नई दिल्ली। देश में क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम (आपराधिक न्याय प्रणाली) में सुधार के लिए लोकसभा में पेश तीन नए आपराधिक कानून विधेयकों को केंद्र ने वापस ले लिया है। यह फैसला केंद्र सरकार ने संसदीय स्थायी समिति (स्टैंडिग कमेटी) की सिफारिशों के बाद लिया है। जानकारी के मुताबिक स्टैंडिग कमेटी की कुछ सिफ़ारिशों के आधार पर नए बिल लाए जाएंगे।
दरअसल सरकार ने भारतीय न्याय संहिता विधेयक 2023, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता विधेयक और भारतीय साक्ष्य विधेयक 2023 को वापस ले लिया है। यह विधेयक 11 अगस्त को मानसून सत्र के दौरान संसद में पेश किए गए थे। यह तीनों विधेयक भारतीय दंड संहिता, आपराधिक प्रक्रिया संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम के बदले लाए गए थे।
इसके बाद तीनों विधेयकों को संसद की चयन समिति के पास भेजा गया था। समिति को तीन महीने के अंदर अपनी रिपोर्ट सौंपनी थी। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक संसद में बिल पेश करने के दौरान केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि इनका मकसद सजा नहीं, बल्कि न्याय दिलाना है।
संसदीय पैनल ने सुझाए बदलावइन कानूनों में संसदीय पैनल द्वारा सुझाए गए कुछ बदलावों को दर्शाया गया है। भारतीय न्याय संहिता (BNS) 2023 को भारतीय दंड संहिता (IPC) की जगह लाया गया है। भारतीय न्याय संहिता विकृत दिमाग वाले व्यक्ति को अभियोजन से सुरक्षा प्रदान करता है। BNS इसे मानसिक बीमारी वाले व्यक्ति में बदल देता है। भाजपा सांसद बृज लाल की अध्यक्षता वाले संसदीय पैनल की राय थी कि सरकार को ‘अस्वस्थ दिमाग’ शब्द को वापस लाना चाहिए क्योंकि मानसिक बीमारी का अर्थ “बहुत व्यापक” है और इसमें मूड स्विंग और स्वैच्छिक नशा भी शामिल हो सकता है।
पैनल की रिपोर्ट में कहा गया है, “समिति ने सिफारिश की है कि इस संहिता में ‘मानसिक बीमारी’ शब्द को जहां कहीं भी हो, उसे ‘विक्षिप्त दिमाग’ में बदल दिया जा सकता है। ऐसा इसलिए क्योंकि व्यक्ति परीक्षण के दौरान समस्याएं पैदा कर सकता है और आरोपी केवल यह दिखा सकता है कि वह अस्वस्थ था। पैनल की रिपोर्ट में कहा गया है कि आरोपी यह दिखा सकता है कि अपराध करने के दौरान वह शराब या नशीली दवाओं के प्रभाव में था और उस पर मुकदमा नहीं चलाया जा सकता, भले ही उसने नशे के बिना अपराध किया हो।
सूत्रों के मुताबिक सरकार ने सुझाव मान लिया है। सरकार ने बीएनएस 2023 में आईपीसी की धारा 377 को एक बार फिर से लागू करके पुरुषों, महिलाओं और/या ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के बीच गैर-सहमति से यौन संबंध को अपराध मानने के प्रस्ताव को खारिज कर दिया है। हालांकि समिति ने चिंता व्यक्त की है कि विवाह संस्था की पवित्रता की रक्षा के लिए प्रावधान को बनाए रखने की आवश्यकता है, जबकि लिंग भेदभाव पहलू को संबोधित करने के लिए इसमें बदलाव किया जा सकता है।
सूत्रों ने बताया कि सरकार इससे सहमत नहीं है। दोबारा तैयार किए गए विधेयकों को संसद में इंडिया गठबंधन दलों के विरोध का सामना करना पड़ सकता है। विपक्षी दलों ने पहले ही तीन विधेयकों के साथ-साथ मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य ईसी (नियुक्ति, सेवा की शर्तें और कार्यालय की अवधि) विधेयक पर संसद में विरोध करने का फैसला किया है।
पैनल ने मांग की है कि तीनों विधेयकों को संयुक्त चयन समिति के पास भेजा जाए। गृह मामलों की संसदीय स्थायी समिति द्वारा विधेयकों की पहले ही जांच की जा चुकी है और सरकार द्वारा विपक्ष की मांग को स्वीकार करने की संभावना बहुत कम नजर आ रही है। 11 अगस्त को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने लोकसभा में तीन विधेयक पेश किए थे, जिन्हें उसी दिन स्थायी समिति को भेज दिया गया था।
IPC और CrPC क्या है?गौरतलब है कि भारतीय दण्ड संहिता (आईपीसी) की धाराएं गंभीर अपराधों के मामले में लगाई जाती हैं। यह अपराधों की परिभाषा के साथ-साथ उसके लिए तय सजा को बताती है। सिविल लॉ और क्रिमिनल भी आईपीसी के तहत आते हैं। भारतीय दण्ड संहिता में 23 चैप्टर हैं और 511 धाराएं हैं। पुलिस आपराधिक मामलों को आईपीसी के तहत दर्ज करती है, लेकिन उसके बाद की प्रक्रिया कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसिजर (CrPC) के तहत चलती है।