मुंबई में 26 नवंबर 2008 आज ही के दिन 10 साल पहले करीब 10 आतंकियों ने मुंबई को निशाना बनाया था। तकरीबन 60 घंटे तक चले आतंक के उस हमले में लश्कर-ए-तैयबा के खूंखार आतंकियों ने 166 लोगों की जान ले ली थी। 26 नवंबर की उस काली रात को कामा और अल्बलेस अस्पताल पर हमले के समय अस्पताल में डयूटी पर तैनात चौकीदार कैलाश घेगडमल आज भी वो पल याद करके सिहर उठते हैं जब आतंकी कसाब और उसके साथी ने उनसे महज दस फीट की दूरी से दूसरे साथी गार्ड को गोलियों से छलनी कर दिया था। इन आतंकवादियों ने पास ही बने छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस में 52 लोगों को मौत की नींद सुलाने के बाद इस अस्पताल का रुख किया था। कैलाश बताते हैं कि साथी बब्बन वालू ने गोलियों की आवाज सुनने के बाद अस्पताल में लगे दरवाजों को बंद करने का काम तेजी से शुरू कर दिया। लेकिन वालू अंधाधुंध गोलियां बरसा रहे आतंकियों का निशाना बन गया। इससे वह घबरा कर एक पेड़ के पीछे छुप गए और बामुश्किल दस फीट की दूरी से उन्होंने इंसानी जिंदगियों को मौत बांट रहे कसाब को देखा।
उन्होंने बताया कि इमारत का मेन गेट खुला हुआ था और आतंकियों ने उस तरफ दौड़ लगा दी और वहां डंडा थामे दूसरे गार्ड भानु नारकर पर तडा़तड़ गोलियां बरसा दीं। उन्होंने कहा कि पहले लगा कि यह शायद गैंगवार का नतीजा है लेकिन जब नारकर को उनके सामने कसाब ने मार डाला तो लगा मामला कुछ और है।
अस्पताल परिसर में प्रवेश करने के बाद कसाब और उसके सहयोगी ने अंधाधुंध गोलीबारी शुरू कर दी, जिससे कर्मचारी, मरीज और उनके रिश्तेदार बहुत डर गये। बाद में कैलाश हिम्मत दिखाते हुये पुलिस टीम को छठी मंजिल तक ले गये, जहां उनकी आतंकवादियों के साथ मुठभेड़ हुई, जिसमें दो पुलिसकर्मी मारे गए और वह और आईपीएस अधिकारी सदानंद दाते घायल हो गए।
नर्स मीनाक्षी मुसाले और अस्मिता चौधरी ने कहा कि उन्होंने फ्रिज, एक एक्सरे मशीन, दवा ट्रॉली और कुर्सियों का इस्तेमाल दूसरी मंजिल पर दरवाजा बंद करने के लिए किया ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि आतंकवादी वहां घुस न सकें। रात्रि पर्यवेक्षक सुनंदा चव्हाण ने कहा, 'बच्चों और उनकी मां को सुरक्षित रखना हमारा कर्तव्य था। हमने बच्चों को घायल होने से बचाने के लिए दीवार के समीप सभी पालने रख दिये।' अस्पताल अधीक्षक अमिता जोशी ने बताया कि अब अस्पताल में सशस्त्र गार्ड हैं और निगरानी के लिए 67 सीसीटीवी लगाए गए हैं।
गोलीबारी करते हुए मुस्कुरा रहा था कसाबछत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस के रेलवे अनाउंसर विष्णु जेंदे के दिमाग में आज भी हाथ में बंदूक लेकर यात्रियों पर गोलियां बरसाते हुए कसाब का मुस्कुराता चेहरा बसा हुआ है। 47 वर्षीय जेंदे की सूझबूझ ने सैकड़ों यात्रियों की जान बचाई थी। कुल 166 मृतकों में से 52 की मौत रेलवे स्टेशन पर हुई थी जबकि 108 लोग घायल हुए थे।
डरे हुए पुलिसवालों ने कसाब को स्टेशन से भागने दिया 26/11 हमले की दिल दहला देने वाली तस्वीरें लेने वाले फोटोपत्रकार सेबस्टियन डिसूजा की तस्वीरों ने कसाब को फांसी पर चढ़ाने में अहम भूमिका निभाई। उन्होंने कहा कि स्टेशन के पास मौजूद पुलिसवालों की दो बटालियन ने अगर कसाब और उसके साथियों को मार गिराया होता तो कई जानें बच जाती लेकिन उन्होंने कुछ नहीं किया। हाथ में एक-47 लिए हुए कसाब की क्लोज-अप तस्वीर लेने के लिए 67 वर्षीय सैबी को वर्ल्ड प्रेस फोटो अवार्ड से नवाजा जा चुका है। उस फोटो को उन्होंने ट्रेन के डिब्बे में छुपकर ली थी।