2 अक्टूबर विशेष : गांधीजी की सोच में हमेशा रहा है राष्ट्रहित, जानें उनसे जुडी यह शिक्षाप्रद कहानी

महात्मा गांधी जिनका पूरा नाम मोहनदास करमचंद गांधी था। इनका जन्म 2 अक्टूबर 1869 में पोरबंदर में हुआ था। बापू ने राष्ट्रहित और आजादी के लिए कई आन्दोलन किए और उनक सोच में हमेशा ही राष्ट्रहित रहा हैं। यहाँ तक की राष्ट्रहित के लिए उन्होंने अपने जीवन में कई बार जेल की यात्रा की हैं। आज हम आपको गांधीजी की एक ऐसी शिक्षाप्रद कहानी के बारे में बताने जा रहे हैं जो उनकी जेल यात्रा से जुडी हैं और हमें राष्ट्रहित की शिक्षा देती हैं। तो आइये जानते हैं इसके बारे में।

बात तब की है, जब बापू पहरे के अधीन थे, संगीनों के साए में, मनुबेन भी साथ थीं। मनुबेन ने जेल अधीक्षक से एक नोटबुक मंगवाई।

बापू ने नोटबुक देखी तो पूछा- 'यह नोटबुक कितनी कीमत की आई?'

मनुबेन ने जेल अधीक्षक से पूछकर कहा- एक रुपए और एक आने की है बापू।

यह सुनते ही बापू ने कहा- 'हमारे पास बहुत-सा कागज है, उसी से काम चला लेती। नोटबुक किसलिए ली? तुम समझती हो कि अपने पास से पैसे नहीं देने पड़ते, अंगरेज सरकार देती है? यह भारी भूल है। यह तो हमारे ही पैसे हैं।'
नोटबुक वापस लौटा दी गई।

फिर बापू ने अपने ही हाथों से- फालतू पड़े खाली कागजों से एक डायरी तैयार की, उसे सलीके से सीकर उस पर जिल्द भी चढ़ा दी। नोटबुक के रूप में यह डायरी मनुबेन को बहुत पसंद आई।

यह सच है, बापू एक-एक पल देश के पैसे का ख्याल रखते थे तथा पैसे को व्यर्थ खर्च नहीं करते थे, बल्कि इस तरह एकत्रित पैसे को वे राष्ट्रहित में लगाते थे।