पंजाब, तमिलनाडु के बाद अब केरल सरकार ने राज्यपाल के विरुद्ध ली सुप्रीम कोर्ट की शरण, निलम्बित विधेयकों की मंजूरी की माँग

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट में अपने राज्य के राज्यपालों की शिकायत लेकर पहुँचे पंजाब और तमिलनाडु के बाद अब केरल की सरकार भी पहुँच गई है। इन सभी राज्यों ने सुप्रीम कोर्ट से शिकायत की है कि उनके राज्य के राज्यपाल विधानसभा द्वारा मंजूर किए गए विधेयकों को मंजूरी नहीं दे रहे हैं। ये विधयेक इन राज्यपालों के पास मंजूरी के लिए लम्बित पड़े हैं। गौरतलब है कि पंजाब के राज्यपाल के पास 7, तमिलनाडु के राज्यपाल के पास 12 विधेयक मंजूरी के लिए लम्बित पड़े हैं।

केरल की सरकार ने राज्यपाल आरिफ मोहम्मद के खिलाफ देश की सर्वोच्च अदालत में शिकायत की है और कहा है कि वो राज्य विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों को मंजूरी नहीं दे रहे हैं। उनके पास 8 विधेयक लंबित पड़े हैं। राज्यपाल के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख करने वालों में केरल सरकार अकेली नहीं है, इससे पहले पंजाब की आम आदमी पार्टी और तमिलनाडु की एमके स्टालिन सरकार भी अपने राज्यों के राज्यपाल के खिलाफ मोर्चा खोल चुकी हैं।

केरल सरकार का राज्यपाल आरिफ मोहम्मद पर आरोप है कि पिछले दो साल में उनके पास कई विधेयक लंबित पड़े हैं, जिन्हें वो पास नहीं कर रहे हैं। अर्जी में लिखा है कि राज्यपाल आरिफ मोहम्मद के पास दो साल से तीन बिल लंबित हैं। इसके अलावा राज्य विधानसभा से इस साल तीन बिल भी उनके पास गए हैं। इन बिलों को राज्यपाल से अभी तक मंजूरी नहीं मिल पाई है। सरकार ने मामले में सुप्रीम कोर्ट से हस्तक्षेप करने की मांग की है।

राज्यपाल पर लेटलतीफी का आरोप


केरल सरकार का कहना है कि लोक कल्याण के लिए आठ महत्वपूर्ण विधेयकों पर राज्यपाल की लेटलतीफी के चलते उन्होंने सु्प्रीम कोर्ट जाने का निर्णय लिया। सरकार ने अदालत से मांग की कि वे इन विधेयकों को पास करने के लिए राज्यपाल को तुरंत निर्देश जारी करें।

अधर में लटकी कल्याणकारी योजनाएं

केरल सरकार ने 1 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। उन्होंने अदालत को सूचित किया कि राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान की निष्क्रियता से संविधान के नष्ट होने का खतरा है। राज्य सरकार विधेयकों के जरिए केरल की जनता के लिए कल्याणकारी योजनाएं लाना चाहती है लेकिन, राज्यपाल विधेयकों को मंजूर नहीं कर रहे हैं।

अधिवक्ता सीके ससी के जरिए दायर याचिका में कहा गया है, “राज्यपाल का व्यवहार राज्य के लोगों के अधिकारों का हनन करने वाला है। विधेयकों के माध्यम से सरकार जनता के लिए कल्याणकारी योजनाओं को लागू करना चाहती है लेकिन, राज्यपाल की निष्क्रियता के चलते ऐसा नहीं हो पा रहा है। याचिका के मुताबिक, राज्यपाल आरिफ मोहम्मद के पास तीन विधेयक 2 साल से अधिक समय से लंबित हैं। तीन विधेयकों को सालभर होने जा रहा है।

बता दें कि एक सप्ताह के भीतर इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट जाने वालों में केरल तीसरा राज्य है। इससे पहले पंजाब सरकार ने 28 अक्टूबर को सात विधेयकों को मंजूरी दिलाने के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। जबकि, तमिलनाडु की स्टालिन सरकार 31 अक्टूबर को 12 विधेयकों को मंजूरी देने के लिए राज्यपाल आरएन रवि के खिलाफ अदालत जा चुकी है। डीएमके सरकार के लंबित विधेयकों में नियुक्तियों, अभियोजन मंजूरी और कैदियों की समय से पहले रिहाई समेत कई विधेयक राज्यपाल के पास लंबित हैं।

स्टालिन सरकार की क्या है शिकायत


तमिलनाडु की एमके स्टालिन सरकार ने शीर्ष अदालत से विधानसभा द्वारा पास कराए विधेयकों को मंजूरी दिलाने के लिए हस्तक्षेप करने का आग्रह किया है। राज्य सरकार ने आरोप लगाया है कि राज्य सरकार के कामकाज में असंवैधानिक तरीके से व्यवधान डाला जा रहा है। अधिवक्ता सबरीश सुब्रमण्यम के जरिए दायर की गई याचिका में कहा, असाधारण परिस्थितियां इस तरह के उपायों को जन्म देती है। मांग करती हैं। सुप्रीम कोर्ट राज्यपाल के हस्ताक्षर के लिए भेजी गई फाइलें और सरकारी आदेश पर विचार नहीं किये जाने को असंवैधानिक और अवैध घोषित करे।

पंजाब में क्या स्थिति


उधर, पंजाब में आम आदमी पार्टी सरकार भी विधेयकों को मंजूरी न देने का आरोप लगाते हुए राज्यपाल बनवारीलाल पुरोहित के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जा चुकी है। हालांकि 28 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल करने के दो दिन बाद पुरोहित ने मंगलवार को विधानसभा में जीएसटी विधेयकों को पेश करने के लिए अपनी मंजूरी दे दी। इससे पहले राज्यपाल ने जीएसटी विधेयकों को अपनी सहमति देने से इनकार कर दिया था। जिस पर भगवंत मान सरकार को विशेष सत्र स्थगित करना पड़ा था। हालांकि, राज्यपाल ने अभी तक पंजाब राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन (संशोधन) विधेयक 2023 को अपनी मंजूरी नहीं दी है।