फरवरी का महीना जारी हैं और कई स्कूल में अगले टर्म के लिए एडमिशन ओपन हो चुके हैं। ऐसे में कई लोग जो अपने बच्चे को पहली बार स्कूल में डाल रहे हैं या एक स्कूल से दूसरी स्कूल में एडमिशन करवा रहे हैं वे अपने बच्चों के लिए सही स्कूल खोज रहे हैं। स्कूल बच्चों का दूसरा घर होता हैं जहां वे अपना सबसे ज्यादा समय बिताते हैं और वहीँ उन्हें शिक्षा के साथ जीवन से जुड़ी कई सीख भी सिखने को मिलती हैं। ऐसे में जरूरी हैं कि बच्चे के भविष्य के लिए सही स्कूल का चुनाव किया जाए। आप अगर स्कूल के चुनाव में कंफ्यूज हो रहे हैं तो आज हम आपके लिए कुछ सवाल लेकर आए हैं जिससे आप संतुष्ट हो जाते हैं तो सही स्कूल का चुनाव कर पाएंगे। तो आइये जानते हैं इन सवालों के बारे में...
टीचर्स के स्किल
ऐसा बहुत कम होता है कि माता- पिता स्कूल जाकर टीचर्स से मिलने की बात करते हैं। यह बहुत बड़ी गलती है क्योंकि वे टीचर्स ही आपके बच्चे के मार्गदर्शक होते हैं। उनके साथ आपका बच्चा अगले कई साल बिताने वाला है। पूछें कि उक्त स्कूल के टीचर्स का अनुभव औसत तौर पर कितना है? क्या स्कूल शिक्षकों को शिक्षण की नई टेकनीक आदि सीखने के लिए भेजता है। कोशिश करें कि एक- दो टीचर्स से बात हो जाए। एक छोटी बातचीत भी आपको स्कूल के टीचर्स के बारे में एक जानकारी तो दे ही सकती है।
क्लास के बाहर सीखना
क्लास के अंदर की पढ़ाई जितनी जरूरी है, उतना ही जरूरी है लैब और गेम्स में भी समय व्यतीत करना। क्या वहां के बच्चों को फील्ड ट्रिप पर ले जाया जाता है? क्या उन्हें विभिन्न क्षेत्रों में सफलता प्राप्त लोगों से मिलवाया जाता है? असल की दुनिया में कक्षा की पढ़ाई कुछ काम नहीं आती, यह आपको भी अच्छे से पता है। इसलिए आपका बच्चे जितना बाहरी दुनिया से संबंधित जानकारी पाएगा, उसके लिए उतना ही अच्छा रहेगा।
किताबों से बाहर की दुनिया
आज के बच्चों के मन में जिज्ञासा इतनी रहती है कि उसका हल किताबों की दुनिया में नहीं है। उन सवालों का जवाब पाने के लिए किताबों से बाहर देखने की जरूरत है। किताबी सवालों के जवाब जानना, वहां से कहानियां- कविताएं पढ़ना और उनके जवाब देने से आपका बच्चा फ्यूचर के लिए तैयार नहीं होता। पता कीजिए कि क्या बच्चों को किताबों से इतर लाइब्रेरी और इंटरनेट की दुनिया में झांकने को मिल रहा है? तमाम तरह की गतिविधियां और प्रोजेक्ट स्कूल में कराए जाते हैं?
बच्चों का भावनात्मक मन
हमारे जमाने के पुराने बेंच और टेबल की जगह रंगीन चमचमाती कुर्सियां और डेस्क आ गए हैं, जो बच्चों की उम्र के अनुरूप बनाए जाते हैं। इन जगहों पर बच्चों को शारीरिक तौर पर चोट लगने का डर तो नहीं रहता लेकिन क्या आपने कभी बच्चों के भावनात्मक मन के बारे में सोचा है? इसलिए स्कूल से आपका यह पूछना जरूरी है कि बच्चों की भावनात्मक जरूरतों को किस तरह से संभाला जाता है? किस तरह से सकारात्मक माहौल तैयार किया जाता है ताकि कोई भी बच्चा अपनी भावनाओं को लेकर कमजोर या दुखी न महसूस करे? क्या सभी कर्मचारियों, जिनमें नन- टीचिंग स्टाफ भी शामिल हैं, की पृष्ठभूमि जांच की जाती है? पूछें कि टीचर्स बच्चों को किस तरह से अनुशासन में रखते हैं? बच्चों की सुरक्षा के लिए किस तरह के मापदण्ड अपनाए गए हैं?
