केवल हिंदू लोगों को ही मिलता हैं नेपाल के पशुपतिनाथ मंदिर में प्रवेश, जानें इससे जुड़ी जानकारी

सनातन धर्म दुनियाभर में फैला हुआ हैं और इससे जुड़े धार्मिक स्थल दुनियाभर में देखने को मिल जाते हैं। भारत के अलावा भी कई मंदिर हैं जो दुनियाभर में प्रसिद्द हैं। आज इस कड़ी में हम बात करने जा रहे हैं नेपाल देश के काठमांडू में बागमती नदी के किनारे पर स्थित पशुपतिनाथ मंदिर के बारे में जिसका पौराणिक महत्व भी हैं। यह मंदिर भव्य है और यहां पर देश-विदेश से पर्यटक आते हैं। इसे यूनेस्को की विश्व धरोहर में शामिल किया गया है। भारत से हर साल लाखों श्रद्धालु नेपाल पशुपतिनाथ मंदिर दर्शन करने पहुंचते हैं। आज इस कड़ी में हम आपको नेपाल के पशुपतिनाथ मंदिर से जुड़ी जरूरी जानकारी देने जा रहे हैं।

पशुपतिनाथ मंदिर का इतिहास

माना जाता है कि यह लिंग, वेद लिखे जाने से पहले ही स्थापित हो गया था। पशुपति काठमांडू घाटी के प्राचीन शासकों के अधिष्ठाता देवता रहे हैं। पाशुपत संप्रदाय के इस मंदिर के निर्माण का कोई प्रमाणित इतिहास तो नहीं है किन्तु कुछ जगह पर यह उल्लेख मिलता है कि मंदिर का निर्माण सोमदेव राजवंश के पशुप्रेक्ष ने तीसरी सदी ईसा पूर्व में कराया था। यह मंदिर 17वीं शताब्दी आते-आते काफी क्षतिग्रस्त हो गया था। तो तभी इसे आखिरी बार 17वीं शताब्दी में ही पुनः निर्मिति किया गया था। अप्रैल 2015 में आए विनाशकारी भूकंप में पशुपतिनाथ मंदिर के विश्व विरासत स्थल की कुछ बाहरी इमारतें पूरी तरह नष्ट हो गयी थी जबकि पशुपतिनाथ का मुख्य मंदिर और मंदिर की गर्भगृह को किसी भी प्रकार की हानि नहीं हुई थी।

पशुपतिनाथ मंदिर की पौराणिक मान्यता

कुरुक्षेत्र की लड़ाई के बाद अपने ही बंधुओं की हत्या करने की वजह से पांडव बेहद दुखी थे। उन्होंने अपने भाइयों और सगे संबंधियों को मारा था। इसे गोत्र वध कहते हैं। उनको अपनी करनी का पछतावा था और वे खुद को अपराधी महसूस कर रहे थे। खुद को इस दोष से मुक्त कराने के लिए वे शिव की खोज में निकल पड़े। लेकिन शिव नहीं चाहते थे कि जो जघन्य कांड उन्होंने किया है, उससे उनको इतनी आसानी से मुक्ति दे दी जाए। इसलिए पांडवों को अपने पास देखकर उन्होंने एक बैल का रूप धारण कर लिया और वहां से भागने की कोशिश करने लगे। लेकिन पांडवों को उनके भेद का पता चल गया और वे उनका पीछा करके उनको पकड़ने की कोशिश में लग गए। इस भागा दौड़ी के दौरान शिव जमीन में लुप्त हो गए और जब वह पुन: अवतरित हुए, तो उनके शरीर के टुकड़े अलग-अलग जगहों पर बिखर गए।

नेपाल के पशुपतिनाथ में उनका मस्तक गिरा था और तभी इस मंदिर को तमाम मंदिरों में सबसे खास माना जाता है। केदारनाथ में बैल का कूबड़ गिरा था। बैल के आगे की दो टांगें तुंगनाथ में गिरीं। यह जगह केदार के रास्ते में पड़ता है। बैल का नाभि वाला हिस्सा हिमालय के भारतीय इलाके में गिरा। इस जगह को मध्य-महेश्वर कहा जाता है। यह एक बहुत ही शक्तिशाली मणिपूरक लिंग है। बैल के सींग जहां गिरे, उस जगह को कल्पनाथ कहते हैं। इस तरह उनके शरीर के अलग-अलग टुकड़े अलग-अलग जगहों पर मिले।

भगवान पशुपतिनाथ प्रतिमा वर्णन

पशुपति मंदिर में चारों दिशाओं में एक मुख है और एक मुख ऊपर की दिशा में भी है। हर मुख के दाएं हाथ में रुद्राक्ष की माला और बाएं हाथ में कमंडल मौजूद है। मंदिर में स्थापित शिवलिंग के पांचों मुखों के गुण अलग-अलग हैं। जो मुख दक्षिण की ओर है उसे अघोर मुख कहा जाता है। पश्चिम की ओर मुख को सद्योजात, पूर्व और उत्तर की ओर मुख को तत्वपुरुष और अर्द्धनारीश्वर कहा जाता है। जो मुख ऊपर की ओर है उसे ईशान मुख कहा जाता है। यह निराकार मुख है। यही भगवान पशुपतिनाथ का श्रेष्ठतम मुख माना जाता है। श्री पशुपतिनाथ मंदिर में स्थित शिवलिंग बहुत ही कीमती और चमत्कारी है। माना जाता है कि यह शिवलिंग पारस के पत्थर से बना है। अब पारस के पत्थर के बारे में तो हम सभी जानते ही हैं कि इसके स्पर्श मात्र से लोहा भी सोना बन जाता है।

