जीवन की परेशानियों और जिम्मेदारियों को संभालने के चक्कर में आजकल इंसान व्यस्त रहने लगा हैं जिसकी वजह से वह अपनों को भी समय नहीं दे पा रहा हैं और रिश्ते बिगड़ते जा रहे हैं। कई बार यह देखने को मिलता हैं पिता और बच्चों के बीच जहां दोनों के बीच दूरियां बढ़ती जा रही हैं। जी हां, काम और अन्य उलझनों में एक पिता अपने बच्चे के साथ समय नहीं बिता पाते और वे कब बच्चे से बड़े हो जाते हैं इसका पता नहीं चल पाता। लेकिन ऐसे रिश्ते में वह बॉन्डिंग नहीं बन पाती हैं। इसके लिए पिता को अपने काम से वक्त निकालते हुए कुछ एफर्ट दिखाने होंगे ताकि बच्चों के साथ स्ट्रॉन्ग बॉन्डिंग बनाई का सकें। इसके लिए आज हम कुछ टिप्स बताने जा रहे हैं जिन्हें आजमा सकते हैं और अपने रिश्तों में प्यार को बढ़ा पाएंगे।
साथ में खाएं खाना
फैमली के साथ क्वालिटी टाइम स्पेंड करने के लिए साथ में खाना खाने से बेहतर शायद ही कोई ऑप्शन होगा। इसलिए अगर आप घर पर हैं, तो लंच, डिनर या ब्रेकफास्ट बच्चों के साथ ही करने की कोशिश करें। साथ ही हर वीकेंड बच्चों के साथ कहीं बाहर डिनर प्लान करना ना भूलें।
बच्चों के प्रति जताएं अपना प्यार
बच्चों को अपने माता-पिता से प्यार और दुलार की खूब ज़रूरत होती है और उम्मीद भी और मां-बाप भी अपने बच्चों से खूब प्यार करते भी हैं। लेकिन, मां-बाप अक्सर उतनी गर्मजोशी से बच्चों के प्रति अपना प्यार जता नहीं पाते। अगर आप भी ऐसा करते है तो बच्चों के प्रति अपना स्नेह जताने के थोड़े और मौके तलाशें। प्यार मिलने से बच्चों की आपके साथ बॉन्डिंग भी मज़बूत होगी।
जानें कैसा बीता दिन
बेशक आप दिन भर बच्चों के साथ ना रह पाएं। मगर, रात को सोने से पहले बच्चों से पूछना ना भूलें कि उनका दिन कैसा गया। वहीं बच्चों की दिन भर की परेशानी को सुलझाने में भी उनकी मदद करें। इससे बच्चे खुद को पैरेंट्स के क्लोज महसूस करेंगे।
साथ मिलकर किसी प्रोजेक्ट पर काम करें
प्रोजेक्ट का मतलब यहां बहुत सी चीजें हो सकती है। जैसे आप अपने बेटे के साथ बाहर जाने का प्लान बना सकते हैं। उनके स्कूल प्रोजेक्ट में पार्टनरशिप कर सकते हैं। अपने घर की सफाई के लिए आप उन्हें अपना साथी बना सकते हैं। इससे बच्चे में अच्छी आदतें भी डेवलेप होती हैं। साथ ही आप पर्यावरण से जुड़े किसी प्रोजेक्ट में भी साथ काम कर सकते हैं। इसके अलावा आप अपने घर की दीवारों को फैमिली पिक्चर के साथ सजा सकते हैं और साथ मिलकर काम करने से चीजें आसान हो जाती है। बच्चे और आपके बीच एक भावनात्मक जुड़ाव भी होता है।
प्यार का कराएं एहसास
हर रोज अपनी बिजी दिनचर्या में से थोड़ा सा समय निकाल कर बच्चों को स्पेशल फील कराने की कोशिश करें। इसके लिए आप बच्चों को प्यारा सा नोट लिखकर भी दे सकते हैं। साथ ही हर रोज बच्चों को ढेर सारा प्यार करना भी ना भूलें। बच्चों को खुद के करीब रखने के लिए समय मिलने पर बच्चों का दुलार जरूर करें। जानकारी के अनुसार बच्चों को भरपूर प्यार और दुलार देने से ना सिर्फ बच्चे खुश रहते हैं बल्कि उनके बीमार पड़ने की संभावना कम रहती है।
बच्चों को दें एक सुरक्षित माहौल
जैसे-जैसे बच्चे बड़े होने लगते हैं उनमें कई चीज़ों के प्रति उत्सुकता बढ़ने लगती है। दोस्तों के साथ स्मोकिंग और अल्कोहल के सेवन जैसी सेहत के लिए हानिकारक आदतें भी इसी दौरान बच्चों में पड़ सकती हैं। ऐसे में बच्चों को घर और बाहर सुरक्षित रखने के प्रयास करें। बच्चों की ज़रूरतों को पूरा करने के प्रयासों के बीच उन्हें यह भी समझाएं कि उनकी ज़रूरतों का ख्याल रखते हैं आप। उन्हें पॉकेट मनी देते हुए यह समझाएं कि उन पैसों का इस्तेमाल वह सही कामों में करें। इसी तरह गैजेट्स, स्मोकिंग और अन्य लुभावनी लेकिन हानिकारक चीज़ों के नुकसान के बारे में भी बच्चों को अवगत ज़रूर कराएं। लेकिन, इन सबके बीच बच्चों को यह भी विश्वास ज़रूरत दिलाएं कि बच्चों की ज़रूरत में आप उनके साथ रहेंगे।
बच्चों के साथ खेलें
घर पर बच्चों के साथ समय निकाल कर थोड़ी देर जरूर
खेलें। बच्चों से दोस्ती करने का ये सबसे बेस्ट तरीका है। बच्चों के साथ
खेलने के अलावा आप उनके साथ कुकिंग भी एंज्वॉय कर सकते हैं। इससे बच्चे
आपसे काफी जुड़ाव महसूस करने लगेंगे।
छोटी-छोटी पार्टी करें
आप जब घर आएं तो अपने बच्चों के साथ एक अच्छा वक्त बिताएं। उन्हें कहीं घुमाने ले जाएं या एक छोटी ट्रिप प्लान करें। आप अपने बच्चों को पार्टी पर ले जा सकते हैं। बच्चे इन्हीं सारी चीजों का इंतजार करते हैं। जब आप लंबे समय के बाद घर जाएं, तो उनके लिए कुछ न कुछ गिफ्ट जरूर ले जाएं। इससे बच्चों को आपका इंतजार रहेगा। उनके साथ छोटी-छोटी चीजें सेलिब्रेट करें।
बच्चे की बातें सुने
कई बार आपको बच्चे की बातें बिना मतलब की लग सकती है क्योंकि आपके नजरिए से वह बिना किसी मतलब या बेतुकी हो सकती है लेकिन उनके लिए यह उनकी भावनाएं हैं। कई बार बच्चे अपनी बातों को सिर्फ इसलिए नहीं बता पाते हैं क्योंकि उन्हें कोई सुनने वाला नहीं होता है। पेरेंट्स अपने काम में व्यस्त होते हैं और बच्चा अपने आप में धीरे-धीरे गुम होने लगता है।