टैक्सटाइल सिटी के साथ ही अपनी विरासत के चलते पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र है राजस्थान का भीलवाड़ा, आइए डालते हैं एक नजर

भीलवाड़ा जिला भारत के राजस्थान राज्य का एक जिला है। जिले का मुख्यालय भीलवाड़ा है, जहाँ वस्त्रों का एक विस्तृत कारोबार है। राजस्थान के दक्षिणी-पूर्वी भाग में स्थित भीलवाड़ा सूती वस्त्र उद्योग के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ पाषाण युगीन सभ्यता के अवशेष प्राप्त हुए हैं। इनमें आंगूचा, ओझियाणा एवं हुरडा मुख्य है। भीलवाड़ा के बागोर गांव में भी खुदाई से पाषाण युगीन सभ्यता का पता चला है। यह जिला पारंपरिक फड़ चित्रकला के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध है।

कभी भीलों के गाँव के रूप में ख्यात रहा यह स्थान आज भारत की टैक्सटाइल सिटी के रूप में जाना जाता है। वर्तमान में वस्त्र उद्योग के चलते ज्यादातर आने वाले व्यवसायी होते हैं लेकिन एक बार जब वे यहाँ आ जाते हैं तो उन्हें यहाँ की बसावट, मंदिर, किले, पर्यटक के तौर पर आकर्षित करते हैं और वे भीलवाड़ा को पूरी तरह से देखे बिना वापस अपने गंतव्य को नहीं जाते हैं। यदि आप अपने वीकेंड के दौरान कहीं घूमने का प्रोग्राम बना रहे हैं तो भीलवाड़ा आपकी समयावधि पर खरा उतरता है। आइए डालते हैं एक नजर भीलवाड़ा के ऐतिहासिक दस्तावेज पर—

इतिहास

भीलवाड़ा का इतिहास 11वीं शताब्दी से संबंधित है। कहा जाता है कि यहाँ पर आदिवासी जनजाति भील रहती थी, जिसने मेवाड़ के महाराणा प्रताप की मुगल सम्राट अकबर के विरुद्ध युद्ध में बहुत मदद की थी। इसी के आधार पर इसका नाम भीलवाड़ा पड़ा। उस समय भील राजाओं ने अपने गाँव में जटाऊ शिव मंदिर का निर्माण करवाया। हालांकि, इस जगह की स्थापना की असल तारीख और समय का अब तक पता नहीं चल पाया है। पुष्टि के अनुसार, वर्तमान भीलवाड़ा शहर में एक टकसाल थी जहाँ भिलाडी के नाम से जाने जाने वाले सिक्कों का खनन किया जाता था और इसी संप्रदाय से जिले का नाम लिया गया था। वर्षों से यह राजस्थान के प्रमुख शहरों में से एक के रूप में उभरा है। आजकल भीलवाड़ा को देश में टेक्सटाइल सिटी के रूप में जाना जाता है। 1948 में राजस्थान का भाग बनने से पूर्व भीलवाड़ा भूतपूर्व उदयपुर रियासत का हिस्सा था।

पर्यटन

थला की माता जी देवली


भीलवाड़ा शहर से 15 किलोमीटर दूर बनास नदी के किनारे बहुत पुराना और विशाल बढ़ा देवी का मंदिर है। यह बहुत विख्यात है यहां पर बारिश के मौसम में बड़ी संख्या में लोग घूमने के लिए आते हैं। यहां पर नवरात्रा में अष्टमी के दिन बड़े मेले का आयोजन किया जाता है जिसमें राष्ट्रीय स्तर के कलाकार आते हैं। साथ ही अष्टमी के दिन देवली में भव्य जुलूस निकलता है, जुलूस बाद में माता जी के यहां पर आता है। भीलवाड़ा से देवली 2 किलोमीटर दूर है।

चावण्डिया तालाब

भीलवाड़ा से 15 किलोमीटर कोटा रोड़ की तरफ चावंडिया तालाब स्थित है जहाँ तालाब के मध्य माता चामुंडा का मंदिर स्थित है। यहाँ हर वर्ष अक्टूबर से मार्च के मध्य विदेशी प्रवासी पक्षी आते हैं और इसी कारण इसे पक्षी ग्राम के नाम से जाना जाता है। यह पर्यटकों और पक्षी प्रेमियों के लिए बहुत ही सुन्दर जगह है। हर वर्ष जिला प्रशासन और कुछ संस्थाओं के द्वारा पक्षी महोत्सव का आयोजन किया जाता है, जहाँ देश विदेश से पक्षी विशेषज्ञ पक्षी अवलोकन के लिए आते हैं।

