पूर्व रक्षा मंत्री जार्ज फर्नांडीस (George Fernandes) का मंगलवार को लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया। 88 साल के जार्ज की पहचान देश के दिग्गज नेताओं के रूप में होती थी। उन्होंने सुबह सात बजे अंतिम सांस ली। वो प्रखर समाजवादी नेता के तौर पर जाने जाते थे। वाजपेयी सरकार में मंत्री रहने के साथ ही फर्नांडीस समता पार्टी के संस्थापक सदस्य, श्रमिक नेता और एनडीए के संयोजक भी थे। जॉर्ज फर्नांडिस 10 भाषाओं के जानकार थे- हिंदी, अंग्रेजी, तमिल, मराठी, कन्नड़, उर्दू, मलयाली, तुलु, कोंकणी और लैटिन। उनकी मां किंग जॉर्ज फिफ्थ की बड़ी प्रशंसक थीं। उन्हीं के नाम पर अपने छह बच्चों में से सबसे बड़े का नाम उन्होंने जॉर्ज रखा था। मंगलौर में पले-बढ़े फर्नांडिस (George Fernandes) जब 16 साल के हुए तो एक क्रिश्चियन मिशनरी में पादरी बनने की शिक्षा लेने भेजे गए। पर चर्च में पाखंड देखकर उनका उससे मोहभंग हो गया। उन्होंने 18 साल की उम्र में चर्च छोड़ दिया और रोजगार की तलाश में बंबई चले आए। बिखरे बाल, और पतले चेहरे वाले फर्नांडिस, तुड़े-मुड़े खादी के कुर्ते-पायजामे, घिसी हुई चप्पलों और चश्मे में खांटी एक्टिविस्ट लगा करते थे। कुछ लोग तभी से उन्हें ‘अनथक विद्रोही’ (रिबेल विद्आउट ए पॉज़) कहने लगे थे।
जॉर्ज फर्नांडीस का बिहार से गहरा नाता रहा है। वो बिहार के मुजफ्फरपुर से चार बार सांसद चुने गए थे। जार्ज 1980 में हुए लोकसभा चुनाव में मुजफ्फरपुर से जीते थे। वो वीपी सिंह की सरकार में कुछ सालों के लिए रेलवे मंत्री बने। 1998 के चुनाव में वाजपेयी सरकार पूरी तरह सत्ता में आई थी और एनडीए का गठन हुआ था तब जॉर्ज फर्नांडीस एनडीए के संयोजक बने। जॉर्ज एनडीए की सरकार में दोनों बार रक्षामंत्री बने। उनके रक्षामंत्री रहते हुए ही पाकिस्तान ने भारत पर हमला कर दिया जिसके बाद कारगिल युद्ध हुआ था। भारतीय सेना ने तब 'ऑपरेशन विजय' के दौरान पाकिस्तानी सेना को भागने पर मजबूर कर दिया। साल 2004 के लोकसभा चुनाव में एनडीए की हार हुई थी जिसके बाद 2009 के लोकसभा चुनाव में वे जदयू के टिकट को छोड़कर निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में मुजफ्फरपुर से लड़े, मगर हार गए। वो लालकृष्ण आडवाणी के भी करीबी माने जाते थे।