सूरत हादसा: घड़ी से और मोबाइल पर घंटी देकर परिजनों ने की मृतक बच्चों की पहचान

गुजरात के सूरत स्थित तक्षशिला कॉम्प्लेक्स में शुक्रवार देर शाम लगी भीषण आग की वजहों की अभी जांच की जा रही है। हालांकि शुरुआती छानबीन में सामने आया है कि इस इमारत के पास लगे बिजली के खंबे (इलेक्ट्रिल पोल) में शॉर्ट सर्किट के बाद आग लगी थी। इसी आग पर वक़्त रहते किसी ने ध्यान नहीं दिया और वो तेज़ी से फैल गई। वही आग लगने की घटना में मरने वालों की संख्या 21 हो गई है। 26 से ज्यादा घायल हैं। मरने वालों में एक टीचर और 20 बच्चे शामिल हैं। आग के बाद अस्पताल में भर्ती लोगों में से तीन की हालत गंभीर बनी हुई थी, लेकिन इनको बचाया नहीं जा सका। हादसा इतना दर्दनाक था कि परिजन को अपने मृतक बच्चों की पहचान करना मुश्किल हो गया। उन्होंने घड़ी से और मोबाइल पर घंटी देकर शिनाख्त की। कई तो घंटों तक भटकते रहे। हादसा शुक्रवार दोपहर 3:40 बजे शॉर्ट सर्किट की वजह से हुआ। प्रत्यदर्शियों के मुताबिक 10 से ज्यादा बच्चे जान बचाने के लिए दूसरी और तीसरी मंजिल से नीचे कूद गए थे। फिलहाल इस मामले की जांच सूरत क्राइम ब्रांच को सौंप दी गई है। इस हादसे के बाद 24 जुलाई तक रिहायशी और कमर्शियल इलाकों में चल रहे कोचिंग बंद करने का फैसला किया गया है। वहीं, गुजरात सरकार ने पीड़ित परिवारों को चार-चार लाख रुपए के मुआवजे का एलान किया है।

तीन लोगों के खिलाफ गैर इरादतन हत्या का केस दर्ज

इस मामले में पुलिस ने तीन लोगों के खिलाफ गैर इरादतन हत्या का केस दर्ज किया है। आरोपियों में हरसुल वेकरिया उर्फ एचके, जिज्ञेश सवजी पाघडाल और भार्गव बूटाणी शामिल हैं। पुलिस की प्राथमिक जांच में पता चला है कि हरसुल और जिज्ञेश ने बिल्डर से पूरी मंजिल खरीदी थी, उसके बाद अवैध निर्माण करवाया था। जबकि, भार्गव बूटाणी ड्राइंग क्लासेस का संचालक है।

18 साल की जाह्नवी चतुरभाई वसोया और 17 साल की कृति नीलेश दयाल की पहचान उनकी घड़ियों से हुई। इनके परिजन ने बताया कि दोनों इंस्टीट्यूट में पढ़ने आती थीं। कुछ दिन पहले इन्हें घड़ी दिलाई थी। कुछ परिजन बच्चों को ढूंढते हुए स्मीमेर अस्पताल पहुंचे। इसी तरह 18 साल की एशा खड़ेला ड्रॉइंग सीखने जाती थी। पिता ने एशा के मोबाइल पर फोन किया, तो घंटी मोर्चरी में रखे शव से चिपके मोबाइल पर बजी। वहीं, मौजूद एक कर्मचारी ने फोन उठाया और पिता को पूरी घटना बताई। एशा पूरी तरह जल चुकी थी, लेकिन संयोग से फोन बच गया था।

प्लास्टिक के बोरो में लाई गई लाशें

- स्मीमेर अस्पताल में एक के बाद एक करीब 10 एम्बुलेंस में 17 शव 30 मिनट में पहुंचाए गए। शव चादर और प्लास्टिक के बोरों में लाए गए। उधर, पीड़ित बच्चों के परिजन का अस्पताल पहुंचना शुरू हो गया था।

- शव तो उनके सामने थे, लेकिन उन्हें पहचानना मुश्किल था। उनकी पहचान के लिए कोई पासपोर्ट फोटो तो कोई मोबाइल में फोटो लेकर आया था। बेहाल होकर वे अपने लापता परिजन और बच्चों की फोटो सभी को बताकर पहचान की कोशिश करते देखे गए।

हादसे के वक्त 60 बच्चे अलग-अलग क्लासेज में मौजूद थे

घटना के समय 15 से 22 की उम्र के 60 छात्र-छात्राएं दूसरी और तीसरी मंजिल पर चलने वाली दो आर्ट-हॉबीज क्लासेज अटेंड कर रहे थे। हादसा गुरुवार दोपहर 3:40 बजे हुआ। शाम को करीब 7:30 बजे तक आग बुझ पाई। 13 बच्चों ने दूसरी और तीसरी मंजिल से छलांग लगाई। इनमें से तीन की कूदने से मौत हुई।

मरना तो तय था मैंने सोचा कूद गया तो बच जाऊंगा

- 15 साल के राम वाघाणी ने बताया, मैं अलोहा के नाम से चल रहे माइंड फ्रेश यानी कि मेंटली डेवलप क्लासेस में था तभी धुआं चारों ओर फैलने लगा। मैडम जेनीशाबेन के साथ मैं भी तीसरी मंजिल पर गया। हमारे पास तीसरी मंजिल से कूदने के सिवाय दूसरा कोई रास्ता नहीं था। अब तो मरना ही है, यह सोचकर कूद गया। शुक्र है बच गया।

- इस हादसे के दौरान जब कई लोग मोबाइल से वीडियो बना रहे थे, एक शख्स ऐसा भी था जिसने जान की परवाह नहीं की और दूसरी मंजिल तक चढ़ गया। केतन जोरवाडीया की बहादुरी के बाद कई और लोगों ने आगे आकर मदद करना शुरू किया था।

- हॉस्पिटल में भर्ती रेंसी ने बताया, घटना के समय वे क्रिएटर इंस्टीट्यूट में क्लास में थीं। क्लास में 22 लोग थे। दो-तीन छोटे बच्चे भी थे। कॉम्प्लेक्स में एंट्री-एग्जिट एक ही है। इसलिए धुएं और लपटों से सांस लेना भी मुश्किल हो गया था। हमारी इंस्टीट्यूट के इंस्ट्रक्टर बचने के लिए खुद ही कूद गए थे। हमने सोचा कि अंदर रहे तो जलकर मरेंगे, कूदे तो हाथ-पैर ही टूटेंगे शायद जान बच जाए।