रानी लक्ष्मी बाई के जीवन से जुडी वो 5 बाते जो देती है प्रेरणा

रानी लक्ष्मीबाई मराठा शासित झाँसी राज्य की रानी और 1857 के प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की वीरांगना थीं। बलिदानों की धरती भारत में ऐसे-ऐसे वीरों ने जन्म लिया है, जिन्होंने अपने रक्त से देश प्रेम की अमिट गाथाएं लिखीं। यहाँ की ललनाएं भी इस कार्य में कभी किसी से पीछे नहीं रहीं, उन्हीं में से एक का नाम है- झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई। उन्होंने न केवल भारत की बल्कि विश्व की महिलाओं को गौरवान्वित किया। उनका जीवन स्वयं में वीरोचित गुणों से भरपूर, अमर देशभक्ति और बलिदान की एक अनुपम गाथा है।

*रानी लक्ष्मीबाई मराठा शासित झांसी की रानी और भारत की स्वतंत्रता संग्राम की प्रथम वनिता थीं। भारत को दासता से मुक्त करने के लिए सन् 1857 में बहुत बड़ा प्रयास हुआ। यह प्रयास इतिहास में भारत का प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम या सिपाही स्वतंत्रता संग्राम कहलाता है।

*अंग्रेज़ों के विरुद्ध रणयज्ञ में अपने प्राणों की आहुति देने वाले योद्धाओं में वीरांगना महारानी लक्ष्मीबाई का नाम सर्वोपरी माना जाता है। 1857 में उन्होंने भारत के स्वतंत्रता संग्राम का सूत्रपात किया था। अपने शौर्य से उन्होंने अंग्रेज़ों के दाँत खट्टे कर दिए थे।

*अंग्रेज़ों की शक्ति का सामना करने के लिए उन्होंने नये सिरे से सेना का संगठन किया और सुदृढ़ मोर्चाबंदी करके अपने सैन्य कौशल का परिचय दिया था।

*रानी लक्ष्मी बाई घुड सवारी में निपूर्ण थी और उन्होंने महल के बीचों बिच घुड सवारी के लिए जगह भी बनाया था। उनके घोड़ों के नाम थे – सारंगी, पवन, और बादल। सन 1858 के समय किले से निकलने में घोड़े बादल की अहम भूमिका थी।

*रानी लक्ष्मीबाई नारी में अबला नहीं सबला का रूप देखती थी। उन्होंने स्त्री सेना का गठन किया जिसमे एक से बढ़कर एक वीर साहसी स्त्रियाँ थी. रानी ने उन्हें घुड़सवारी व शस्त्र चलाने का प्रशिक्षण दिलाकर युद्ध कला में निपुण बनाया।