लॉकडाउन का दर्द / 65 किलोमीटर पैदल चली गर्भवती महिला

लॉकडाउन में रोजी-रोटी का जुगाड़ बंद हुआ तो प्रवासी मजदूरों के लिए भूखों मरने के दिन आ गए। इसलिए पैदल ही अपने घर को निकल पड़े। कोई 500 किलोमीटर का सफर तय कर रहा है तो कोई 2500 किलोमीटर का। देश की सड़कों पर इस समय मजबूरी रेंग रही हैं। इनकी आपबीती सुनकर शायद इनके दर्द का अहसास हमें भी हो जाए।

गुड़गांव में काम करने वाली सोनी 8 महीने की गर्भवती हैं। वे अपने चाचा के यहां रहती थी। लॉकडाउन की वजह से नौकरी चली गई। भूखों मरने की नौबत आ गई। इस महिला के साथ इसका 17 साल का भाई भी है। ऐसे में तीनों से सोचा कि अपने गांव कानपुर चलते है और 670 रुपये इमर्जेंसी के लिए अलग निकालकर तीनों गुड़गांव से पैदल कानपुर जाने के लिए निकले पड़े। सोनी का पति वहीं रहता है। तपती धूप में पैदल 65 किलोमीटर चलते-चलते बुधवार शाम सोनी गाजियाबाद पहुंची। लालकुआं के पास सोनी सड़क पर बैठ गई और दर्द से बिलखने लगी। उसका पेट में दर्द हो रहा था। एक कार रोकने की कोशिश की मगर वो भी मदद नहीं कर सकता था क्‍योंकि लॉकडाउन में तीन से ज्‍यादा लोग गाड़ी में बैठ नहीं सकते।

अच्‍छी बात ये रही कि कुछ दूरी पर मिले पुलिसवालों ने सोनी को अस्‍पताल में भर्ती कराया। फिर उसके पति को फोन किया। पास का इंतजाम कराया। वो अगले दिन उसी कार में वापस आया जिस कार को रोकने की कोशिश सोनी के चाचा कर रहे थे। अब सोनी सकुशल अपने घर पर है।