पशुपतिनाथ मंदिर में मुख्य प्रतिमा अभिषेक

पशुपतिनाथ मंदिर में पशुपतिनाथ का अभिषेक सुबह में 9:00 से 11:00 बजे तक चलता है। इस बीच के समय में मंदिर के सभी द्वार खोल दिए जाते हैं। पशुपतिनाथ के अभिषेक के लिए भक्तों को कुछ अमाउंट का पर्ची कटवाने पड़ते है। जैसे कि आपको मालूम भी हैं कि इस मंदिर के मुख्य प्रतिमा का पांच मुख हैं और हैरानी की बात यह है कि इस प्रतिमा के उसी तरफ वाले मुख के सामने अभिषेक किया जाता है, जिस प्रतिमा के मुख का जिक्र आपके द्वारा कटवाया गया पर्ची पर होता है।

दक्षिण भारत से आए पुजारी करते हैं भगवान पशुपतिनाथ की पूजा

भगवान शिव के पशुपति स्वरूप को समर्पित इस मंदिर में हर साल हजारों भक्त यहां दर्शन के लिए आते हैं। आपको जानकर हैरानी होगी कि नेपाल में स्थित इस मंदिर में सबसे अधिक संख्या भारतीय पुजारियों की है। यह परंपरा सदियों से चली आ रही है कि मंदिर में चार पुजारी और एक मुख्य पुजारी दक्षिण भारत के ब्राह्मणों में से रखे जाते हैं। पशुपतिनाथ मंदिर को 12 ज्योतिर्लिगों में से एक केदारनाथ का आधा भाग माना जाता है। जिसके कारण इस मंदिर की शक्ति और महत्व और अधिक बढ़ जाता है।

पशुपतिनाथ मंदिर में प्रवेश के नियम

इस मंदिर के परिसर में जाने के लिए चार भौगोलिक प्रवेश द्वार है, जो कि पूर्व, पश्चिम, उत्तर एवं दक्षिण चारों दिशाओं में हैं। अगर इस मंदिर के मुख्य द्वार की बात की जाए तो एक ही है जो कि पश्चिम दिशा में स्थित है। इस मंदिर में यही एक ऐसा द्वार हैं जो प्रतिदिन खोला जाता है, बाकी जो अन्य द्वार हैं उन्हें त्यौहार के दौरान बंद रखा जाता है। इस पशुपतिनाथ मंदिर के जो मुख्य द्वार हैं उस द्वार से मंदिर के प्रांगण में केवल नेपाली एवं हिंदू प्रवासी को ही अंदर प्रवेश करने की अनुमति दी जाती है, गैर-हिंदू प्रवासी को नहीं।

पशुपतिनाथ मंदिर में प्रवेश का समय

इस पशुपतिनाथ मंदिर का दरवाजा सुबह 4:00 बजे खोल दिया जाता है एवं शाम 7:00 बजे के बाद उन्हें बंद कर दिया जाता है। इसी बीच इस मंदिर में सभी एक्टिविटी को किया जाता है जैसे मूर्ति पूजा, बाल भोग, संध्या आरती आदि। अगर आप इस मंदिर में जाना चाहते हैं, तो जितना हो सके सुबह नहीं तो शाम के समय में जाए। अगर आप सुबह में जाते हैं तो मूर्ति पूजन एवं अगर आप शाम में जाते हैं तो आरती पूजन को आप आसानी से देख पाएंगे।

पशुपतिनाथ मंदिर जाने का अच्छा समय

आपको बता दें कि अगर आप यहां पर केवल घूमने के लिए जाना चाहते हैं तो आप साल के किसी भी मौसम में जा सकते हैं। लेकिन अगर आप इस मंदिर के चहल-पहल एवं रौनक को देखने एवं मूर्ति पूजन करने के मकसद से जाना चाहते हैं तो आप त्यौहार के दौरान जाए। अगर त्यौहार की बात की जाए तो जैसे बाल चतुर्थी, महाशिवरात्रि, तीज आदि।

पशुपतिनाथ मंदिर कैसे जाएं ?


अगर आप इस पशुपतिनाथ मंदिर में जाना चाहते हैं, तो आपको बता दें कि इस मंदिर के सबसे नजदीक हवाई अड्डा त्रिभुवन अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा है जो काठमांडू में स्थित है। यहां पहुंचने के उपरांत आप यहां से बस, टैक्सी, टेंपो वगैरह पकड़कर आसानी से जा सकते हैं। इस हवाई अड्डा से मंदिर तक जाने में आपका मैक्सिमम 30 से 45 मिनट का समय लग ही जाएगा।