कर्नाटक: येदि हटे गरमाई सियासत! 5000 लिंगायत मठों के प्रमुख बोले- BJP को इसका नतीजा भुगतना पड़ेगा

कर्नाटक के मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा (Karnataka Chief Minister BS Yediyurappa) ने सोमवार को भावुक होकर अपने पद से इस्तीफा देने का ऐलान किया। येदि के इस्तीफे के बाद जहां भाजपा नए मुख्यमंत्री के चुनाव में जुटी है, तो वहीं कर्नाटक में सबसे असरदार लिंगायत मठों के प्रमुखों ने येदि को हटाने के फैसले को गलत बताया है। दरअसल, कर्नाटक के ताकतवर लिंगायत समुदाय से आते हैं। पहली बार वो वर्ष 2007 में मुख्यमंत्री बने थे। तब वो केवल एक हफ्ते तक ही कुर्सी पर रह पाए थे। इसके बाद वर्ष 2008 से 2011 तक राज्य के मुख्यमंत्री रहे लेकिन भ्र्ष्टाचार के आरोपों में इस्तीफा देना पड़ा। 2018 में राज्य में चुनावों के बाद वो केवल दो दिन के लिए मुख्यमंत्री बने और बहुमत साबित नहीं कर सके। हालांकि बाद में कांग्रेस और जेडीएस के 13 विधायकों के साथ आने से वो फिर मुख्यमंत्री बन गए।

मठाधीशों ने चेतावनी दी है कि भाजपा को इसका नतीजा भुगतना पड़ेगा। येदि पर भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते 2013 में भाजपा ने उन्हें हटाया था। नतीजा यह हुआ कि विधानसभा में भाजपा महज 40 सीटों पर सिमट गई थी।

कर्नाटक के मशहूर लिंगेश्वर मंदिर के मठाधीश शरन बासवलिंगा ने कहा, 'भाजपा ने बिना सोच-विचार के यह फैसला लिया है। लिंगायत मठाधीशों ने येदियुरप्पा को अपना कार्यकाल पूरा करने देने की मांग की थी, लेकिन लगता है भाजपा एक बार फिर भ्रमित हो गई है।'

राज्य के सभी मठों के मठाधीश एक बार फिर इस मुद्दे पर बैठक करेंगे। इसके लिए उनसे संपर्क किया जा रहा है। इस बात की पूरी संभावना है कि यह बैठक सोमवार को ही आयोजित की जाए।

शरनबासवलिंगा ने बताया कि येदियुरप्पा के इस्तीफे को लेकर मठाधीशों की बैठक में आगे की रणनीति पर फैसला लिया जाएगा। इससे पहले, रविवार को भी लिंगायत समुदाय के सभी मठाधीशों ने बैठक की थी।

बैठक में बीएस येदियुरप्पा को कर्नाटक का CM बनाए रखने की मांग करते हुए चेतावनी दी थी कि अगर उन्हें हटाया गया तो राज्य में बड़ा आंदोलन किया जाएगा। हालांकि, कल से आज तक येदियुरप्पा आलाकमान का फैसला स्वीकार करने की बात कह रहे हैं।

लिंगेश्वर मंदिर के मठाधीश शरन बासवलिंगा ने कहा कि दिल्ली के लोगों को नहीं पता है कि कर्नाटक में चुनाव कैसे होते हैं और कैसे जीते जाते हैं? यह सरकार बीएस येदियुरप्पा ने बनाई है। इसलिए उन्हें हटाना भाजपा को बड़े कष्ट में डाल सकता है।

झेलना पड़ेगा 5 हजार मठाधीश्वरों क विरोध

शरन बासवलिंगा ने कहा, 'यहां के मठाधीश्वर और करीब 5 करोड़ लोग उम्मीद कर रहे हैं कि भाजपा आलाकमान इन सभी हालात पर विचार करने के बाद ही फैसला लेगा। अगर बिना विचारे फैसला किया, तो राज्य के 5 हजार मठाधीश्वरों का एकजुट विरोध केंद्र को झेलना पड़ेगा।'

येदि को कार्यकाल पूरा करने देने की मांग

शरन बासवलिंगा ने कहा कि हम पूरी जिंदगी के लिए येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री बनाने के लिए नहीं कह रहे थे, बल्कि यह कार्यकाल पूरा करने के लिए कह रहे थे। हमें इस कार्यकाल में कोई दूसरा मुख्यमंत्री कबूल नहीं है। जो लोग उम्र को आधार बनाकर उन्हें हटाने की कोशिश कर रहे हैं, उन्हें पता होना चाहिए कि येदियुरप्पा की उम्र भले ही ज्यादा हो, लेकिन उनकी शक्ति बिल्कुल युवा जैसी है। यहां बूथ लेवल तक की जैसी जानकारी उन्हें है, वैसी किसी नेता को नहीं है।

दरअसल, लिंगायत समुदाय 1990 से भाजपा को समर्थन देता आ रहा है। शरन बासवलिंगा ने कहा कि येदियुरप्पा के लिंगायत समुदाय से होने की वजह से ही भाजपा को हमारा समर्थन है। उधर, कोट्टूर के वीरशैव शिवयोग मंदिर के लिंगायत समुदाय के मठाधीश्वर संगना बासव स्वामी ने कहा कि येदियुरप्पा को हटाने का षड्यंत्र राष्ट्रीय स्वयं सेवक संगठन का है। वे याद रखें कि कर्नाटक में लिंगायत की चलती है, संघ की नहीं।'

येदि को हटाने पर भारी नुक्सान हुआ था

भाजपा ने 2013 के विधानसभा चुनाव में बीएस येदियुरप्पा की मदद से लिंगायत समुदाय का समर्थन हासिल किया था। जब भाजपा ने येदियुरप्पा को भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते पार्टी से निकाला, तो लिंगायत समुदाय नाराज हो गया था। इसके बाद येदियुरप्पा ने कर्नाटक जनता पार्टी (केजपा) बनाई थी। इसका नतीजा यह हुआ कि लिंगायत वोट बंट गया और विधानसभा चुनाव में भाजपा 110 सीटों से घटकर 40 सीटों पर सिमट गई।

इस चुनाव में भाजपा का वोट शेयर घटकर 33.86% से 19.95% रह गया था। येदि की पार्टी को करीब 10% वोट मिले थे। येदियुरप्पा ने 2014 में फिर भाजपा में वापसी की। यह येदि का ही कमाल था कि कर्नाटक में बीजेपी ने लोकसभा की 28 में से 17 सीटें जीतीं।

राज्य की 100 विधानसभा सीटों पर असर


कर्नाटक की आबादी में लिंगायत समुदाय का हिस्सा 17% के आसपास है। राज्य की 224 विधानसभा सीटों में से करीब 90 से 100 सीटों पर लिंगायत समुदाय का असर है। वहीं, राज्य की लगभग आधी आबादी पर लिंगायत समुदाय का प्रभाव है। ऐसे में भाजपा के लिए येदि को हटाने के बाद की राह आसान नहीं होगी। उन्हें हटाने का मतलब इस समुदाय के वोट खोने का खतरा मोल लेना होगा।