दरगाह हजरत गुल अली बाबा

शहर के सांगानेरी गेट पर स्थित यह दरगाह आस्ताना हजरत गुल अली बाबा रहमतुल्लाह अलेही के नाम से मशहूर है। यहाँ सभी धर्मों के लोग आस्था रखते हैं। दरगाह पर प्रति वर्ष 1 से 3 नवम्बर तक उर्स का आयोजन होता है जो बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। दरगाह के पास ही एक विशाल मस्जिद भी स्थित है जो रजा मस्जिद के नाम से जानी जाती है। इस मस्जिद में पांच हजार लोग एकसाथ नमाज अदा कर सकते हैं। दरगाह के सामने ही सुव्यवस्थित ढंग से एक नगरी बसी हुई है जिसे गुल अली नगरी के नाम से जाना जाता है। इस नगरी में कुल-दे-सेक- यानी वो गली जो आगे जाकर बंद हो जाती है, यहाँ की खास पहचान है। आस्ताना गुल अली में ही एक दारुल उलूम भी संचालित है जिसका नाम सुल्तानुल हिन्द ओ रजा दारुल उलूम है इस दारुल उलूम में देश के कई राज्यों से आये बच्चे इल्म हासिल करते हैं।

गाँधी सागर तालाब

यह तालाब शहर के दक्षिण पूर्वी भाग में स्थित है किसी जमाने में यह लोगों के लिए प्रमुख पेयजल स्रोत हुआ करता था। इस तालाब के मध्य में एक विशाल टापू स्थित है यह तालाब लोगों के लिए महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल है। इसके उत्तरी छोर पर एक तरफ तेजाजी का मंदिर, दूसरी तरफ बालाजी का मंदिर तथा मध्य में हजरत मंसूर अली बाबा और हजरत जलाल शाह बाबा की दरगाह स्थित है। इस पर्यटन स्थल को विकसित करने के लिए इसके दक्षिणी किनारे पर एक मनोरम पार्क का निर्माण कराया गया है जिसका नाम ख्वाजा पार्क रखा गया है। बरसात के मौसम में इस तालाब से गिरते पानी का मनोरम दृश्य देखते ही बनता है।

हरणी महादेव

भीलवाड़ा से 6 किलोमीटर दूर मंगरोप रोड़ पर शिवालय है। जो कि हरणी महादेव के नाम से प्रसिद्ध है। यहाँ पर प्रति वर्ष शिवरात्रि के अवसर पर 3 दिवसीय भव्य मेले का आयोजन होता है। मेले का आयोजन जिला प्रशासन द्वारा नगर परिषद के सहयोग से किया जाता है। जिसमें 3 दिन तक प्रत्येक रात्रि में अलग-अलग कार्यक्रम यथा धार्मिक भजन संध्या (रात्रि जागरण), कवि सम्मेलन व सांस्कृतिक संध्या का आयोजन किया जाता है। यह मन्दिर पहाड़ी की तलहटी पर स्थित है। प्राचीन समय में यहाँ घना आरण्य होने से आरण्य वन कहा जाता था, जिसका अपभ्रंश हो कर हरणी नाम से प्रचलित हो गया।

बदनोर

भीलवाडा शहर से 72 किलोमीटर दूर स्थित इस कस्बे का इतिहास में एक अलग ही महत्व है। जब मेड़ता के राजा जयमल ने राणा उम्मदेसिंह से सहायता के लिए कहा तो राणा ने जयमल को बदनोर जागीर के रूप में दिया। बदनोर में कई देखने योग्य स्थल हैं उनमें से निम्न हैं - छाचल देव, अक्षय सागर, जयमल सागर, बैराट मंदिर, धम धम शाह बाबा की दरगाह, आंजन धाम, केशर बाग और जल महल।

कोटडी

भीलवाडा शहर से 23 किलोमीटर दूर स्थित इस कस्बे का नाम आते ही सबसे पहले विख्यात श्री चारभुजाजी का मंदिर स्मृति में आता है। भीलवाडा-जहाजपुर रोड पर स्थित यह नगर भगवान के मंदिर के कारण काफी प्रसिद्ध है। सगतपुरा का देवनारायण मंदिर, पारोली में चंवलेश्वर मंदिर, मीराबाई का आश्रम व ढोला का सगस जी (भूत), कोठाज का श्रीचारभुजाजी का मंदिर देखने योग्य हैं। आसोप के चारभुजानाथ का मंदिर भी दर्शनीय है। देवनारायण जी का मन्दिर देवतालाई में बना हुआ है, जहाँ पर मूर्तियाँ अपने आप जमीन से बाहर निकली। 1921 में बसा गुर्जरों का गढ़ सरकाखेड़ा गांव भी कोटडी में है।

बनेड़ा

यह भीलवाडा जिले का सबसे पुराना शहर है। बनेड़ा में दुर्ग है, जो महाराजा सरदार सिंह ने बनवाया था। यह एक तहसील व उपखंड कार्यालय है। यह एक ऐतिहासिक दुर्ग है जहाँ सबसे पुराना जैन मंदिर है व दुर्ग की रक्षा के लिए बहुत बड़ा परकोटा बना हुआ है। मेनाल
माण्डलगढ से 20 किलोमीटर दूर चित्तौडग़ढ़ की सीमा पर स्थित पुरातात्विक एवं प्राकृतिक सौन्दर्य स्थल मेनाल में 12वीं शताब्दी के चौहान कला के लाल पत्थरों से निर्मित महानालेश्वर मंदिर, हजारेश्वर मंदिर देखने योग्य हैं। सैकडों फीट ऊंचाई से गिरता मेनाली नदी का जल प्रपात भी पर्यटकों के लिए आकर्षण का प्रमुख केन्द्र हैं।

