दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने दावा किया था कि पिछले कुछ वर्षों के दौरान वायु प्रदूषण में 25 प्रतिशत की कमी आई है। लेकिन पर्यावरण के लिए काम करने वाली गैरसरकारी संस्था ग्रीनपीस इंटरनेशनल केजरीवाल के इस दावे को गलत बताया है। ग्रीनपीस के मुताबिक, दिल्ली में पिछले कुछ सालों में प्रदूषण का स्तर 25 प्रतिशत नहीं घटा है। संस्था ने कहा कि अगर दिल्ली और आसपास के राज्यों में वायु गुणवत्ता और सैटेलाइट डेटा के साथ पेट्रोल-डीजल जैसे जीवाश्म ईंधनों की बढ़ती खपत के आंकड़ों को मिलाकर देखें तो सरकार का पिछले कुछ सालों में 25 प्रतिशत प्रदूषण घटने का दावा ठीक नहीं लगता।
दिल्ली सरकार के विज्ञापनों में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने दावा किया जा रहा है कि पीएम 2।5 ( हवा में मौजूद 2.5 माइक्रॉन के बराबर या कम व्यास के कण) का स्तर 2016 और 2018 के बीच घटकर औसतन 115 रह गया है, जो 2012 और 2014 के बीच औसतन 154 था। इन दावों को मानें तो प्रदूषण में 25 प्रतिशत की कमी आई है। हालांकि, ग्रीनपीस इंडिया ने कहा है कि उपग्रह के आंकड़े बताते हैं कि इन कणों में 2013 से 2018 के बीच कोई संतोषजनक कमी नहीं आई है। ग्रीनपीस के मुताबिक, दिल्ली में सरकार के दावे के उलट राज्य में पीएम 10 के स्तर में भी बढ़ोतरी हुई है। एनजीओ के मुताबिक, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी के एयर क्वालिटी मॉनिटरिंग स्टेशन के आंकड़ों के मुताबिक, 2018 में पीएम 10 का स्तर 2013, 2014 और 2015 से ज्यादा रहा है। इसी साल मार्च में ग्रीनपीस इंडिया और एयर विजुअल रिपोर्ट ने दिल्ली को दुनिया की सबसे ज्यादा प्रदूषित राजधानी करार दिया था। ग्रीनपीस ने कहा है कि यह उल्लेखनीय है कि दिल्ली और पड़ोस के दो राज्यों- हरियाणा और पंजाब में कोयले की खपत 2015-16 से 2018-19 के बीच 17.8 प्रतिशत बढ़ी है। रिपोर्ट में कहा गया है कि दूसरी ओर इस दौरान पेट्रोलियम उत्पादों की खपत 3.3 प्रतिशत बढ़ी, जिससे प्रदूषण बढ़ा।ग्रीनपीस की रिपोर्ट पर प्रतिक्रिया देते हुए आप प्रवक्ता सौरभ भारद्वाज ने कहा कि उनके लिए यह विश्लेषण महत्वहीन है। उन्होंने कहा कि केंद्र ने उच्चतम न्यायालय में दायर हलफनामे में कहा है कि दिल्ली में प्रदूषण घटा है और अक्टूबर और नवंबर में प्रदूषण पराली जलाने से हो रहा है।