बच्चों का आकलन
संभव हो तो कक्षा की कुछ किताबों को देखें और समझने की कोशिश करें कि बच्चे विभिन्न विषयों में क्या पढ़ते हैं। उनके सीखने के बाद आकलन कैसे किया जाता है? क्या अभी भी अंकों से बच्चों का आकलन किया जाता है? इसमें सिर्फ किताबी ज्ञान शामिल है या प्रोजेक्ट, साक्षात्कार, जर्नल आदि भी। अच्छा तो यही रहता है कि स्कूल बच्चे के माता- पिता को विस्तार में रपट दे कि उने बच्चे ने पूरे साल क्या किया। उसने क्या पढ़ाई की, क्या खेला, किन अतिरिक्त गतिविधियों में हिस्सा लिया। इस तरह से आपको अपने बच्चे को समझने और फिर शिक्षक से बात करने में आसानी होगी। आप यह समझ पाएंगे कि आपके बच्चे की रुचि किसमें है और उसे भविष्य में किस ओर चलना है।
सीखने की विभिन्न क्षमताएं
अमूमन स्कूलों में लर्निंग डिसैबिलिटी वाले बच्चों के लिए अलग से काउंसलर होते हैं। जानने की कोशिश करें कि स्लो लर्नर किस तरह से पाठ¬क्रम को पूरा करेगा? क्या उनकी जरूरतों के हिसाब से पढ़ाई में बदलाव लाया जाता है? कुछ बच्चे कक्षा के अन्य बच्चों से तेज होते हैं और जल्दी सीख जाते हैं। इन बच्चों को कैसे संभाला जाता है? किस तरह की गतिविधियां कराई जाती हैं ताकि सारे बच्चे मिल-जुलकर उसमें हिस्सा ले सकें?
पढ़ाई से बाहर की एक्टिविटीज
कुछ बच्चे खेल या संगीत- नृत्य जैसी एक्टिविटीज में हिस्सा लेकर स्कूल के अंदर और बाहर कई प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेते हैं। इन बच्चों को हाजिरी तो मिल जाती है लेकिन पढ़ाई के मामले में ये जरूर पिछड़ जाते हैं। इन्हें अपने साथियों के साथ पढ़ाई पूरी करना भी जरूरी है। इन बच्चों के लिए स्कूल क्या करता है? उन बच्चों के लिए यह हतोत्साहित करने वाला हो सकता है कि वह किसी विशेष एक्टिविटी में तो बहुत अच्छा कर रहा है लेकिन पढ़ाई के मामले में पिछड़ जा रहा है। पूछें कि इन मामलों में स्कूल का रवैया कैसा और क्या रहता है?
स्कूल में संस्कार
इन दिनों अधिकतर परिवार एकल ही होते हैं। बच्चों को दादा- दादी नाना- नानी का साथ न के बराबर मिलता है। ऐसे में उन पर स्कूल और वहां के परिवेश का बड़ा प्रभाव पड़ता है। वह वहां से कई नई बातें सीखकर घर आता है। इसलिए स्कूल केवल किताबों से संबंधित नहीं बल्कि मूल्यों और संस्कारों से बंधा भी है। पूछें कि स्कूल में किस तरह से विनम्रता जैसे मानवी गुणों का अभ्यास किस तरह से कराया जाता है? क्या बच्चों को दूसरों की मदद करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है?
तकनीक का इस्तेमाल
कंप्यूटर लैब तो सालों से स्कूल में हैं। क्या आपके पसंदीदा स्कूल में स्मार्ट क्लास का आयोजन किया जाता है? इस तरह की कक्षाओं में शिक्षक डिजिटली बच्चों को सिखाते हैं, जिसमें तस्वीरें, वीडियो, पीपीटी आदि का इस्तेमाल किया जाता है। क्या बच्चे इस तकनीक का प्रयोग कर रहे हैं? क्या बच्चों को केवल तकनीक के फीचर्स और कार्यप्रणाली के बारे में सिखाया जाता है या उसका प्रयोग करना भी? स्कूल किस तरह से तकनीक का प्रयोग करके बच्चों को उसमें शामिल करता है, यह आज के दौर के लिए जरूरी है। कई स्कूलों में कंप्यूटर एक विषय है, जिसमें बच्चों को नोट्स लिखने और पढ़ने के लिए कहा जाता है। यह काफी बोरियत से भरा विषय है और भविष्य में इससे कोई फायदा भी नहीं होने वाला। इसलिए पूछें कि बच्चों को कंप्यूटर जैसे विषय किस तरह से पढ़ाए जाते हैं?