भारत में ही है एशिया का सबसे स्वच्छ गांव, कहा जाता हैं 'भगवान का अपना बगीचा'

शहरों की भीड़भाड़ से आपका मन उब गया हो और आपको एक सुन्दवर, शांत और स्वकच्छ8 जगह घुमने की तालाश हो तो हम आपको ले चलते हैं ऐसे ही एक अति सुन्द र, साफ गांव की और। भारत गांवों का देश है। चलिए, गांव घुमने, हम ले चलते हैं आपको एशिया का सबसे सुन्दनर और स्वच्छ गांव की और। जहां एक और सफाई के मामले में हमारे अधिकांश गांवो, कस्बों और शहरों की हालत बहुत खराब है वही यह एक सुखद आश्चर्य की बात है की एशिया का सबसे साफ़ सुथरा गांव भी हमारे देश भारत में है। यह है मेघालय का मावल्यान्नॉंग गांव जिसे की भगवान का अपना बगीचा के नाम से भी जाना जाता है। सफाई के साथ साथ यह गांव शिक्षा में भी अवल्ल है। यहां की साक्षरता दर 100 फीसदी है, यानी यहां के सभी लोग पढ़े-लिखे हैं। इतना ही नहीं, इस गांव में ज्यादातर लोग सिर्फ अंग्रेजी में ही बात करते हैं।

गाँव के लोग खुद करते हैं सफाई

साफ-सफाई और स्वच्छता के लिए मावल्यान्नाँग गाँव वर्ष 2003 में एशिया का सबसे साफ गाँव बना। इसके बाद 2005 में यह गाँव भारत का सबसे साफ गाँव बना। इस गाँव के लोगों की सबसे खास बात यह है कि वे साफ-सफाई के लिए प्रशासन पर आश्रित नहीं रहते, बल्कि स्वयं ही सफाई का बीड़ा उठाते हैं। सबसे अच्छी बात यह है कि इस गाँव के लोगों को कहीं भी गंदगी नजर आती है तो वह खुद साफ-सफाई में लग जाते हैं। चाहे वह स्त्री हो, पुरुष हो, बच्चे हो या बुजुर्ग, स्वयं सफाई करने लगते हैं।

शिक्षा के मामले में भी अव्वल है यह गांव


साफ-सफाई के साथ यह गांव शिक्षा के मामले में भी अव्वल है। यहां की साक्षरता दर 100 फीसदी है यानी इस गांव में रहनेवाले सभी लोग पढ़े-लिखे हैं। इतना ही नहीं यहां रहनेवाले ज्यादातर लोग सिर्फ अंग्रेजी में ही बात करते हैं। हालांकि सुपारी की खेती ही इन लोगों की आजीविका का मुख्य साधन है।


कैसे पहुंचे मावल्यान्नॉंग गांव

पूरे गांव में लगे हैं बांस के डस्टबिन-यहां लोग अपने घर से निकलनेवाले कूड़े-कचरे को बांस से बने डस्टबिन में जमा करते हैं और उसे एक जगह इकट्ठा कर खेती के लिए खाद की तरह इस्तेमाल करते हैं। इस गांव की खासियत यह है कि यहां के लोग साफ-सफाई के मामले में किसी भी तरह की कोताही नहीं बरतते हैं इसलिए पूरे गांव में जगह-जगह पर कचरा डालने के लिए बांस से बने हुए डस्टबिन लगाए गए हैं। मावल्यान्नॉंग गांव शिलांग से 90 किलोमीटर और चेरापूंजी से 92 किलोमीटर दूर स्थित है। दोनों ही जगह से सड़क के द्वारा आप यहां पहुंच सकते है। आप चाहे तो शिलांग तक देश के किसी भी हिस्से से हवाईजहाज के द्वारा भी पहुंच सकते है। लेकिन यहां जाते वक़्त एक बात ध्यान रखे की अपने साथ पोस्ट पेड़ मोबाइल ले के जाए क्योंकि अधिकतर पूर्वोत्तर राज्यों में प्रीपेड मोबाइल बंद है।