कोरोनावायरस की शुरुआत जब से हुई हैं तब से इससे जुड़ी कई स्टडी की जा रही हैं जिसके कई परिणाम सामने आए हैं। शुरुआत से यही कहा जा रहा हैं कि यह सामान्यत: हवा के माध्यम से नहीं फैलता है और किसी संक्रमित व्यक्ति, वस्तु या खांसने व छींकने के दौरान निकले ड्रॉपलेट्स से फैल सकता है। लेकिन हाल ही में डेली मेल में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार नेब्रास्का यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने यह पाया हैं कि यह वायरस हवा में भी घूमता हुआ मौजूद हो सकता है। इसमें इस बात की पुष्टि हुई है कि मरीज के कमरे से जाने के बाद भी कमरे की हवा में वायरस की मौजूदगी हो सकती है। शोधकर्ताओं का कहना है कि अस्पताल के जिस वार्ड में या कमरे में कोरोना के मरीज रह रहे हैं, उसके आसपास, कॉरिडोर वगैरह की हवा में भी वायरस हो सकते हैं। इस स्टडी में बताया गया है कि कोरोना संक्रमितों का इलाज कर रहे डॉक्टर और अन्य स्वास्थ्यकर्मियों को वायरस से बचने के लिए प्रोटेक्टिव शूट, मास्क, दस्ताने आदि कितने जरूरी हैं।
नेब्रास्का यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं के मुताबिक, इस स्टडी में उन्होंने 11 मरीजों के कमरों को सैंपल के तौर पर लिया था और पाया कि इन कमरों के भीतर और बाहर की हवा में कोरोना वायरस मौजूद हैं। इस स्टडी को लीड करने वाले संक्रमित रोग विशेषज्ञ और जेम्स लॉलर का कहना था कि हमें जो रिजल्ट मिला है, वह हमारे संदेह की पुष्टि करते हैं। जेम्स लॉलर का कहना था कि कोरोना वायरस से संक्रमित मरीजों के कमरे में निगेटिव एयरफ्लो होना जरूरी है। भले ही मरीजों की संख्या कितनी ही अधिक ही क्यों न हो, यह जरूरी है। हालांकि चिकित्सा विशेषज्ञ फिलहाल कोई ऐसा आंकड़ा नहीं दे पाए हैं कि अबतक संक्रमित लोगों में से कितने मरीज हवा, ड्रॉपलेट्स, संक्रमित सतह या फिर संक्रमित के संपर्क में आने से इस वायरस की चपेट में आए।
ऐसे समय में जब कोरोना का संक्रमण हर दिन बढ़ता जा रहा है, अस्पतालों में मरीजों का इलाज कर रहे चिकित्सक और अन्य स्वास्थ्यकर्मी पीपीई यानी पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट की कमी से जूझ रहे हैं। दुनियाभर में ऐसे कई मामले सामने आए हैं, जिनमें कोरोना मरीजों का इलाज करने वाले डॉक्टर भी कोरोना से संक्रमित हो गए हैं। ऐसे में उनके लिए पीपीई बहुत ही जरूरी है। इससे पहले भी कुछ स्टडी में ये बात सामने आई थी कि कोरोना वायरस सिर्फ मरीज से ही नहीं फैलते, बल्कि ये कई जगहों की सतह पर भी मौजूद हो सकते हैं। बीबीसी की रिपोर्ट में भी विशेषज्ञ ये बता चुके हैं कि मेटल या फिर प्लास्टिक की सतह पर कोरोना वायरस दो से तीन दिनों तक रह सकता है और ऐसे में इन सतहों को छूने पर भी लोग संक्रमित हो सकते हैं।