कुंभ में श्रद्धालुओं की गिनती, जानें कैसे होता है विशाल भीड़ का सटीक आकलन?

प्रयागराज में इस साल का कुंभ मेला 13 जनवरी से शुरू होकर 26 फरवरी तक चलेगा। पहले शाही स्नान (14 जनवरी) के दिन प्रशासन ने 3.5 करोड़ से अधिक श्रद्धालुओं के संगम में डुबकी लगाने का दावा किया है। अब तक 6 करोड़ श्रद्धालुओं ने स्नान किया है, और 45 दिनों के इस आयोजन में कुल 45 करोड़ श्रद्धालुओं के आने की उम्मीद है। लेकिन इतने विशाल आयोजन में सही गिनती कैसे की जाती है? इसके लिए कुंभ में आधुनिक तकनीक और परंपरागत तरीकों का सहारा लिया जाता है।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: कैसे शुरू हुई गिनती?

कुंभ मेले में श्रद्धालुओं की गिनती का सिलसिला 19वीं सदी में शुरू हुआ था। 1882 के कुंभ में अंग्रेजों ने प्रमुख रास्तों पर बैरियर लगाकर और रेलवे टिकट की बिक्री के आधार पर भीड़ का अनुमान लगाया। उस समय लगभग 10 लाख लोगों के संगम तक पहुंचने का अनुमान था। 1906 के कुंभ में करीब 25 लाख और 1918 के महाकुंभ में लगभग 30 लाख लोगों ने संगम में डुबकी लगाई।

आधुनिक तकनीक: AI और CCTV की भूमिका

आज के समय में कुंभ मेले की भीड़ का आकलन करने के लिए अत्याधुनिक तकनीकों का उपयोग किया जाता है। इस बार मेले में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और सीसीटीवी कैमरों का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल हो रहा है। 200 स्थानों पर अस्थाई सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं। पूरे प्रयागराज शहर में 1107 अस्थाई कैमरे और 100 से अधिक पार्किंग स्थलों पर 700 से अधिक कैमरे लगाए गए हैं। ये कैमरे श्रद्धालुओं और वाहनों की संख्या रिकॉर्ड कर प्रशासन को सटीक जानकारी देने में मदद करते हैं।

नाव, वाहन और साधु-संतों का योगदान


श्रद्धालुओं की गिनती में नाव, ट्रेन, बस और निजी वाहनों से आने वाले लोगों को भी शामिल किया जाता है। साधु-संतों के अखाड़ों और उनके भक्तों की संख्या को भी कुल आंकड़ों में जोड़ा जाता है। हालांकि, इस प्रक्रिया में एक ही व्यक्ति की गिनती कई बार हो सकती है, क्योंकि श्रद्धालु अलग-अलग घाटों पर स्नान करते हैं या मेले के विभिन्न हिस्सों में घूमते हैं।

2013 में अपनाया गया सांख्यिकीय मॉडल

2013 के कुंभ में पहली बार भीड़ की गिनती के लिए सांख्यिकीय मॉडल का उपयोग किया गया। इसमें स्नान के लिए आवश्यक जगह और समय को आधार बनाया गया। प्रशासन के अनुसार, एक व्यक्ति को स्नान के लिए 0.25 मीटर जगह और 15 मिनट का समय चाहिए। इस प्रकार, एक घंटे में एक घाट पर लगभग 12,500 लोग स्नान कर सकते हैं। इस साल प्रयागराज में 44 घाट तैयार किए गए हैं। इन आंकड़ों के आधार पर, प्रशासन भीड़ का अनुमान लगाता है।

पहले कैसे होती थी गिनती?

2013 से पहले श्रद्धालुओं की संख्या का अनुमान जिलाधिकारी (DM) और पुलिस अधीक्षक (SSP) की रिपोर्ट के आधार पर लगाया जाता था। इसमें बस, ट्रेन, और निजी वाहनों से आने वाले लोगों के आंकड़ों को शामिल किया जाता था। इसके अलावा, अखाड़ों से भी भक्तों की जानकारी ली जाती थी।

प्रशासनिक आंकड़ों पर सवाल


हालांकि प्रशासन AI और सांख्यिकीय मॉडलों का उपयोग कर रहा है, कई रिपोर्ट्स में दावा किया गया है कि वास्तविक और अनुमानित आंकड़ों में अंतर हो सकता है। कुंभ की विशालता और बढ़ती भीड़ के कारण यह प्रक्रिया और अधिक जटिल हो गई है। कुंभ मेला केवल एक आध्यात्मिक आयोजन नहीं, बल्कि यह भारत की सांस्कृतिक धरोहर और आधुनिक तकनीक के मेल का अद्भुत उदाहरण भी है। श्रद्धालुओं की गिनती के लिए अपनाए गए ये तरीके इस महायोजना को व्यवस्थित और सुचारु रूप से संचालित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।