वैवाहिक बंधन प्यार का बंधन बना रहे तो इस रिश्ते से बढि़या कोई और रिश्ता नहीं। परंतु किन्हीं कारणों से दिल में दरार आ जाए तो अकसर वह खाई में परिवर्तित होते भी देखी जाती है। दुनिया में शायद ही ऐसा कोई कपल हो, जिनके बीच नोंक-झोंक या तकरार न होती हो। लेकिन जब यही कपल पैरेंट बन जाता है तो उन्हें थोड़ा समझदारी का परिचय देना होता है। कुछ कपल्स ऐसे होते हैं जो अपने बच्चों के सामने ही झगड़ा करने लगते हैं। कई बार तो वे झगड़ा करते समय शब्दों की मर्यादा का ख्याल भी नहीं रखते। बच्चे के सामने इस तकरार पर अल्प-विराम लगाना बेहद जरूरी है। वरना बच्चे पर इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। हम आपको बताते हैं कि माता-पिता का बच्चों के सामने झगड़ने से उस पर क्या असर होता है-
असुरक्षा का भावघर किसी भी बच्चे के लिए सबसे सुरक्षित स्थान होता है, जहां पर उसे बेहद प्यार व केयरिंग मिलती है। लेकिन अगर उसी घर में बच्चे को हमेशा लड़ाई-झगड़े या तनाव का माहौल नजर आता है तो इससे उसके मन में डर, चिंता व असहाय होने का भाव समा जाता है, जो उसके पूरे व्यक्तित्व को प्रभावित करता है। ऐसा बच्चा जीवन भर एक असुरक्षा के भाव के साथ जीता है।
कम आयु के बच्चों या शिशुओं पर प्रभावछोटे बच्चे जहां माता-पिता की बातों को नहीं समझ सकते, वहीं वे आपकी भावनाओं को भलि-भांति समझते हैं। इसीलिए देखा गया है कि जिन परिवारों में माता-पिता में कहा-सुनी या लड़ाई-झगड़े होते हैं, वहां बच्चे पहले रोकर फिर शांत हो जाते हैं। उन्हें ऐसा महसूस होता है कि अब मम्मी-पापा अलग हो जाएंगे और हमारे साथ नहीं रहेंगे। साथ ही वह काफी असुरक्षित भी महसूस करने लगते हैं। कई बार बच्चों के खेलने-कूदने व उछल-कूद में भी आपको कमी देखने को मिलेगी। वे स्कूल या अन्य जगहों पर भी जाने से कतराने लगते हैं।
अल्पकालिक प्रभाव
गलत तरीके से झगड़ने से परिवार में अस्थिरता आती हैं, जिसका सबसे ज्यादा प्रभाव बच्चों पर पड़ता है, क्योंकि वो सुरक्षित नहीं महसूस करते हैं। ऐसे झगड़ों के कारण पूरे परिवार का मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित होता है। पति-पत्नी के रिश्ते के साथ-साथ पैरेंट्स और बच्चों का रिश्ता भी खराब होने लगता है। झगड़ा ज्यादा हो तो पति-पत्नी दोनों को ही तनाव होता है और इसका असर भी बच्चों के साथ उनके रिश्ते पर ही पड़ता है। लड़ाई के बात जो तनाव और चिंता की स्थिति बनती है, वो बच्चों के शारीरिक, भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक विकास पर तो असर करती ही है, साथ ही इससे उनके रोजमर्रा के कामों में भी बाधा आती है।
अपराधबोध के शिकार हो जाते हैं बच्चेकई बार ऐसा होता है कि माता-पिता के झगड़े का विषय उसके बच्चे ही होते हैं। अगर वास्तव में ऐसा है तो इससे बुरा बच्चे के लिए शायद और कोई न हो। जो पैरेंट्स बच्चे के सामने उसे लेकर झगड़ते हैं, उस बच्चे के मन में एक अपराधबोध और दोषी होने का भाव उत्पन्न होता है।ऐसे में बच्चा इमोशनली डिस्टर्ब रहने लगता है। उसे मन ही मन लगने लगता है कि उसके पैरेंट्स के झगड़े की वजह वही है और वह नहीं होता तो उसके पैरेंट्स शायद ज्यादा खुश होते। कई बार तो इसके कारण बच्चा खुद को हानि भी पहुंचा लेता है।
माता-पिता के लिए टिप्सअपने अहम को दर-किनार करते हुए बच्चों पर ध्यान दें।आप लड़ें, लेकिन अपनी लड़ाई का नतीजा सहमति या असहमति में जरूर निकालें।बच्चों को अपनी लड़ाई का हिस्सा न बनाएं।अगर पति-पत्नी किसी बात पर सहमत नहीं हैं तो बच्चे के सामने ही एक-दूसरे की बेइज्जती न करें। अपशब्द या नकारात्मक प्रभाव वाली भाषा का प्रयोग न करें।एक-दूसरे के साथ चीख-चिल्लाकर बात न करें।