जरुरी जानकारी : आइए जानते हैं एक नोट को छापने में सरकार का कितना होता है खर्चा

भारत में नोट छापने का एकाधिकार भारतीय रिज़र्व बैंक के पास है। भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की स्थापना 1935 में आरबीआई अधिनियम 1934 द्वारा की गई थी। आरबीआई भारत की सर्वोच्च मौद्रिक संस्था है। यह खासतौर पर विदेशी रिजर्व, भारत सरकार के बैंकर और ऋण नियंत्रक के रूप में काम करता है। आरबीआई के पास भारतीय अर्थव्यवस्था में नोटों की छपाई और पैसों की आपूर्ति का प्रबंधन करने की जिम्मेदारी भी होती है. भारतीय रिजर्व बैंक की शुरूआत पांच करोड़ रुपये की धनराशि के साथ की गई थी। भारत में कितनी मुद्रा छापी जाएगी ये न्यूनतम आरक्षी प्रणाली द्वारा निर्धारित किया जाता है। साल 1957 से यह प्रणाली पूरे देश में इसी तरह से काम कर रही है। इस प्रणाली के अनुसार आरबीआई को 200 करोड़ की संपत्ति अपने पास रखनी होती है, जिसमे 115 करोड़ रुपये के सोने का भण्डार और 85 करोड़ रुपये की विदेशी मुद्रा रखनी अनिवार्य है। इतनी संपत्ति अपने पास रखने के बाद आरबीआई अर्थव्यवस्था की जरुरत के हिसाब से कितनी भी मात्रा में नोट छाप सकता है। इसे ही न्यूनतम आरक्षी प्रणाली कहा जाता है।

- 1 रुपये का नोट छापने में 1.14 रुपये खर्च होते हैं, यह एकमात्र ऐसा नोट है जिसकी बाजार कीमत वास्तविक लागत से ज्यादा है।

- 5 रुपये का नोट छापने में 48 पैसे का खर्च आता है।

- 10 रुपये का नोट छापने में 96 पैसे का खर्च आता है।

- 20 रुपये का नोट छापने में 96 पैसे का खर्च आता है।

- 50 रुपये का नोट छापने में 1.81 रुपये का खर्च आता है।

- 100 रुपये का नोट छापने में 1.20 रुपये का खर्च आता है।

- 200 रुपये का नोट छापने में 2.15 रुपये का खर्च आता है।

- 500 रुपये का नोट छापने में 2.13 रुपये का खर्च आता है।

- 2000 रुपये का नोट छापने में 3.53 रुपये का खर्च आता है।