Navratri 2022 : राजस्थान के इन 7 मातारानी मंदिरों में लगता है भक्तों का जमावड़ा, जरूर करें दर्शन

नवरात्रि का पावन पर्व जारी हैं जिसका जोश और उत्साह देशभर में देखा जा सकता हैं। मातारानी के पंडाल लगाते हुए लोग गरबा का आयोजन कर रहे हैं जहां लोग मातारानी की भक्ति में जमकर नाचते हुए देखे जा सकते हैं। नवरात्रि के इन दिनों में भक्तगण मातारानी के मंदिरों में दर्शन करने पहुंचते हैं और उनका आशीर्वाद लेते हैं। आज इस कड़ी में हम बात करने जा रहे हैं राजस्थान में स्थित माता के विभिन्न स्वरूपों के प्रसिद्द मंदिरों की जो देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी अपनी पहचान बना चुके हैं। नवरात्रों में यहां आयोजित मेलों में बड़ी संख्या में भक्त पहुंचते है। अगर आप राजस्थान में रहते हैं या यहां घूमने आए हुए हैं तो मातारानी के इन मंदिरों के दर्शन जरूर करें जहां भक्तों का जमावड़ा लगा रहता हैं। आइये जानते हैं इन मंदिरों में बारे में...

करणी माता मंदिर, बीकानेर

करणी माता मंदिर बीकानेर में देशनोक में स्थित है जो बीकानेर शहर से लगभग 30 किमी दूर है। यह मंदिर कर्णी माता को समर्पित है जो माना जाता है कि माँ दुर्गा का अवतार है। इसकी मुगल वास्तुकला पर्यटकों के साथ-साथ भक्तों को भी लुभाती है। इस मंदिर के बारे में एक दिलचस्प तथ्य यह है कि इसे लोकप्रिय रूप से चूहों के मंदिर के रूप में जाना जाता है, क्योंकि मंदिर परिसर में लगभग 20000-25000 काले चूहे रहते हैं। इस मंदिर का मुख्य अनुष्ठान चूहों को खिलाना है।

शाकम्भरी माता का मंदिर

राजस्थान की राजधानी जयपुर से करीब 95 किलोमीटर दूर स्थित सांभर झील। नमक की इस झील से लाखों टन नमक पैदा होता है। यहां पर स्थित प्रसिद्ध शाकम्भरी माता का मंदिर। देश में शाकम्भरी माता की तीन शक्तिपीठ है जिनमें ये सबसे पुरानी है। यहां मंदिर करीब 2500 साल पुराना है। कहा जाता है कि शाकम्भरी माता के श्राप से यहां बहुमूल्य सम्पदा नमक में बदल गई थी। शाकम्भरी माता चौहान वंश की कुलदेवी है लेकिन, माता को अन्य कई धर्म और समाज के लोग पूजते है। इन परिवारों में विवाह, बच्चे का जन्म जैसे शुभ कार्य होने पर यहां ढोक लगाने आते है।

ईडाणा माता मंदिर, उदयपुर

मेवाड़ के सबसे प्रमुख शक्ति पीठों में से एक ईडाणा माता मंदिर में खुश होने पर माता स्वयं ही अग्नि स्नान करती हैं। यह मंदिर उदयपुर शहर से 60 किमी दूर कुराबड-बम्बोरा मार्ग पर अरावली की विस्तृत पहाड़ियों के बीच स्थित है। ईडाणा माता राजपूत समुदाय, भील आदिवासी समुदाय सहित संपूर्ण मेवाड़ की आराध्य मां हैं। ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण महाभारत काल में हुआ था। कई रहस्यों को अपने अंदर समेटे हुए इस मंदिर में नवरात्र के दौरान भक्तों की भीड़ होती है। ईडाणा माता का अग्नि स्नान देखने के लिए हर साल भारी संख्या में भक्त यहां पहुंचते हैं। अग्नि स्नान की एक झलक पाने के लिए भक्त घंटों इंतजार करते हैं। ऐसा माना जाता है कि इसी समय देवी का आशीर्वाद भक्तों को प्राप्त होता है।

