फैक्ट्रियों से वसूली, नाम लेने भर से बसों में नहीं लिया जाता किराया ...कुछ ऐसा था विकास दुबे का खौफ

कानपुर में 8 पुलिसकर्मयों की हत्या के आरोपी विकास दुबे का नाम आज हर किसी की जुबान पर है। बीते 30 वर्षों से ज्यादा समय से कानपुर और पास के जिलों में विकास दुबे का खौफ है और आए दिन रसूखदार लोगों की हत्या के पीछे विकास दुबे का ही नाम आता है। विकास दुबे कई बार जेल गया, लेकिन उसका खौफ इतना है कि कोई सबूत मजबूती से खड़ा ही नहीं हो पाया। न प्रशासन के लोग, न जनता और न ही किसी और ने डर के मारे विकास दुबे के बारे में कुछ बोला। विकास दुबे की सबसे खास बात ये है कि वह मायावती की बसपा सरकार के समय फला-फूला और आपराधिक गतिविधियों को अंजाम देते हुए खूब पैसे भी बनाए। इसके बाद जब समाजवादी पार्टी की सरकार आई, तो उसमें भी वह किसी न किसी सत्ताधारी नेता के संपर्क में रहकर खुद को बचाता रहा।

3 दशक पहले पिता के अपमान का बदला लेने के लिए लोगों की पिटाई करने से लेकर बुलेट गैंग बनाकर घूमने वाले लड़के के पीछे आज पूरे प्रदेश की पुलिस और एसटीएफ हाथ धोकर पीछे पड़ी है। लेकिन बिकरू गांव और आसपास के लोगों के लिए यह नया नाम नहीं है। उसका खौफ ऐसा था कि एक समय बिना विकास की इजाजत के कोई पानी भी नहीं पी सकता था। फैक्ट्रियां उसे चंदा पहुंचाती थीं और नाम लेने भर से बसों में किराया नहीं लिया जाता था।

विकास खुद ही पुलिस और अदालत था विकास

लोगों का कहना है कि विकास खुद आसपास के 8-10 गांवों में पुलिस और अदालत था। चौबेपुर थाने की पुलिस को वह जेब में रखकर घूमता था। किसी भी केस में पुलिस गांव नहीं आई। मामूली सी बात पर ही वह बच्चों से लेकर बुजुर्गों को बेरहमी से पीटता था। हाथ-पैर तोड़ना उसके लिए मामूली बात थी। जमीन की खरीद-फरोख्त हो, अवैध कब्जा हो या छिनैती समेत पैसे के लिए किसी का मर्डर करना, हर काम वह आसानी से करता गया और सबूत के अभाव में बचता गया। लोग डर के मारे उसके खिलाफ बयान ही नहीं देते। उसके डर का आलम ऐसा है कि लोग अपने छोटे-बड़े झगड़े को सुलझाने के लिए पुलिस की बजाय विकास दुबे के पास जाना चाहते हैं। ऐसे में पुलिस हाथ पर हाथ धरे बैठी रह जाती है।

उसके कहर से लोग सदमे में चले गए

गांव वाले बताते हैं कि 1992 में सांप्रदायिक हिंसा हुई थी। विकास ने यहां खूब कहर बरपाया था। कई लोग अपनी याददाश्त खो बैठे। कई सदमे में चल बसे। कुछ ऐसे बुजुर्ग अब भी गांव में मौजूद हैं। राजनीतिक संरक्षण के चलते उसका बाल भी बांका नहीं हुआ।

असलहे लेकर चलने वाले बुलेट गैंग का मुखिया, दूसरे गांव में लोगों को घुसकर मारा

90 के दशक के शुरुआती दिनों में स्थानीय नेताओं का संरक्षण पाकर विकास ने बुलेट गैंग बनाई। बुलेट बाइक पर खुलेआम असलहा लेकर चलने वाले नौजवानों ने छोटे-मोटे अपराध कर चौबेपुर, शिवली और बिल्हौर में पैर पसारे। प्रयोग कामयाब रहा और विकास सबका मुखिया बन गया। विकास शुरू से ही क्रूर था। 1990 में विकास ने अपने पिता के अपमान का बदला लेने के लिए पास के ही डिब्बा नवादा गांव में घुसकर लोगों की पिटाई की थी। इसके बाद वह जरायम की दुनिया में कदम बढ़ाता गया और अब 8 पुलिसकर्मियों की हत्या करने के बाद पूरे प्रदेश की पुलिस उसकी तलाश में लगी है।

