कला और संस्कृति का बेजोड़ नमूना है मैसूर पैलेस, जानें इससे जुड़ी रोचक जानकारी

भारत के सबसे खूबसूरत महलों में शुमार मैसूर पैलेस कला और संस्कृति का बेजोड़ नमूना है। इस महल का समृद्ध इतिहास गुजरे जमाने की कहानी बयां करता है। वर्तमान में महल का जो ढांचा नजर आता है, उसकी नींव महाराजा कृष्णराजेंद्र चतुर्थ वाडियार ने रखी थी। मैसूर पैलेस देखने में बहुत भव्य नजर आता है।मैसूर पैलेस दविड़, पूर्वी और रोमन स्थापत्य कला का अद्भुत संगम है। नफासत से घिसे सलेटी पत्थरों से बना यह महल गुलाबी रंग के पत्थरों के गुंबदों से सजा है। इस महल से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में आइए जानते हैं-

- अपने वर्तमान स्वरूप में यह महल जैसा नजर आता है, वैसा यह अपने मूल स्वरूप में नहीं था। दरअसल पहले यह महल पूरी तरह से चन्दन की लकड़ी का बना था।

- आज मैसूर पैलेस का जो ढांचा नजर आता है, वह इसका चौथा संस्करण है। इस महल को तैयार होने में 15 साल का लंबा समय लगा। 1887 में निर्माण कार्यों की शुरुआत के बाद 1912 में जाकर यह पूर्ण हुआ। इस महल को किसी भारतीय शिल्पकार ने नहीं, बल्कि ब्रिटिश आर्कीटेक्ट हेनरी इरविन ने बनवाया था।

- मैसूर पैलेस को अंबा विलास पैलेस के नाम से भी जाना जाता है। ताज महल के बाद यह देश का दूसरा सबसे अधिक विजिट किया जाने वाला पैलेस है। इस भव्य ऐतिहासिक इमारत को देखने के लिए यहां सालभर सैलानियों का तांता लगा रहता है। खासतौर पर दसारा के जश्न के दौरान यहां सैलानियों का उत्साह देखते ही बनता है।

- मैसूर पैलेस दिन के समय में जितना भव्य दिखता है, रात में उससे भी ज्यादा खूबसूरत दिखता है। संडे, पब्लिक हॉलीडे और दसारा के दौरान रात में यह महल जगमगाता नजर आता है। दिलचस्प बात ये है कि इस महल में 96000 से लेकर 98,000 के करीब बल्ब लगे हुए हैं, जिनके कारण यह रात में दूर से ही दमकता हुआ नजर आता है।