Lander vikram) से संपर्क बहाल करने करने के लिए अब नासा (NASA) भी मदद कर रही है। इसरो के एक अधिकारी ने बताया कि अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (NASA) की जेट प्रोपल्शन लेबोरेटरी (JPL) विक्रम को रेडियो सिग्नल भेज रही है। जहां एक तरफ पूरी दुनिया दुआ कर रहे है कि लैंडर विक्रम से संपर्क बन जाए वही दूसरी तरफ देश के कुछ नेता अपने बयानों से विवाद खड़ा कर रहे है।

इसी कड़ी में कर्नाटक (Karnataka) के पूर्व मुख्यमंत्री एच डी कुमारस्वामी (HD Kumaraswamy) ने यह बयान देकर विवाद खड़ा कर दिया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इसरो मुख्यालय में मौजूदगी लैंडर विक्रम के लिए 'अशुभ' साबित हुई। यही कारण है कि चंद्रयान-2 मिशन के लैंडर विक्रम की सॉफ्ट लैंडिंग नहीं हो सकी। उन्होंने कहा मैं नहीं जानता, लेकिन संभवत: वहां उनके कदम रखने का समय इसरो वैज्ञानिकों के लिए अपशगुन लेकर आया। उन्होंने कहा कि मोदी छह सितंबर को देश के लोगों को यह संदेश देने के लिए बेंगलुरु पहुंचे कि चंद्रयान के प्रक्षेपण के पीछे उनका हाथ है। कुमारस्वामी ने कहा कि मोदी ऐसे बेंगलुरु आए थे, मानो वो खुद चंद्रयान-2 को उड़ा रहे हों।

उन्होंने कहा, प्रधानमंत्री यहां प्रचार पाने के लिए आए, जैसे मानो चंद्रयान-2 का प्रक्षेपण उन्हीं के कारण हुआ। जबकि यह परियोजना 2008-2009 के दौरान की संप्रग सरकार और वैज्ञानिकों का परिणाम थी। कुमारस्वामी ने कहा, बेचारे वैज्ञानिकों ने 10 से 12 साल कड़ी मेहनत की। चंद्रयान-2 के लिए कैबिनेट की मंजूरी 2008-09 में दी गई थी और इसी साल फंड जारी किया गया था।

लैंडर विक्रम के लिए आने वाले दिन होंगे और मुश्किल भरे

भारत का चंद्रयान-2 मिशन अभी खत्म नहीं हुआ है। इसरो के वैज्ञानिकों ने लैंडर विक्रम को जिंदा करने के लिए पूरी ताकत झोंक दी है। चंद्रयान-2 के आर्बिटर से जब लैंडर विक्रम अलग हुआ तो सब कुछ ठीक था। लेकिन जब वो चांद की सतह पर उतरने के लिए में था तभी उसका संपर्क इसरो के कंट्रोल रूम के साथ आर्बिटर से भी टूट गया। माना जाता है कि चांद की सतह से मुश्किल से 150 मीटर ऊपर ऐसा हुआ होगा। तब लैंडर विक्रम को जिस स्पीड को कम करते हुए चांद पर उतरना था और अपने स्कैनर्स के जरिए उतरने की माकूल जगह तलाशनी थी, वैसा शायद वो नहीं कर पाया। माना जा रहा है कि वो चांद पर किसी बड़े गड्ढे में गिर चुका है। लैंडर में ऐसे उपकरण हैं, जिससे धरती और आर्बिटर से उससे संपर्क साधा जा सकता है। लेकिन फिलहाल ऐसा लग रहा है कि लैंडर की पॉवर यूनिट फेल हो गई है और उसके पूरे सिस्टम ने काम बंद कर दिया है। 7 सितंबर को जब लैंडर विक्रम चांद की सतह पर उतर रहा था। उसी दिन ये माना गया था कि चांद पर दिन की शुरुआत हुई है। अगर इसे 7 सितंबर से शुरू माना जाए तो चांद पर 21 सितंबर तक लगातार दिन की स्थिति बनी रहेगी लेकिन 21 सितंबर के बाद रात शुरू हो जाएगी। ये रात ही लैंडर विक्रम के लिए असल संकट की घड़ी होगी यानि जो भी रही सही उम्मीदें भी हैं, वो इन रात की शुरुआत खत्म कर देगी।