लोकसभा-विधानसभा चुनाव एक साथ कराने की कोई संभावना नहीं: मुख्य चुनाव आयुक्त

वन नेशन-वन इलेक्शन यानी एक देश-एक चुनाव की बीजेपी BJP की कोशिशों को चुनाव आयोग Election Commission ने ख़ारिज कर दिया है। मुख्य चुनाव आयुक्त ओ पी रावत ने कहा कि जब तक इसका कोई कानूनी ढांचा तैयार नहीं हो जाता, यह मुमकिन नहीं है।

औरंगबाद में एक संक्षिप्त पत्रकार वार्ता में जब उनसे पूछा गया कि क्या अब भी लोकसभा Loksabha और विधानसभा Vidhan Sabha चुनाव Election एक साथ कराने की संभावना है, ओपी रावत O P Rawat ने कहा, 'कोई चांस नहीं'। आपको बता दें कि लोकसभा चुनाव अगले साल अप्रैल-मई में प्रस्तावित हैं। इस साल मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और मिजोरम में विधानसभा चुनाव होने हैं।

गौरतलब है कि केंद्र की मोदी सरकार एक साथ लोकसभा और विधानसभा चुनाव करवाने के पक्ष में है। केंद्र ने इसके पीछे तर्क दिया है कि एक साथ होने से सरकार के खर्च में कमी आएगी और राजस्व की बचत होगी। हालांकि बीजेपी ने कहा है कि एक देश एक चुनाव का उसका प्रस्ताव लंबी अवधि का लक्ष्य है और पार्टी इसे तुरंत लागू करने के लिए दबाव नहीं डाल रही।

एक अनुमान के अनुसार, 16वीं लोकसभा के चुनाव पर कोई 3,800 करोड़ रुपये खर्च हुए। यदि विधानसभा चुनावों पर होने वाले खर्चों को जोड़ा जाए, तो यह राशि बहुत बड़ी रकम हो जाएगी। एक साथ चुनाव होने से राजनीतिक दलों के चुनाव पर होने वाले खर्च में भारी कमी आएगी, जिसके अपने लाभ हैं।

हालांकि लोकसभा और विधानसभाओं का चुनाव एक साथ कराने का सुझाव कोई नया नहीं है। न्यायमूर्ति जीवन रेड्डी ने चुनाव सुधार संबंधी विधि आयोग के प्रतिवेदन में 1999 में इसकी अनुशंसा की थी।भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता श्री लालकृष्ण आडवाणी ने 2009 में इसका प्रतिपादन किया था। पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी और संसद के कार्मिक विभाग संबंधी समिति ने भी इसका समर्थन किया।

उल्लेखनीय है कि पहली लोकसभा से लेकर चौथी लोकसभा तक (1952, 1957, 1962 और 1967) लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ ही होते रहे। यह संस्थापित परंपरा 1969 में टूटी, जब लोकसभा समय से पहले भंग कर दी गई थी।