
जयपुर। राजस्थान हाईकोर्ट में बुधवार को अजमेर स्थित ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह परिसर में प्राचीन शिव मंदिर होने के दावे से जुड़ी याचिका पर सुनवाई हुई। यह याचिका दरगाह के खादिमों की संस्था अंजुमन सैयद जादगान की ओर से दायर की गई थी। याचिका में अजमेर की सिविल अदालत में चल रही कार्यवाही पर रोक लगाने की मांग की गई है।
सुनवाई जस्टिस विनोद कुमार भारवानी की एकल पीठ में हुई। याचिकाकर्ता अंजुमन की ओर से अधिवक्ताओं आशीष कुमार सिंह और वागीश कुमार सिंह ने कोर्ट के समक्ष तर्क रखते हुए कहा कि यह विवाद 'प्लेसेज़ ऑफ वर्शिप एक्ट, 1991' के दायरे में आता है। अधिवक्ताओं ने यह भी कहा कि सुप्रीम कोर्ट पहले ही स्पष्ट कर चुका है कि 15 अगस्त 1947 के बाद किसी धार्मिक स्थल की प्रकृति में बदलाव नहीं किया जा सकता, और ऐसे विवादों को न्यायालय में स्थान नहीं मिलना चाहिए।
अजमेर की सिविल कोर्ट में सुनवाई जारी रहना स्वयं कानून के उद्देश्य के विरुद्ध है, इसलिए हाईकोर्ट को इस कार्यवाही पर रोक लगानी चाहिए।
केंद्र सरकार का विरोधदूसरी ओर, केंद्र सरकार की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल आर. डी. रस्तोगी ने अंजुमन कमेटी की याचिका का विरोध किया। उन्होंने कहा कि अंजुमन इस मामले की सीधी पक्षकार नहीं है, इसलिए उसे यह याचिका दायर करने का अधिकार नहीं है। इस आधार पर उन्होंने याचिका को अयोग्य बताया।
मामला क्या है?हिंदू सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष विष्णु गुप्ता ने 23 सितंबर 2024 को अजमेर की सिविल अदालत में एक याचिका दायर कर यह दावा किया था कि दरगाह परिसर में प्राचीन संकट मोचन महादेव मंदिर स्थित है। इस याचिका में उन्होंने दरगाह कमेटी, अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (ASI) को पक्षकार बनाया है।
आगे क्या?• अजमेर सिविल कोर्ट इस मामले की अगली सुनवाई 19 अप्रैल को करेगी।
• वहीं, राजस्थान हाईकोर्ट में इस याचिका पर अगली सुनवाई एक सप्ताह बाद निर्धारित की गई है।