बचपन से ही सिखाएं बच्चों को बातचीत का सही तरीका, इन 8 तरीकों से संवारें उनका कम्यूनिकेशन स्किल्स


बच्चों में बचपन से ही सही आदतें डाली जाए तो वह उनके भविष्य को संवारने के काम आती हैं। आपका बच्चा चाहे कामयाब इंसान ना बन पाए लेकिन एक नेक इंसान जरूर बनेगा जो बहुत मायने रखता हैं। व्यक्ति अपनी बातचीत करने के तरीके से पहचाना जाता हैं और इसके लिए जरूरी हैं कि बच्चों को बचपन से ही बातचीत का सही तरीका सिखाया जाए और कम्यूनिकेशन स्किल्स को संवारा जाए। आज इस कड़ी में हम आपको इसके कुछ तरीके बताने जा रहे हैं जिनकी मदद से अपने बच्चों में आत्मविश्वास बढ़ाते हुए उनकी कम्यूनिकेशन स्किल्स डवलप की जा सकती हैं। तो आइये जानते हैं इन तरीकों के बारे में...

बच्चों में डालें सुनने की आदत

आजकल के बच्चे दूसरों की बात सुनने की बजाय केवल अपनी अपनी बात बोलते चले जाते हैं। उन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि सामने वाला उनसे क्या कहने की कोशिश कर रहा है। ऐसे में सामने वाले की बात कब बीच में काट देते हैं पता ही नहीं चलता। बता दें कि बच्चों को ध्यान दूसरों की बात सुनने पर भी होना चाहिए। बच्चे को सामने वाले की बात पूरी खत्म होने का इंतजार करना चाहिए। उसके बाद ही अपनी बात रखनी चाहिए। यह भी कम्यूनिकेशन स्किल्स के अंदर ही आता है।

शब्दों का सोच समझ कर करें चुनाव

बच्चा माता-पिता से ही सब कुछ सीखता है और उन्हें देखकर ही बड़ा होता है। ऐसे में अगर आप अपने बच्चे के सामने गलत तरीके से बात करेंगे या गलत शब्दों का चुनाव करेंगे तो बच्चा भी उन्हीं शब्दों को अपनी डिक्शनरी में जोड़ेगा। ऐसे में बच्चे के सामने सोच समझकर बोलें। साथ ही गलत शब्दों का इस्तेमाल बच्चे के सामने ना करें। अगर आप चाहते हैं कि बच्चे की कम्यूनिकेशन स्किल्स बेहतर हो तो आप उसके सामने बेहतर तरीके से अपनी बात रखें।

हमेशा तोल मोल कर बोलें

बच्चों से भी तोलमोल कर बोलना जरूरी है। अगर आप चाहते हैं कि बच्चा कम शब्दों में अपनी बात कहें तो सबसे पहले आपको अपने अंदर इस आदत को विकसित करना होगा। जब भी आप अपने बच्चे से बात करें तो अपनी बात को कम शब्दों में कहने की कोशिश करें। ऐसा करने से बच्चे भी तोलमोल कर बोलने की आदत सीखेंगे और उसके भविष्य के लिए ऐसा करना एक अच्छा विकल्प है।

बच्चों को दें किताबें

कम्युनिकेशन स्किल्स के लिए आप बच्चों को कम्यूनिकेशन स्किल्स से जुड़ी किताबें दे सकते हैं। साथ ही जब बच्चे उस किताब को पूरा कर लें तो उनसे जानें कि उन्होंने उससे क्या-क्या सीखा और आप चाहें तो उनसे अपनी कम्यूनिकेशन स्किल्स को संवारने का तरीका भी जान सकते हैं। ऐसे में आपको पता चलेगा कि आपके बच्चे ने उस किताब से क्या-क्या सीखा और किस चीज को इंप्रूव करने की जरूरत है। इससे अलग बच्चे का आत्मविश्वास भी बढ़ेगा।

हावभाव का ढंग बदलें

बच्चे केवल बोलचाल ही नहीं बल्कि माता-पिता के हावभाव को भी कॉपी करने की कोशिश करते हैं। ऐसे में उनके सामने अच्छे शब्दों का चुनाव करने के साथ-साथ सही लहजा और आपकी बॉडी लैंग्वेज भी सही होनी चाहिए। साथ ही आप अपने बच्चे में कम्यूनिकेशन स्किल्स को डेवलप करने के लिए कुछ ट्रेनिंग सेंटर या किसी टीचर की मदद भी ले सकते हैं। ऐसा करने से बच्चा बातचीत का सही ढंग, हावभाव और लहजे का सही तरीके से प्रयोग करेगा।

गलत शब्द बोलने पर बच्चे को टोकें

जब बच्चा गलत तरीके से बात करें या गलत शब्दों का प्रयोग करें तो माता-पिता की जिम्मेदारी है कि वे उसी समय अपने बच्चे को टोकें। अगर वे बच्चे को उसी समय टोकेंगे तो बच्चे की ये गलत शब्द की आदत खुद-ब-खुद दूर हो जाएगी। वहीं अगर माता-पिता बच्चे को रोकने की बजाय उसकी नादानी समझकर उसे माफ करेंगे तो हो सकता है कि आगे चलकर यह उसकी आदत में आ जाए और वह इसी प्रकार गलत शब्दों का प्रयोग करें।


बच्चों को समझाएं धैर्य का महत्व

माना कि सही शब्दों का चुनाव और छोटे वाक्य में अपनी बात कहना यह सब चीजें बेहद जरूरी हैं। लेकिन धैर्य और विनम्रता भी बच्चों को सीखनी चाहिए। ऐसा करने से बच्चों की सकारात्मक छवि लोगों के सामने बनती है। साथ ही लोग बच्चों की बातों को भी गंभीरता से लेना शुरू कर देते हैं। भविष्य में भी धैर्य और विनम्रता होनों ही काम आते हैं। ध्यान रखें कि जब बच्चा बचपन से ही अपनी कम्यूनिकेशन स्किल्स पर ध्यान देता है और अपने स्वभाव में धैर्य और विनम्रता लाता है तो बड़े होकर वे अपने निर्णय लेने में जल्दबाजी नहीं करता है। साथ ही बच्चे का मन पढ़ाई में भी लगेगा।

आई कांटेक्ट भी है जरूरी

अपनी बात कह देना ही काफी है नहीं है। कम्यूनिकेशन स्किल्स में आई कांटेक्ट पर भी जोर दिया जाता है। आई कांटेक्ट बनाएं रखने से सामने वाले व्यक्ति का ध्यान इधर ऊधर नहीं भटकता और वह आपकी बात को अच्छे से समझता और सुनता है। ऐसे में अगर बच्चे बचपन से ही आई कॉन्टेक्ट के महत्व को समझ जाए तो उन्हें भविष्य में ज्यादा समस्या का सामना नहीं करना पड़ता।