इंसान अपनी जरूरतों के लिए हजारों मील का सफर तय करता रहा है। कभी वह व्यापार के लिए यात्राएं करता था तो कभी स्थायी निवास खोजने या एक बेहतर जीवन की तलाश में। पुराने जमाने में पासपोर्ट और वीजा की जगह हौसले की जरूरत होती थी। कच्चे पक्के रास्ते, मौसम की अनिश्चितता,जंगली जानवरों और लुटेरों का हर सफर करने वाले को सामना करना पड़ता था। ऐसा ही एक मार्ग हुआ करता था रेशम मार्ग या सिल्क रूट। यह मार्ग ईसा से लगभग दो सौ साल पहले से ईसा की दूसरी सदी तक बहुत फला फूला। उस समय चीन के हान वंश का शासन हुआ करता था। चीन से मध्य एशिया होते हुए युरोप से यह मार्ग अफ्रिका तक जुडा हुआ था।
यह वह दौर था जब दुनिया में पहली बार चीन में रेशम का चलन शुरू हुआ था,तो चीन से व्यापारी रेशम को इस मार्ग के द्वारा दुनिया के दूसरे कोनो तक पहुंचाने लगे।
लगभग साढ़े छह हजार किलोमीटर में फैले हुए इस मार्ग के किनारे किनारे कई संस्कृतियां विकसित हुईं तो कभी कभी इस रास्ते से लुटेरों के हमले भी हुए।
रेशम मार्ग से भारत भी जुड़ा हुआ था। भारत के ताम्रलिप्ती,लेह,जैसलमेर,मथुरा,बनारस जैसे शहर सिल्क रोड से जुड़े हुए थे।भारत से कालीमिर्च,हाथीदांत,कपडों का व्यापार होता था तो दूसरे देशों से सोना,चांदी,शराब चाय, भारत तक पहुंचती थी।
ठंडे रेगिस्तान में फैले हुए इस मार्ग का सफर ऊंटों या घोड़ों की सहायता से तय किया जाता था। ईरान,इराक,तुर्की,उज्बेकिस्तान,तजाकिस्तान,अफगानिस्तान,मंगोलिया,पाकिस्तान,भारत,बांग्लादेश,
मिश्र,सीरिया जैसे देश इस मार्ग से जुडे हुए थे। इस मार्ग पर बहुत कम
व्यापारी थे जिन्होने पूरा रास्ता तय किया हो वे अपना सामान दूसरे
व्यापारियों को बेच देते और उनसे जरूरत का सामान खरीद लिया करते थे।
मार्कोपोलो ने इसी रास्ते से सफर किया था।
कहा जाता है चाय,चीनी और रेशम ही इस मार्ग से होते हुए दुनिया में नहीं फैला बल्कि प्लेग जैसी महामारी भी इसी रेशम मार्ग से दुनिया में फैली।