2 अक्टूबर विशेष : गाँधी जी का दक्षिण अफ्रीका का जीवन, होना पड़ा था रंग भेद का शिकार

2 अक्टूबर 1869 को महात्मा गाँधी गुजरात के पोरबंदर में जन्मे थे। आज के दिन पूरे देश में गांधी जयंती मनाई जाती हैं। अहिंसा के पुजारी होने के कारण गांधीजी के जन्मदिवस को 'अहिंसा दिवस' के रूप में भी बनाया जाता हैं। गांधीजी ने सत्य और अहिंसा को अपना हथियार बनाते हुए ब्रिटिश हुकूमत को हिलाकर रख दिया था। लेकिन क्या अप जानते हैं कि गांधीजी दक्षिण अफ्रीका में एक नौकरी के लिए भी गए थे। आज हम आपको गाँधी जी का दक्षिण अफ्रीका के जीवन के बारे में आपको बताने जा रहे हैं।

यह काल 1893 से 1914 तक का था कहा जा सकता हैं कि इसी काल ने गाँधी जी को एक साधारण व्यक्ति से स्वतंत्रता सेनानी बनने की तरफ प्रेरित किया होगा। उन दिनों दक्षिण अफ्रीका में काले गौरे का भेद चरम सीमा पर था, जिसका शिकार गाँधी जी को भी बनना पड़ा। एक घटना जिसे हम सबने सुना हैं उन दिनों गाँधी जी के पास फर्स्ट क्लास का टिकट होते हुए भी उन्हें थर्ड क्लास में जाने को कहा गया, जिसे उन्होंने नहीं माना और इसके कारण उन्हें ट्रेन से बाहर फेंक दिया गया। उन्हें जीवन व्यापन में भी कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। यहाँ तक की न्याय की उम्मीद में जब न्याय पालिका से गुहार की गई, तब भी उन्हें अपमानित किया गया। इन सभी गतिविधियों के कारण गाँधी जी के मन में कहीं ना कही स्वदेश की परतंत्रता का विचार तेजी पर था, उन्हें महसूस हो रहा था कि देश के लोग किस तरह से आधीन होकर अपने आप को नित प्रतिदिन अपमानित होता देख रहे हैं। शायद इसी जीवन काल के कारण गाँधी जी ने स्वदेश की तरफ रुख लिया और देश की आजादी में अपने आपको को समर्पित किया।

स्वदेश लौटकर गाँधी जी ने सबसे पहले किसान भाईयों को एक कर लुटेरे जमीदारों के खिलाफ आवाज उठाने के लिए प्रेरित किया। वे जमींदार भी अंग्रेजो के हुक्म के आधीन थे। राज कोष के लिए दो तीन गुना कर वसूला जाने लगा। इस तरह गरीबों को जानवरों की जिन्दगी से आजाद करने के लिए 1918 में गाँधी जी ने गुजरात के चंपारण और खेड़ा नामक स्थान पर लोगो का नेतृत्व किया।

सबसे पहले उनके जीवन को एक सही दिशा में ले जाने के लिए उन्हें स्वच्छता का पाठ सिखाया, फिर कर का विरोध करने के लिए मार्गदर्शन दिया। सभी ने एक जुट होकर अंग्रेजो एवम जमींदार के खिलाफ आवाज उठाई, जिसके फलस्वरूप गाँधी जी को जेल में डाल दिया गया और पुलिस फ़ोर्स को जनता को डराने का आदेश दिया गया, लेकिन इस बार सभी ने आन्दोलन का रास्ता चुना और गाँधी जी को बाहर निकालने के लिए आवाज बुलंद की।

इस रैली का नेतृत्व लोह पुरुष वल्लभभाई पटेल ने किया और परिणाम स्वरूप गाँधी जी को रिहाई मिली। यह पहली बड़ी जीत साबित हुई। इस चंपारण खेड़ा आन्दोलन के कारण गाँधी जी को देश में पहचाना जाने लगा। लोगों में जागरूकता आने लगी और यही से देशव्यापी एकता की शुरुवात हो गई।और इसी समय इन्हें “बापू” कहकर पुकारा जाने लगा।