मासूमों से भी अछूती नहीं है जानलेवा बीमारी कैंसर, देरी से बचें, इन लक्षणों से चलता है पता

बच्चों में कैंसर बहुत आम नहीं है। कुछ पश्चिमी देशों में 10 लाख बच्चों में 110 से 130 बच्चों में इसकी शिकायत मिली है। आबादी के आधार पर पर्याप्त आंकड़े नहीं हो पाने के कारण भारत में इस तरह के मामलों का पूरी तरह अनुमान लगाना संभव नहीं है। हालांकि एक अनुमान के मुताबिक 14 साल से कम उम्र के बच्चों में कैंसर के लगभग 40 से 50 हजार नए मामले हर साल सामने आते हैं। इनमें से बहुत से मामले डायग्नोस नहीं हो पाते।

समय पर पकड़ में आने पर कैंसर का इलाज संभव

आरजीसीआई में पेड्रियाट्रिक हेमाटोलॉजी और ऑन्कोलॉजी विशेषज्ञ के तौर पर कार्यरत गौरी कपूर के अनुसार भारत में स्वास्थ्य सेवा की सुविधाओं में बहुत विविधता है। यहां सभी आधुनिकतम सुविधाओं और प्रशिक्षित कर्मियों से लैस स्वास्थ्य केंद्र भी हैं और ऐसे स्वास्थ्य केंद्र भी हैं, जहां बच्चों में कैंसर की पहचान और इलाज को लेकर बुनियादी ढांचा भी नहीं है।

जैसा कि सभी विकासशील देशों में होता है, यहां भी देरी से स्वास्थ्य केंद्र पर पहुंचने, बीमारी को पकड़ने में देरी और उचित इलाज के लायक केंद्रों तक रेफर करने की सुस्त प्रक्रिया से इलाज की दर में कमी आती है। इस बात में कोई संदेह नहीं है कि इलाज का सर्वश्रेष्ठ मौका, पहला मौका ही होता है; पर्याप्त देखभाल के बाद भी अनावश्यक देरी, गलत परीक्षण, अधूरी सर्जरी या अपर्याप्त कीमोथेरेपी से इलाज पर नकारात्मक असर पड़ता है।

एक औसत सामान्य चिकित्सक या बाल चिकित्सक शायद ही किसी बच्चे में कैंसर की पहचान कर पाते हैं। बच्चों में कैंसर के लक्षणों से इस अनभिज्ञता की स्थिति को देखकर समझा जा सकता है कि इसकी पहचान देरी से क्यों होती है या फिर इसकी पहचान क्यों नहीं हो पाती है।


बच्चों में कैंसर की चेतावनी देने वाले लक्षण

बच्चों में कैंसर प्राय: दुर्लभ है, लेकिन इलाज के योग्य भी है। जरूरी है कि समय पर इसका पता लग जाए इसके लिए बेहद सतर्कता जरूरी है। बच्चों में होने वाले कैंसर में सबसे आम ल्यूकेमिया, लिंफोमा और मस्तिष्क या पेट में ट्यूमर हैं।

इनमें से कोई भी लक्षण दिखने पर बच्चे में कैंसर की आशंका होती है :

1. पीलापन और रक्तस्राव (जैसे चकत्ते, बेवजह चोट के निशान या मुंह या नाक से खून)

2. हड्डियों में दर्द
- किसी खास हिस्से में दर्द नहीं होता और दर्द के कारण बच्चा अक्सर रात को जाग जाता है
- बच्चा जो अचानक लंगड़ाने लगे या वजन उठाने में परेशानी हो या अचानक चलना छोड़ दे
- बच्चे में पीठ दर्द का हमेशा ध्यान रखें।

3. किसी जगह पर लिंफाडेनोपैथी का लक्षण दिखे, जो बना रहे और कारण स्पष्ट नहीं हो
- कांख/पेट व जांघ के बीच के हिस्से/गर्दन पर दो सेमी व्यास से बड़ी, बिना किसी क्रम के और सख्त गांठों को लेकर हमेशा सतर्क रहें। यदि एंटीबायोटिक देने पर भी दो हफ्ते में इनका आकार कम नहीं हो, तो बचाव जरूरी है।
- टीबी (TB, ) से संबंधित ऐसी गांठें जो इलाज के छह हफ्ते बाद भी बेअसर रहें
- सुप्राक्लेविकुलर (कंधे की हड्डी के ऊपर की ओर) हिस्से में होने वाली गांठ


4. अचानक उभरने वाले न्यूरो संबंधी लक्षण
- दो हफ्ते से ज्यादा समय से सिरदर्द
- सुबह-सुबह उल्टी होना
- चलने में लड़खड़ाहट (एटेक्सिया)
- सिर की नसों में लकवा

5. अचानक चर्बी चढ़ना। विशेषरूप से पेट, वृषण, सिर, गर्दन और हाथ-पैर पर


6. अकारण लगातार बुखार, उदासी और वजन गिरना
- किसी बात पर ध्यान नहीं लगना और एंटीबायोटिक्स से असर नहीं पड़ना

7. आंखों में बदलाव, सफेद परछाई दिखना, भेंगापन के शुरूआती लक्षण, आंखों में अचानक उभार (प्रोप्टोसिस), अचानक नजर कमजोर होने लगना (इनपुट-आईएएनएस)