कोई कहता है चिंता खाए जा रही है, तो कोई करता डिप्रेशन की शिकायत, यहां जानें इन दोनों का अंतर

शहरों में जीवन शैली का मुख्य हिस्सा बन चुकी है दौड़ती-भागती जिंदगी। इस चक्कर में इंसान अपना सुकून खो देता है। दिन-रात कमाने के बारे में सोचना और जिंदगी का खुलकर मजा नहीं लेना कई तरह की परेशानियां पैदा करता है। इन दिनों लोग काफी तनावपूर्ण जिंदगी जी रहे हैं।

चिंता क्या है?
यह कोई बीमारी नहीं है। यह एक भावना है, जिसमें आप खुद को मानसिक और भावनात्मक रूप से बहुत ही दबा हुआ महसूस करते हैं, यह किसी भी स्थिति या कारण की वजह से हो सकता है। लोग कई बार उम्मीदों के पूरे न होने या किसी से कोई अपेक्षा पूरी न होने या किसी अपने से दूर जाने के कारण भी लोग चिंता करने लगते हैं। आज की रोजमर्रा की जिंदगी में तनाव, टेंशन, चिंता, फ्रिक जैसें शब्द आम हो गए हैं क्योंकि, आजकल हर कोई इन समस्याओं से घिरा हुआ खुद को पाता है।

डिप्रेशन क्या है?

यह एक ऐसा तनाव है, जिससे व्यक्ति लंबे समय से ग्रस्त होता है। इसमें व्यक्ति खुद को बहुत ही डिप्रेस्ड और दबा हुआ महसूस करता है। यह किसी भी पूर्व समय में घटित घटनाओं की वजह से होता है। चिंता और अवसाद (डिप्रेशन) दोनों ही मानसिक पीड़ा है और इनके लक्षण भी लगभग एक जैसे होते हैं। हालांकि, यह दोनों ही एक दूसरे से बहुत अलग हैं।

चिंता और डिप्रेशन में अंतर क्या है?

# चिंता या तनाव आपके जीवन में चल रहे वर्तमान कारणों से संबंधित होती हैं लेकिन, डिप्रेशन किसी भी ऐसे कारण से हो सकती है, जो पूर्व समय में घटित हुआ हो।

# चिंता कुछ समय में ठीक हो सकती है लेकिन, डिप्रेशन बहुत ही लंबे समय तक रहता है, जैसे कि एक साल या उससे भी ज्यादा।

# यदि चिंता का इलाज नहीं किया जाता, तो व्यक्ति तनावग्रस्त और चिंता विकार जैसी दिक्कतों का सामना करता है। लेकिन, यदि डिप्रेशन का इलाज नहीं किया गया, तो व्यक्ति के भीतर खुद को हानि पहुंचाने जैसे विचार लाता है।

# चिंता या तनाव के कारण एड्रेनालाइन का स्तर बढ़ जाता है लेकिन, अवसाद या डिप्रेशन में मस्तिष्क में थकान बढ़ जाती है।

# चिंता यदि कम हो, तो वो लाभदायक भी साबित हो सकती है लेकिन, डिप्रेशन से सिर्फ नुकसान ही होता है।

# चिंता के कारण स्पष्ट होते हैं लेकिन, अवसाद का कोई भी कारण हो सकता है।

# चिंता को समाज सहज नजरिए से देखता है लेकिन, डिप्रेशन को आज भी सामाजिक रूप से अपमानजनक माना जाता है।लगातार चिंता करते रहने से इंसान एंजाइटी का भी शिकार हो जाता है। एंजाइटी का शिकार हो चुका इंसान बहुत ज्यादा चिंता करता है।अगर कोई शख्स कम से कम 6 महीनों के समय में अधिकांश दिन, या तो अपने स्वास्थ्य, काम, सामाजिक बातचीत, रोजमर्रा की परिस्थितियों के बारे हद से ज्यादा सोचता है और परेशान रहता है तो यह एक बहुत ही गंभीर लक्षण है कि वो चिंताग्रस्त है।

# लगातार चिंता करते रहने से इंसान बेचैनी महसूस करता है और साथ-साथ लोगों से मिलना-जुलना कर देता है, जिससे उसकी सोशल लाइफ पर खासा प्रभाव पड़ता है। चिंता और डिप्रेशन दोनों ही स्थिति में लोगों की सोशल लाइफ इफेक्ट होती है।

# अत्यधिक चिंता करने से इंसान पूरा दिन थका हुआ महसूस करता है। चिंता और डिप्रेशन की स्थिति में इंसान में यह लक्षण अलग हो सकता है। डिप्रेशन की स्थिति में शख्स खुद ही कुछ करना नहीं चाहता।

# चिंता के कारण लोगों को किसी काम को करते समय फोकस करने में दिक्कत हो सकती है। चिंता और डिप्रेशन दोनों में ही इंसान को इस परेशानी का सामना करना पड़ता है।

#चिंता और डिप्रेशन के कारण इंसान काफी चिड़चिड़ा हो जाता है।

#चिंता के कारण लोगों को मशल्स में तनाव रह सकता है।

#चिंता और डिप्रेशन का शिकार होने पर लोग अपनी भावनाओं को कंट्रोल नहीं कर पाते हैं और इमोशनली काफी कमजोर हो जाते हैं।

#चिंता और डिप्रेशन का शिकार इंसान पूरी नींद भी नहीं ले पाता है।