जहाजपुर

भीलवाडा का प्रसिद्ध ऐतिहासिक स्थल, जिसका इतिहास बड़ा रंगबिरंगा रहा है। कर्नल जेम्स टॉड 1820 में उदयपुर जाते समय यहाँ आये थे। यहाँ का बड़ा देवरा (पुराने मंदिरों का समूह), पुराना किला और गैबीपीर के नाम से प्रसिद्ध मस्जिद दर्शनीय हैं। यहाँ पर जैन मंदिर भी है जो स्वस्तिधाम के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर में श्री मुनि सुवर्तनाथ की प्राकट्य प्रतिमा है जो बहुत अदभुद है। यह प्रतिमा चमत्कारी है, यह मंदिर शाहपुरा रोड पर स्थित है। जहाजपुर से 12 किलोमीटर दूर श्री घटारानी माताजी का मंदिर है जो अतिसुन्दर व दर्शनीय है तथा इस मंदिर से 2 किलोमीटर दूर पंचानपुर चारभुजा का प्राकट्य स्थान मंदिर है। जहाजपुर क्षेत्र में एक नागदी बांध है जो अतिसूंदर व आकर्षक है। यहाँ एक नदी भी है जिसे नागदी नदी के नाम से जाना जाता है। इसे जहाजपुर की गंगा भी कहते हैं। जहाजपुर में देखने के लिए अनेकों मंदिर व धर्मस्थल हैं।

बिजोलिया

माण्डलगढ से लगभग 35 किलोमीटर दूर स्थित बिजौलिया में प्रसिद्ध मंदाकिनी मंदिर एवं बावडियाँ स्थित हैं। ये मंदिर 12वीं शताब्दी के बने हुए हैं। लाल पत्थरों से बने ये मंदिर पुरातात्विक व ऐतिहासिक महत्व के स्थल हैं। बिजोलिया अंग्रेजों के विरुद्ध हुए किसान आंदोलन के लिए भी प्रसिद्ध है। यहाँ पर बना भूमिज शैली का विष्णु भगवान का मंदिर 1000 वर्ष से भी पुराना है, जो भीलवाडा का एकमात्र मंदिर है। यहाँ बिजोलिया अभिलेख हैं जिससे चौहानों की जानकारी मिलती है व इसमें चौहानों को ब्राह्मण बताया गया है।

शाहपुरा

भीलवाडा तहसील मुख्यालय से 50 किलोमीटर पूर्व में शाहपुरा राज्य की राजधानी था। यहाँ रेल्वे स्टेशन नहीं है परन्तु यह सडक मार्ग द्वारा जिला मुख्यालय से जुडा हुआ है। यह स्थान रामस्नेही सम्प्रदाय के श्रद्धालुओं का प्रमुख तीर्थ स्थल है। मुख्य मंदिर रामद्वारा के नाम से जाना जाता है। यहाँ पूरे भारत से और बर्मा तक से तीर्थ यात्री आते हैं। यहाँ लोक देवताओं की फड पेंटिंग्स भी बनाई जाती हैं। यहाँ प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी केसरसिंह बारहठ की हवेली एक स्मारक के रूप में विद्यमान है। यहाँ होली के दूसरे दिन प्रसिद्ध फूलडोल मेला लगता है, जो लोगों के आकर्षण का मुख्य केन्द्र है। यहाँ शाहपुरा से 30 किलो मीटर दूर धनोप माता का मंदिर भी है और खारी नदी के तट पर शिव मंदिर छतरी भी लोगों को काफी पसंद है।

माण्डल

भीलवाडा से 14 किलोमीटर दूर स्थित माण्डल कस्बे में प्राचीन स्तम्भ मिंदारा पर्यटन की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं। यहाँ से कुछ ही दूर मेजा मार्ग पर स्थित प्रसिद्ध जगन्नाथ कछवाह की बत्तीस खम्भों की विशाल छतरी ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक महत्व का स्थल हैं। छह मिलोकमीटर दूर भीलवाडा का प्रसिद्ध पर्यटन स्थल मेजा बांध है। होली के तेरह दिन पश्चात रंग तेरस पर आयोजित नाहर नृत्य लोगों के आकर्षण का प्रमुख केन्द्र होता है। कहते हैं कि शाहजहाँ के शासनकाल से ही यहाँ यह नृत्य होता चला आ रहा है। यहाँ के तालाब के पाल पर प्राचीन शिव मंदिर स्थित है। जिसे भूतेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है।

माण्डलगढ

भीलवाडा से 51 किलोमीटर दूर माण्डलगढ नामक अति प्राचीन विशाल दुर्ग है। त्रिभुजाकार पठार पर स्थित यह दुर्ग राजस्थान के प्राचीनतम दुर्गों में से एक हैं। यह दुर्ग बारी-बारी से मुगलों व राजपूतों के आधिपत्य में रहा है।