तनोट माता मंदिर

तनोट माता मंदिर राजस्थान के जैसलमेर जिले के तनोट नामक गाँव में भारत-पाकिस्तान सीमा के करीब स्थित है। इस गाँव की आबादी एक हजार से भी कम है और बहुत कम घर हैं। गांव थार रेगिस्तान के बीच में है और शहर से बहुत दूर है। लोगों के अनुसार, मंदिर उस क्षेत्र को हमलों से बचाता है और उनकी रक्षा करता है ।1960 के भारत पाकिस्तान युद्ध की एक कहानी है। कहानी कहती है कि पाकिस्तानी सेना मंदिर क्षेत्र पर हमला करने की कोशिश कर रही थी और हजारों बमों के साथ क्षेत्र पर बमबारी कर रही थी, लेकिन बम में से कोई भी विस्फोट नहीं हुआ, एक भी विस्फोट नहीं हुआ जो मंदिर और आसपास के इलाकों को छोड़कर चला गया। बीएसएफ के लोगों का उस मंदिर के प्रति बहुत सम्मान है और वे मंदिर क्षेत्र के आसपास से कुछ मिट्टी ले जाते हैं और खुद और अपने वाहनों पर लगाते हैं। उनका मानना है कि मंदिर की पवित्रता उनकी सुरक्षा में मदद करेगी।

त्रिपुर सुंदरी मंदिर, बांसवाड़ा

त्रिपुर सुंदरी मंदिर बांसवाड़ा जिले से 19 किमी की दूरी पर स्थित है। यह मंदिर माता तुर्तिया के नाम से भी जाना जाता है। यहां काले पत्थर पर खुदी हुई देवी की एक मूर्ति, मंदिर में प्रतिष्ठित है। लोक कथाओं के अनुसार मंदिर कुषाण तानाशाह के शासन से भी पहले बनाया गया था। यह मंदिर एक शक्ति पीठ के रूप में प्रसिद्ध है। जो हिंदू, देवी शक्ति’ या देवी पार्वती की पूजा करते हैं, उनके लिए यह एक पवित्र स्थान है। यहां पांच फीट ऊंची मां भगवती त्रिपुर सुंदरी की मूर्ति अष्ठादश भुजाओं वाली है, जिसे चमत्कारी माना जाता है। मां भगवती त्रिपुर सुंदरी का सात दिनों में हर दिन के हिसाब से अलग-अलग श्रृंगार किया जाता है।

कैला देवी मंदिर, करौली

राजस्थान के करौली स्थित कैला मैया के मंदिर की मान्यता दूर-दूर तक है। चैत्र और अश्विनी मास के नवरात्रों में यहां लक्खी मेले आयोजित होते हैं। इस मंदिर में दो प्रतिमाएं है। कैला मैया की प्रतिमा को चेहरा तिरछा है। मंदिर को निर्माण 1600 ईस्वी में राजा भोमपाल सिंह ने करवाया था। मान्यता है कि भगवान कृष्ण की बहन योगमाया जिसका वध कंस करना चाहता था, वे ही कैला देवी हैं। प्राचीन काल में नरकासुर नामक राक्षस का वध माता दुर्गा ने कैला मैया के रूप मे अवतार लेकर किया था। यहां आने वाले भक्त माता को प्रसन्न करने के लिये लांगुरिया के भजन गाते हैं।

जीण माता मंदिर, सीकर

सीकर जिले के गोरिया गांव के दक्षिण मे पहाड़ों पर जीण माता का मंदिर है। जीण माता का वास्तविक नाम जयंती माता है। घने जंगल से घिरा हुआ मंदिर तीन छोटे पहाड़ों के संगम पर स्थित है। इस मंदिर में संगमरमर का विशाल शिव लिंग और नंदी प्रतिमा मुख्य आकर्षण है। इस मंदिर के बारे में कोई पुख्ता जानकारी उपलब्ध नहीं है। फिर भी पौराणिक मान्यताओं के अनुसार माता का मंदिर 1000 साल पुराना माना जाता है। जबकि कई इतिहासकार आठवीं सदी में जीण माता मंदिर का निर्माण काल मानते हैं।