सैलानियों को जन्नत का अहसास करवाता हैं चकराता, ले टाइगर फाल देखने का मजा

देवभूमि उत्तराखंड की वादियों में मसूरी से आगे पहाडों की गोद में बसा चकराता सैलानियों के लिए जन्नत से कम नहीं है। समुद्रतल से 7000 फीट की ऊंचाई पर देहरादून से सौ किलोमीटर दूर चीड और देवदार पेडों के बीच चकराता बसा हुआ है। यहां के टाइगर फाल तक वैसे तो वाहन के जरिये दस मिनट में पहुंचा जा सकता है लेकिन अगर आपको कुदरत के नजारों का आनन्द लेना है तो जंगल में बने सर्पाकार रास्तों से होकर जाइये। चिडियों की चहचआहट, और पेड़ों के झुरमुट के नीचे मिलने वाली शीतलता किसी दूसरे लोक में विचरण का एहसास कराती है। टाइगर फाल की ऊंचाई लगभग सत्तर फीट है। कहतें हैं इस फाल की आवाज टाइगर की दहाड जैसी लगती है। चकराता के पास ही कानासर, रामताल भी घूमा जा सकता है।

कैसे पहुंचे

देहरादून से चकराता पहुंचने के दो रास्ते हैं पहला कैंपटी फैल यमुना पुल और लखवाड होते हुए तो दूसरा देहरादून से कालसी होते हुए।चकराता जाने से पहले मौसम के बारे में अच्छे से जानकारी ले लें,क्योंकि यहां मौसम बहुत ही अनिश्चितता लिए हुए होता है।यहां पर एक तरफ जहां बरसात से मार्ग क्षतिग्रस्त होने का डर बना रहता है वहीं दूसरी ओर बर्फबारी के कारण ठंड चरम सीमा पर पहुंच जाती है।चकराता घूमने के लिए अप्रैल से जून और सितम्बर से दिसम्बर का समय उपयुक्त रहता है।

चकराता से लगभग 13 किलोमाटर की दूरी पर देवबन है जो प्रवासी पक्षियों का निवास है।यहां विभिन्न प्रकार के पक्षियों को देखा जा सकता है।

बढेर केव्स

चकराता से लगभग तीस किलोमीटर पर यह गुफाएं स्टेलेक्टाइट व स्टलैग्माइट जानी जाती हैं। कहा जाता है की यह पांडवों द्वारा बनवाई है।

किमोना फाल्स

यह स्थान रेप्लिंग के लिए भी पर्यटकों में खासा लोकप्रिय है।

लाखामंडल मंदिर

चकराता से सौ किलोमीटर दूर यह मंदिर ऐतिहासिक एवं आध्यात्मिक महत्त्व रखता है। यहाँ शिवजी का मंदिर है की महाभारत काल में दुर्योधन ने पांडवों को यहीं पर लाख का महल बनाकर जलाने का षडयंत्र बनाया था।