ट्रकों से माल लूटना बाएं हाथ का खेल, नाम लेने भर से बसों में नहीं लगता था किराया

विकास के लिए माल लदे ट्रकों में लूट करवाने जैसे काम बेहद आसान चीज हो गई थी। नेताओं के संरक्षण में लूट का माल मसलन आलू और तेल के टिन बिकरू गांव में बंटते थे। यही वजह थी कि आज तक बिकरू गांव का कोई भी व्यक्ति विकास का विरोधी नहीं हुआ। वे विकास के लिए किसी भी स्तर तक जाने को तैयार रहते थे। इतना ही नहीं क्षेत्र में चलने वाली प्राइवेट बसों में विकास का नाम बताने पर कोई किराया नहीं लगता था। कई बस स्टैंड उसके गुर्गे चलाते हैं। एक ग्रामीण ने आरोप लगाया कि विकास गांव के भोले-भाले युवकों के नाम पर असलहों के लाइसेंस लिए थे। पुलिस ने कभी तफ्तीश नहीं की। उस पर पीएम आवास योजना में भी कई लोगों के नाम पर घर रजिस्टर्ड कराने का आरोप है।

फैक्ट्रियों से वसूली करता था, कुएं से पानी भरने में लेनी होती थी इजाजत

विकास दुबे का खौफ ऐसा था कि आसपास की लगभग 400 फैक्ट्रियां उसको चढ़ावा भेजा करती थी। नामी फैक्ट्रियों से उसे सालाना चंदा मिलता था। विकास की कमाई का दूसरा बड़ा जरिया विवादास्पद संपत्ति को खरीदना था। क्षेत्र में किसी भी संपत्ति की खरीद-बिक्री पर विकास को टैक्स देना जरूरी था। वहीं, स्थानीय लोगों के अनुसार कई साल पहले गांव में पानी के लिए नल नहीं लगे थे। पानी की समस्या होने पर लोग विकास के घर के पास बने कुएं से पानी भरने आते थे। इसके लिए उन्हें बाकायदा दुबे से इजाजत लेनी पड़ती थी। बिना इजाजत लिए पानी भरने पर वह बेरहमी से पिटाई करता। कई बार तो उसने ऐसा करने वालों को कुएं में गिराकर मार डालने तक की कोशिश की थी।

बता दे, साल 2001 में जब प्रदेश में राजनाथ सिंह के नेतृत्व में बीजेपी सत्ता में थी तो विकास दुबे ने संतोष शुक्ला नामक मंत्री स्तर के एक बीजेपी नेता की थाने में घुसकर दिनदहाड़े हत्या कर दी। इस घटना में 2 पुलिसकर्मी भी शहीद हो गए थे। इस हत्याकांड के बाद विकास दुबे पूरे प्रदेश में छा गया और उसका खौफ इतना बढ़ा कि उसकी तूती बोलने लगी। इस हत्याकांड में विकास को गिरफ्तार तो किया गया, लेकिन किसी भी पुलिसकर्मी या अन्य लोगों ने उसके खिलाफ बयान नहीं दिया, जिसकी वजह से उसे रिहा कर दिया गया। विकास दुबे ने साल 2004 में कानपुर के केबल व्यवसायी दिनेश दुबे की हत्या करवा दी। प्रदेश में जिस भी पार्टी की सरकार हो, विकास दुबे के किसी न किसी बड़े नेता से संबंध रहे और इसकी वजह से वह हर कांड के बाद बचता गया। विकास दुबे ने बाद में बीएसपी से जुड़ पंचायत स्तरीय चुनाव लड़ा और लंबे समय से वह या उसकी फैमिली में से कोई पंचायत चुनाव जीतता आ रहा है।