भारत को मंदिरों का देश कहा जाता हैं जहां हर गली में कोई ना कोई मंदिर तो मिल ही जाएगा। हर मंदिर की अपनी विशेषता और पौराणिक महत्व होता हैं जिसके लिए उसे जाना जाता हैं। देश में कई मंदिर अपने चमत्कार के लिए जाने जाते हैं तो कई अपनी भव्यता और वास्तुकला के चलते। लेकिन आज इस कड़ी में हम आपको कुछ ऐसे मंदिरों के बारे में बताने जा रहे हैं जो सिर्फ साल में एक ही बार खुलने के लिए जाने जाते हैं। जी हां, देश में कई मंदिर ऐसे हैं जिनके कपाट अर्थात मंदिर के द्वार साल में सिर्फ एक बार ही खुलते हैं। तो आइये जानते हैं इन मंदिरों के बारे में...
नागचंद्रेश्वर मंदिर, उज्जैननाग देवता को समर्पित इस मंदिर के कपाट साल में सिर्फ एक बार नाग पंचमी के दिन ही खुलते हैं। इस दौरान मंदिर में श्रद्धालु बड़ी संख्या में पहुंचते हैं और अपनी मनोकामनाएं पूर्ण होने की प्रार्थना करते हैं। मंदिर के दरवाजे साल में एक बार खुलने के पीछे एक कहानी है, कहा जाता है कि तक्षक नाम के नाग ने भगवान शिव की तपस्या की और भगवान शिव ने प्रसन्न होकर तक्षक को अमरता का वरदान दिया। उसके बाद तक्षक साधना के लिए महाकाल वन चले गए ताकि कोई साधना के दौरान उन्हें कोई परेशान न करें, ऐसे में सालों से यही प्रथा है कि मात्र नागपंचमी के दिन ही वे दर्शन को उपलब्ध होते हैं, मंदिर में स्थापित मूर्ति को तक्षक (नागदेवता) के रूप में पूजा की जाती है।
रानी पोखरी का मंदिरउत्तराखंड के ऋषिकेश में स्थित रानी पोखरी का मतलब रानी का तालाब होता है। कहते हैं कि इस मंदिर के कपाट साल में दीपावली के पांचवे दिन ही खुलता है। ये मंदिर तालाब के ठीक बीच में स्थित हैं और यहां भी श्रद्धालु बड़ी संख्या में पहुंचते हैं। भगवान शिव ने यहां अपना वास बनाकर लोगों को रोग और दुरात्माओं से बचाने का काम किया। तब से यह मंदिर असीम आस्था और विश्वास का प्रतीक बन गया है। यह मंदिर ऋषिकेश तहसील मुख्यालय से करीब 12 किमी दूर रानीपोखरीग्रांट भोगपुर रोड पर स्थित है।
मंगला देवी मंदिरकर्नाटक के मंगलौर शहर में स्थित इस मंदिर के कपाट भी साल में एक बार ही खुलते हैं। ये मंदिर मैंगलोर के बोलारा नामक स्थान पर स्थित है। नवरात्रि के दौरान यहां विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है। यह मई के महीने में चित्रपूर्णमी समारोह में साल में केवल एक बार खोला जाता है। यह ग्रेनाइट के विशाल टुकड़ों से बना एक 1000 साल पुराना मंदिर है, जो समुद्र तल से 1337 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। नवरात्रि त्योहार के नौवें दिन पर, एक भव्य जुलूस, रथोत्सव का आयोजन किया जाता है, जिसमें देवता एक भव्य रथ पर सवार होते हैं। लोगों की यह धारणा है, कि मंगलादेवी मन्दिर में जाकर प्रार्थना करने से अच्छा समय आता है। इस मन्दिर में गणेशोत्सव भी एक बड़े पैमाने पर मनाया जाता है।
हसनम्बा मंदिरकर्नाटक में मौजूद ये मंदिर अम्बा देवी को समर्पित है। इस मंदिर के कपाट भी दीपावली के दौरान ही खुलते हैं। कहते हैं कि इस मंदिर को 12वीं शताब्दी में बनवाया गया था। माना जाता है कि हसनम्बा मंदिर चमत्कारोंकी जगह है। कहा जाता है कि यहां जो दीप जलाए जाते हैं वो साल भर जलते रहते हैं और देवी को जो प्रसाद चढ़ाया जाता है वो अगले साल तक ताजा रहता है। मंदिर जनता के लिए साल में कुछ ही दिन खोला जाता है। मंदिर के कपाट दीपावली के समय खुलते हैं। मंदिर में वीणा बजाते हुए 10 के बजाय नौ सिर वाले रावण की एक छवि है।
एकलिंगेश्वर महादेव मंदिरये धार्मिक स्थल राजस्थान के जयुपर में स्थित है, जिसका कपाट साल में एक बार सिर्फ शिवरात्रि के दिन ही खुलता है। भक्तों को इस मंदिर के खुलने की प्रतीक्षा रहती है और इस दिन यहां दर्शन के लिए लंबी कतार लग जाती है। एकलिंगेश्वर महादेव की पूजा शिवरात्रि पर सबसे पहले जयपुर के राजघराने के द्वारा की जाती है। जब तक पूर्व राजमाता गायत्री देवी जीवित थीं, वह सबसे पहले इस मंदिर में शिवलिंग का अभिषेक करती थीं और फिर जयपुर शहर के साथ ही दूर-दूर से आए भक्त शिवजी की पूजा करते थे। यह मंदिर आज भी शाही परिवार के अधिकार क्षेत्र में ही माना जाता है और केवल शिवरात्री पर आम लोगों के लिए खुलता है।
बंशी नारायण मंदिरउत्तराखंड के चमोली में बंशी नारायण मंदिर स्थित है। यह मंदिर काफी लोकप्रिय है। भक्त साल भर इस मंदिर के दर्शन नहीं कर पाते, क्योंकि यह पूरे साल बंद रहता है। हालांकि मंदिर के कपाट खास दिन पर सिर्फ 12 घंटों के लिए खोले जाते हैं। जिस दिन मंदिर के कपाट खुलते हैं, श्रद्धालुओं की भीड़ लग जाती है। लोग यहां इस दिन पूजा अर्चना करते हैं और भगवान बंशी नारायण का आशीर्वाद लेते हैं। उर्गम घाटी से करीब 12 किमी की पैदल दूरी पर स्थित हैं वंशीनारायण मंदिर। कलगोठ गांव में स्थित, कत्यूर शैली में बने इस मंदिर में भगवान नारायण की चतुर्भुज मूर्ति विराजमान है। दस फीट ऊंचे वंशीनारायण मंदिर के विषय में मान्यता है कि राजा बलि के द्वारपाल रहे विष्णु ने वामन अवतार से मुक्ति के बाद सबसे पहले इसी स्थान पर प्रकट हुये।