रानी लक्ष्मी बाई के बचपन से जुडी कुछ रोचक बाते

झांसी की रानी लक्ष्मी बाई की शौर्य गाथाएं किसको नहीं पता! उनका जिक्र आते ही हम अपने बचपन में लौट जाते हैं और सुभद्रा कुमारी चौहान की वह पंक्तियां गुनगुनाने लगते हैं। जिनमें वह कहती हैं कि खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी। तो आईये आज हम चलते हैं रानी लक्ष्मीबाई की बचपन की ओर और जानने की कोशिश करते हैं कि उनका बचपन कैसा था।

1835 में वाराणसी जिले के भदैनी में मोरोपन्त तांबे के घर में एक बची ने जन्म लिया। नाम रखा गया मनिकार्निका. नाम बड़ा था, इसलिए घर वालों ने उसे मनु कहकर बुलाना शुरु कर दिया, जिसे बाद में दुनिया ने लक्ष्मीबाई के नाम से जाना। मनु बोलना नहीं सीख पाई थी। पर उनके चुलबुलेपन ने उन्हें सबका दुलारा बना दिया।

आम लड़कियों से बिल्कुल अलग थीं

देखते ही देखते मनु एक योद्धा की तरह कुशल हो गई। उनका ज्यादा से ज्यादा वक्त लड़ाई के मैदान गुजरने लगा। कहते है कि मनु के पिता संतान के रुप में पहले लड़का चाहते थे, ताकि उनका वंश को आगे बढ सके। लेकिन जब मनु का जन्म हुआ तो उन्होंने तय कर लिया था कि वह उसे ही बेटे की तरह तैयार करेंगे। मनु ने भी पिता को निराश नहीं किया और उनके सिखाए हर कौशल को जल्द से जल्द सीखती गईं। वह इसके लिए लड़कों के सामने मैदान में उतरने से कभी नहीं कतराईं। उनको देखकर सब उनके पिता से कहते थे मोरोपन्त तुम्हारी बिटियां बहुत खास है। यह आम लड़कियों की तरह नहीं है।

बचपन से ही थी दृढ़ निश्च्यवादी

मनु को बचपन से ही मानते थे कि वह लड़कों के जैसे सारे काम कर सकती हैं। एक बार उन्होंंने देखा कि उनके दोस्त नाना एक हाथी पे घूम रहे थे। हाथी को देखकर उनके अन्दर भी हाथी की सवारी की जिज्ञासा जागी. उन्होंंने नाना को टोकते हुए कहा कि वह हाथी की सवारी करना चाहती हैं. इस पर नाना ने उन्हें सीधे इनकार कर दिया। उनका मानना था कि मनु हाथी की सैर करने के योग्य नहीं हैं. यह बात मनु के दिल को छू गई और उन्होंंने नाना से कहा एक दिन मेरे पास भी अपने खुद के हाथी होंगे। वह भी एक दो नहीं बल्कि दस-दस। आगे जब वह झांसी की रानी बनी तो यह बात सच हुई.