75 साल पहले अमेरिका ने जापान के दो शहरों पर गिराया था परमाणु बम, 2 लाख से ज्यादा लोगों की हुई थी मौत

6 अगस्त 1945 को अमेरिका ने जापान के शहर हिरोशिमा पर परमाणु बम गिराया था। बताया गया कि परमाणु बम के धमाके के बाद हिरोशिमा में 13 वर्ग किलोमीटर के इलाक़े में तबाही मच गई। एक झटके में हज़ारों लोगों की मौत हो गई।

इससे होने वाली नुकसान का जब तक पूरा अंदाज़ा लगाया जाता, उससे पहले ही इसके तीन दिन के बाद 9 अगस्त को नागासाकी पर एक और बम गिराया। इसमें लाखों लोग मारे गए, जबकि लाखों प्रभावित हुए। वहीं, हमले के बाद कई लोग रेडियोएक्टिव ‘काली बारिश’ की चपेट में भी आए।

पिछले हफ्ते हिरोशिमा के जिला कोर्ट ने ‘काली बारिश’ की चपेट में आए लोगों की पहचान की। साथ ही उन्हें सभी चिकित्सा सुविधाएं देने की बात कही थी। हमले से प्रभावित लोगों को फ्री मेडिकल ट्रीटमेंट दिया जाता है, जिन्हें जापान में ‘हिबाकुशा’ के नाम से जाना जाता है।

द्वितीय विश्वयुद्ध खत्म होने के बाद जापान सरकार ने गंभीर रूप से प्रभावित लोगों को फ्री में स्वास्थ्य सुविधाएं देने की घोषणा की थी। साथ ही सरकार ने कुछ इलाकों को गंभीर रूप से प्रभावित घोषित किया था। हमले के वक्त जो लोग शहर से बाहर थे, वे भी हमले के बाद हुई ‘काली बारिश’ की चपेट में आ गए थे।

अमेरिका ने हिरोशिमा और नागासाकी पर बम क्यों गिराया?

1945 में द्वितीय विश्व युद्ध के खत्म होते-होते जापान और अमेरिका के रिश्ते खराब हो गए। खासकर तब जब जापान की सेना ने ईस्ट-इंडीज के तेल-समृद्ध क्षेत्रों पर कब्जा करने के इरादे से इंडो-चाइना को निशाना बनाने का फैसला किया। इसलिए, अमेरिकी राष्ट्रपति हैरी ट्रूमैन ने आत्मसमर्पण के लिए जापान पर परमाणु हमला किया।

हैरी एस ट्रूमैन उस समय अमेरिका के राष्ट्रपति थे। उन्होंने चेतावनी दी थी, 'जापान या तो समर्पण करे या तत्काल और पूरी तरह से विनाश के लिए तैयार रहे। हम जापान के किसी भी शहर को हवा से ही मिटा देने में सक्षम हैं।'

26 जुलाई को जर्मनी में पोट्सडैम की घोषणा हुई थी, जिसमें जापान को आत्मसमर्पण के लिए चेतावनी दी गई।

हालांकि, इसे लेकर अन्य सिद्धांत हैं। परमाणु हमला कर जापान को समर्पण के लिए मजबूर करने की जरूरत नहीं थी। एक इतिहासकार गर अल्परोवित्ज ने 1965 में अपनी एक किताब में तर्क दिया है कि जापानी शहरों पर हमला इसलिए किया गया ताकि युद्ध के बाद सोवियत संघ के साथ राजनयिक सौदेबाजी के लिए मजबूत स्थिति हासिल हो सके।

हालांकि, परमाणु हमले के तत्काल बाद 15 अगस्त 1945 को जापान ने बिना शर्त आत्मसमर्पण कर दिया था।

6 और 9 अगस्त को क्या हुआ?

