आज भारत अंतरराष्ट्रीय स्तर पर महत्वपूर्ण स्थान रखता हैं फिर चाहे वह चाहे कोई भी क्षेत्र हो। खेल, विज्ञान, तकनिकी, शिक्षा जैसे हर क्षेत्र में भारत शीर्ष देशों में अपनी जगह बना रहा हैं। भारत को इस उपलब्धि पर पहुचाने में जितना प्रयास पुरुषों का हैं उतनी ही मेहनत महिलाओं की भी हैं। हांलाकि आज भी ग्रामीण इलाकों में महिलाओं की स्थिति दयनीय हैं और वे आगे बढ़ने की चाह रखते हुए भी आगे नहीं बढ़ पा रही हैं। महिलाओं को आगे बढ़ने के लिए भारत के कानून और संविधान ने महिलाओं को कुछ ख़ास अधिकार दिए हैं ताकि वो अपना आर्थिक, मानसिक, शारीरिक और यौन शोषण से बचाव कर सकें। ये अधिकार उन्हें सशक्त बनाने में मदद करते हैं। आइए जानते हैं कि ये अधिकार कौन-कौन से हैं।
समान वेतन अधिकारइस कानून के तहत आय या मेहनताना देने में लिंग का भेदभाव नहीं किया जा सकता। यानी किसी भी कामकाजी महिला को उस पद पर कार्यरत पुरुष के बराबर वेतन लेने का अधिकार है। महिला-पुरुष के बीच सैलरी का भेदभाव नहीं किया जाएगा।
मातृत्व लाभ कानून1961 में लागू इस एक्ट के तहत कर कामकाजी महिला के माँ बनने की स्थिति में कार्यालय से 6 माह की छुट्टी लेने का अधिकार है। मैटरनिटी लीव या गर्भावस्था के दौरान छुट्टी लेने पर कंपनी महिला कर्मचारी के वेतन में कोई कटौती नहीं कर सकती। कामकाजी गर्भवती महिला को नौकरी से भी नहीं निकाला जाएगा।
संपत्ति का अधिकारभारत में बेटों को पिता और परिवार का कुल वंश माना जाता है। हालांकि हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के तहत पिता की संपत्ति या पुस्तैनी संपत्ति पर बेटे और बेटी दोनों का समानता का अधिकार है।
रात में महिला की गिरफ्तारी नहींमहिलाओं को सुरक्षा को लेकर कानून में प्रावधान है कि किसी महिला आरोपी को सूर्यास्त के बाद और सूर्योदय से पहले गिरफ्तार नहीं किया जा सकता। हालांकि फर्स्ट क्लास मजिस्ट्रेट के आदेश पर गिफ्तारी सम्भव है। इसके अलावा महिला से पूछताछ के दौरान महिला कांस्टेबल का होना जरूरी है।
दफ्तर या कार्यस्थल पर उत्पीड़न से सुरक्षाभारतीय कानून के मुताबिक अगर किसी महिला के खिलाफ दफ्तर में या कार्यस्थल पर शारीरिक उत्पीड़न या यौन उत्पीड़न होता है, तो उसे शिकायत दर्ज करने का अधिकार है। इस कानून के तहत, महिला 3 महीने की अवधि के भीतर ब्रांच ऑफिस में इंटरनल कंप्लेंट कमेटी (ICC) को लिखित शिकायत दे सकती है।
पहचान जाहिर न करने का अधिकार कानून महिला की निजता की सुरक्षा का अधिकार देता है। यौन उत्पीड़न की शिकार महिलाओं को नाम न छापने देने का अधिकार है। अपनी गोपनीयता की रक्षा करने के लिए यौन उत्पीड़न की शिकार हुई महिला अकेले अपना बयान किसी महिला पुलिस अधिकारी की मौजूदगी में या फिर जिलाधिकारी के सामने दर्ज करा सकती है।
घरेलू हिंसा के खिलाफ अधिकारभारतीय संविधान की धारा 498 के अंतर्गत पत्नी, महिला लिव-इन पार्टनर या किसी घर में रहने वाली महिला को घरेलू हिंसा के खिलाफ आवाज उठाने का अधिकार मिला है। पति, मेल लिव इन पार्टनर या रिश्तेदार अपने परिवार के महिलाओं के खिलाफ जुबानी, आर्थिक, जज्बाती या यौन हिंसा नहीं कर सकते। आरोपी को 3 साल गैर-जमानती कारावास की सजा हो सकती है या जुर्माना भरना पड़ सकता है।
गरिमा और शालीनता का अधिकार
महिला को गरिमा और शालीनता से जीने का अधिकार मिला है। किसी मामले में अगर महिला आरोपी है, उसके साथ कोई मेडिकल परीक्षण हो रहा है तो यह काम किसी दूसरी महिला की मौजूदगी में ही होना चाहिए।
मुफ्त कानूनी मदद के लिए अधिकारबलात्कार की शिकार हुई किसी भी महिला को मुफ्त कानूनी मदद पाने का पूरा अधिकार है। स्टेशन हाउस आफिसर (SHO) के लिए ये जरूरी है कि वो विधिक सेवा प्राधिकरण को वकील की व्यवस्था करने के लिए सूचित करे।
जीरो एफआईआर का अधिकारकिसी महिला के खिलाफ अगर अधिकार होता है तो वह किसी भी थाने में या कहीं से भी एफआईआर दर्ज करा सकती है। इसके लिए जरूरी नहीं कि कंप्लेंट उसी थाने में दर्ज हो जहां घटना हुई है। जीरो एफआईआर को बाद में उस थाने में भेज दिया जाएगा जहां अपराध हुआ हो।