प्रयागराज। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने देश भर में जाति जनगणना की मांग पर जोर देते हुए शनिवार को कहा कि देश के 90 प्रतिशत लोग व्यवस्था से बाहर हैं और उनके हित में कदम उठाए जाने चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि कांग्रेस के लिए जाति जनगणना नीति निर्माण का आधार और साधन है।
संविधान सम्मान सम्मेलन को संबोधित करते हुए गांधी ने कहा, 90 प्रतिशत लोग व्यवस्था से बाहर बैठे हैं। उनके पास कौशल और ज्ञान है, लेकिन व्यवस्था से उनका कोई संबंध नहीं है। इसीलिए हमने जाति जनगणना की मांग उठाई है।
लोकसभा में विपक्ष के नेता ने कहा कि समाज के विभिन्न वर्गों की भागीदारी सुनिश्चित करने से पहले उनकी संख्या का पता लगाने की जरूरत है। उन्होंने कहा, कांग्रेस के लिए जाति जनगणना नीति निर्माण की नींव है। यह नीति निर्माण का एक साधन है। हम जाति जनगणना के बिना भारत की वास्तविकता में नीतियां नहीं बना सकते।
गांधी ने कहा कि संविधान की तरह ही जाति जनगणना भी कांग्रेस के लिए एक नीतिगत ढांचा और मार्गदर्शक है। उन्होंने कहा, हमारे संविधान की तरह ही, जो एक तरह से मार्गदर्शक है और जिस पर हर दिन हमला हो रहा है, जाति जनगणना, सामाजिक-आर्थिक सर्वेक्षण, संस्थागत सर्वेक्षण हमारा दूसरा मार्गदर्शक होगा।
उन्होंने कहा, हमें डेटा चाहिए। कितने दलित, ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग), आदिवासी, महिलाएं, अल्पसंख्यक और सामान्य जाति के लोग हैं। हम जाति जनगणना की इस मांग के माध्यम से संविधान की रक्षा करने की कोशिश कर रहे हैं।
गांधी ने कहा कि संविधान देश की 10 प्रतिशत आबादी के लिए नहीं बल्कि सभी नागरिकों के लिए है। संविधान की रक्षा गरीब लोग, मजदूर, आदिवासी करते हैं, उद्योगपति गौतम अडानी नहीं। अगर 90 प्रतिशत लोगों को भागीदारी के अधिकार नहीं मिलेंगे तो संविधान की रक्षा नहीं हो सकती। हमारा उद्देश्य संविधान की रक्षा करना है। यह (संविधान) गरीबों, किसानों और मजदूरों के लिए सुरक्षा कवच है। इसके बिना स्थिति वैसी ही होगी जैसी पहले राजा-महाराजाओं के समय हुआ करती थी, जो अपनी मर्जी से काम करते थे।
पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष ने आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राजाओं और बादशाहों के मॉडल को दोहराने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने कहा, आप (मोदी) खुद को गैर-जैविक मानते हैं। आप खुद को भगवान से जुड़ा हुआ मानते हैं। (लोकसभा) चुनाव के ठीक बाद, आपको संविधान के सामने झुकना पड़ा। यह हमने नहीं बल्कि लोगों ने किया है।
मोची, नाई, बढ़ई, धोबी और अन्य कुशल कामगारों के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा, सभी जिलों में प्रमाणन केंद्र खोले जा सकते हैं, जिसमें इन कुशल कामगारों के नेटवर्क का उपयोग किया जा सकता है।
मेरा दृष्टिकोण यह है कि यह पता होना चाहिए कि ओबीसी, दलितों और मजदूरों के हाथों में कितनी संपत्ति है। भारत के संस्थानों में इन लोगों की भागीदारी क्या है, चाहे वह नौकरशाही हो, न्यायपालिका हो या मीडिया हो? उन्होंने दावा किया कि 90 प्रतिशत भारतीयों का देश के शीर्ष निगमों, न्यायपालिका या मीडिया में कोई प्रतिनिधित्व नहीं है।
गांधी ने कहा, प्रधानमंत्री ने 25 लोगों के 16 लाख करोड़ रुपये के ऋण माफ किए, लेकिन इस सूची में एक भी दलित, आदिवासी या अल्पसंख्यक समुदाय का सदस्य नहीं था।