6 अगस्त को सुबह 8:15 बजे अमेरिका के इनोला गे विमान ने हिरोशिमा पर पहला एटोमिक बम गिराया। उस वक्त तापमान 10 लाख डिग्री सेल्सियस से भी ज्यादा गर्म हो गया था। करीब 10 किलोमीटर तक सबकुछ जलकर राख हो गया। हवा की गति काफी तेज हो गई। विस्फोट और थर्मल किरणों से बिल्डिंग के टुकड़े-टुकड़े हो गए।

हिरोशिमा की आबादी उस वक्त करीब 3 लाख 50 हजार थी। इनमें 43 हजार जापानी सैनिक थे। लिटिल बॉय के नाम से जाना जाने वाला यूरेनियम हथियार को जब हिरोशिमा में गिराया गया, तब वह 1,850 फीट की ऊंचाई पर फटा। इसकी क्षमता 12.5 किलोटन टीएनटी के बराबर थी।

यूएस स्ट्रेटेजिक बॉम्बिंग सर्वे ऑफ 1946 ने बताया कि बम शहर के सेंटर से उत्तर-पश्चिम में विस्फोट किया गया था। इसमें 80 हजार से ज्यादा लोग मारे गए और कई घायल हुए थे।

अगले दिन न्यूयॉर्क डेली न्यूज का हेडलाइन था- 'बेयर सेक्रेट विपन ‘एटम’ बम जापान मोस्ट डिस्ट्रक्टिव फोर्स इन यूनिवर्स'। न्यूयॉर्क टाइम्स ने हेडलाइन दिया- 'जापान पर पहला परमाणु बम गिराया गया; मिसाइल 20 हजार टन टीएनटी के बराबर होता है; ट्रूमैन की चेतावनी बर्बादी की बारिश'।

तीन दिन के बाद 9 अगस्त को 11 बजे (लोकल टाइम) नागासाकी पर दूसरा एटोमिक बम गिराया गया। इसकी आबादी उस वक्त करीब 2 लाख 70 हजार थी। वहीं, नागासाकी पर ‘फैटमैन’ प्लूटोनियम बम गिराया गया तो 22 किलोटन टीएनटी के बराबर विस्फोट हुआ। इस हमले में 74 हज़ार से ज्यादा लोगों की जान गई थी।

नागासाकी पर परमाणु हमला तय नहीं था

नागासाकी पर परमाणु हमला तय नहीं था। ऐसा क्या हुआ जिसकी वजह से शहर निशाना बन गया? आठ अगस्त, 1945 की रात बीत चुकी थी, अमरीका के बमवर्षक बी-29 सुपरफोर्ट्रेस बॉक्स पर एक बम लदा हुआ था। यह बम किसी भीमकाय तरबूज़-सा था और वज़न था 4050 किलो। बम का नाम विंस्टन चर्चिल के सन्दर्भ में 'फ़ैट मैन' रखा गया।

इस दूसरे बम के निशाने पर था औद्योगिक नगर कोकुरा। यहाँ जापान की सबसे बड़ी और सबसे ज़्यादा गोला-बारूद बनाने वाली फैक्टरियाँ थीं। सुबह नौ बजकर पचास मिनट पर नीचे कोकुरा नगर नज़र आने लगा। इस समय बी-29 विमान 31,000 फीट की ऊँचाई पर उड़ रहा था। बम इसी ऊँचाई से गिराया जाना था। लेकिन नगर के ऊपर बादलों का डेरा था। बी-29 फिर से घूम कर कोकुरा पर आ गया। लेकिन जब शहर पर बम गिराने की बारी आई तो फिर से शहर पर धुंए का क़ब्ज़ा था और नीचे से विमान-भेदी तोपें आग उगल रहीं थीं।

बी-29 का ईंधन ख़तरनाक तरीक़े से घटता जा रहा था। विमान में सिर्फ़ इतना ही ईंधन बचा था कि वापस पहुंच सकें। इस अभियान के ग्रुप कैप्टन लियोनार्ड चेशर ने बाद में बताया, 'हमने सुबह नौ बजे उड़ान शुरू की। जब हम मुख्य निशाने पर पहुंचे तो वहाँ पर बादल थे। तभी हमें इसे छोड़ने का संदेश मिला और हम दूसरे लक्ष्य की ओर बढ़े जो कि नागासाकी था।'

