भारत की 5 जगह जहां का मशहूर है दशहरा मेला

8 अक्टूबर को देशभर में विजयादशमी यानी दशहरे का पर्व बड़े धूमधाम से मनाया जा रहा है। बुराई पर अच्छाई की विजय के रूप में विजयदशमी पर रावण का पुतला दहन की परंपरा करीब करीब पूरे भारत वर्ष में निभाई जाती है। त्रेता युग में इस तिथि पर भगवान श्रीराम ने राक्षस रावण का वध किया था, इसलिए इस दिन रावण दहन और मेले का आयोजन किया जाता है। जानें देश की ऐसी पांच जगह जहां के दशहरे की रौनक दुनियाभर में प्रसिद्ध है।

कोटा: 125 वर्ष पूर्व हुई थी शुरुआत, 25 दिन तक चलता है उत्सव

दशहरे का आयोजन राजस्थान के कोटा शहर में 25 दिनों तक लगातार चलता है। महाराव भीमसिंह द्वितीय ने 125 वर्ष पूर्व इस मेले की शुरुआत की थी। यह परंपरा आज भी निभाई जा रही है। इस दिन यहां रावण, मेघनाद और कुंभकरण का पुतला दहन किया जाता है। इसके साथ ही भजन कीर्तन के साथ ही कई प्रकार की प्रतियोगिताएं भी आयोजित की जाती हैं। इसलिए यह मेला प्रसिद्ध मेलों में से एक है।

बस्तर: 600 वर्ष से मन रहा पर्व, रावण दहन नहीं होता

छत्तीसगढ़ में बस्तर जिले के दण्डकरण्य में भगवान राम अपने चौदह वर्ष के दौरान रहे थे। बस्तर के लोग 600 साल से यह त्योहार मनाते आ रहे हैं। इस जगह पर रावण का दहन नहीं किया जाता। इसी जगह के जगदलपुर में मां दंतेश्वरी मंदिर है, जहां पर हर वर्ष दशहरे पर वन क्षेत्र के हजारों आदि वासी आते हैं। यहां के आदि वासियों और राजाओं के बीच अच्छा मेल-जोल था। राजा पुरुषोत्तम ने यहां पर रथ चला ने की प्रथा शुरू की थी। इसी कारण से यहां पर रावण दहन नहीं बल्कि दशहरे के दिन रथ चलाया जाता है।

मैसूर: 409 वर्ष पुरानी परंपरा, दुल्हन की तरह सजता है मैसूर महल

मैसूर का दशहरा पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। यहां पर दशहरा का मेला नवरात्रि से ही प्रारंभ हो जाता है। दुनिया भर के लोग यहां इस मैले को देखने आते है। मैसूर में दशहरा का सबसे पहला मेला 1610 में आयोजित किया गया था। मैसूर का नाम महिषासुर के नाम पर रखा गया था। इस दिन मैसूर महल को एक दुल्हन की तरह से सजाया जाता है। गायन वादन के साथ शोभयात्रा निकाली जाती है।

कुल्लु : मूर्ति सिर पर रखकर जाते हैं लोग, 17वीं शताब्दी से मनाया जा रहा है त्योहार

हिमाचल के कुल्लु में दशहरे को अंतरराष्ट्रीय त्योहार घोषित किया गया है। हिमाचल प्रदेश में कुल्लु के ढाल पुर मैदान में मनाए जाने वाले दशहरे को भी दुनिया का प्रसिद्ध दशहरा माना जाता है। यहां पर लोग बड़ी तादाद में आते हैं। यहां दशहरे का त्योहार 17वीं शताब्दी से मनाया जा रहा है। यहां पर लोग अलग-अलग भगवानों की मूर्ति को सिर पर रखकर भगवान राम से मिलने के लिए जाते हैं। यह उत्सव यहां 7 दिन तक मनाया जाता है।

मदि‍केरी: यहां आते हैं लाखों लोग, 3 माह पहले से शुरू हो जाती है तैयारी

कर्नाटक के मदिकेरी शहर में मनाया जाने वाले दशहरा का पर्व 10 दिनों तक शहर के 4 बड़े अलग-अलग मंदिरों में आयोजित किया जाता है जिसकी तैयारी 3 महीने पहले से ही शुरू कर दी जाती है। दशहरे के दिन से एक विशेष उत्सव (मरियम्मा ) की शुरुआत होती है। मान्यता है कि इस शहर के लोगों को एक खास तरह की बीमारी ने घेर रखा था, जिसे दूर करने के लिए मदिकेरी के राजा ने देवी मरियम्मा को प्रसन्न करने के लिए इस उत्सव की शुरुआत की।