चालक दल ने बम गिराने वाले स्वचालित उपकरण को चालू कर दिया और कुछ ही क्षण बाद भीमकाय बम तेज़ी से धरती की ओर बढ़ने लगा। 52 सेकेण्ड तक गिरते रहने के बाद बम पृथ्वी तल से 500 फ़ुट की उँचाई पर फट गया।

घड़ी में समय था 11 बजकर 2 मिनट। आग का एक भीमकाय गोला मशरुम की शक्ल में उठा। गोले का आकार लगातार बढ़ने लगा और तेज़ी से सारे शहर को निगलने लगा।
नागासाकी के समुद्र तट पर तैरती नौकाओं और बन्दरगाह में खड़ी तमाम नौकाओं में आग लग गई। आस पास के दायरे में मौजूद कोई भी व्यक्ति यह जान ही नहीं पाया कि आख़िर हुआ क्या है क्योंकि वो इसका आभास होने से पहले ही मर चुके थे।

शहर के बाहर कुछ ब्रितानी युद्धबंदी खदानों मे काम कर रहे थे उनमें से एक ने बताया, 'पूरा शहर निर्जन हो चुका था, सन्नाटा। हर तरफ़ लोगों की लाशें ही लाशें थी। हमें पता चल चुका था कि कुछ तो असाधारण घटा है। लोगों के चेहरे, हाथ पैर गल रहे थे, हमने इससे पहले परमाणु बम के बारे में कभी नहीं सुना था।' नागासाकी शहर के पहाड़ों से घिरे होने के कारण केवल 6.7 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में ही तबाही फैल पाई।

शहर के क्या हालात थे?

विस्फोट और गर्मी के चलते लोगों के शरीर से त्वचा लटक रही थी। पेड़ों की पत्तियां झड़ चुकी थी। एक सोशियोलॉजिस्ट ने बताया, शहर का एक पार्क लोगों के शव से भरा हुआ था। वहां मैंने एक बेहद भयावह दृश्य देखा। कुछ छोटी लड़कियां वहां पड़ी हुईं थीं, जिनके न केवल कपड़े फटे थे, बल्कि उनकी त्वचा भी शरीर से अलग हो गई थी।

मेरे दिमाग में तत्काल यह ख़याल आया कि यह नरक से कम नहीं है, जैसे मैंने अक्सर सोचा है। हिरोशिमा आग में जल रहा था। विस्फोट के थोड़ी देर के बाद ‘काली बारिश’ शुरू हो गई। इसमें रेडियोएक्टिव तत्व मौजूद थे।

सोशियोलॉजिस्ट ने बताया, बीस साल की शिबायामा हिरोशी (जो हमले के समय शहर से बाहर थी) ने हमले के कुछ घंटों के बाद हिरोशिमा पहुंची। क्योबाशी नदी को पार करते हुए उसने नरक की एक पेंटिंग की याद दिलाती हुई एक दृश्य देखा।

नदी में कई लोगों के शव तैर रहे थे। उनके चेहरे का साइज सामान्य से दोगुना हो गया था। उनके पैर लकड़ी के जैसे कड़े हो गए थे। धमाके के बाद पूरे शहर में कई रंगों में गंदे भूरे और काले रंग के बादल छाए हुए थे।

हिरोशिमा और नागासाकी दोनों शहर में 1.2 किलोमीटर के दायरे में आने वाले 50% लोग विस्फोट के दिन ही मारे गए थे। वहीं, 80-100% लोगों की रेडिएशन और घायल होने के बाद जान गई।

पांच महीने के भीतर हिरोशिमा के 3 लाख 50 हजार की आबादी में 1 लाख 40 हजार लोग मारे गए, जबकि नागासाकी के 2 लाख 70 हजार की आबादी में 70 हजार लोग की जान गई।

परमाणु हमले में कुछ पुलिसवालों ने अपनी जान एटॉमिक चमक दिखने के बाद खास तरीके से छुपकर बचाई थी। इस प्रक्रिया को 'डक एंड कवर' कहा जाता है। इन पुलिसवालों ने नागासाकी जाकर बचाव के इस तरीके की जानकारी दी, जिससे नागासाकी परमाणु हमले में काफी लोगों ने अपनी जान बचाई।