कोरोना के बिना लक्षण वाले, कम लक्षण वाले और औसत लक्षण वालों के लिए मलेरिया के इलाज के लिए 1980 में बनाई गई दवा आयुष-64 को कारगर पाया गया है। आयुष मंत्रालय ने गुरुवार को यह जानकारी दी। पुणे स्थित सेंटर फॉर र्यूमेटिक डिजीज के डायरेक्टर अरविंद चोपड़ा ने वर्चुअल प्रेस कांफ्रेंस में बताया कि लखनऊ की किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (केजीएमयू), वर्धा का दत्ता मेघ इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज और मुंबई के बीएमसी कोविड सेंटर दवा का परीक्षण किया गया। हर केंद्र में 70 मरीजों पर परीक्षण हुआ।
आयुष मंत्रालय और सीएसआइआर गठजोड़ के मानद चीफ क्लीनिकल को-ऑर्डिनेटर चोपड़ा ने बताया कि स्टैंडर्ड ऑफ केयर (एसओसी) यानी मानक इलाज के साथ सहयोगी के रूप में आयुष-64 के इस्तेमाल से उल्लेखनीय सुधार दिखा। अकेले एसओसी की तुलना में इस दवा के इस्तेमाल से मरीजों को अस्पताल में कम दिन भर्ती रहने की जरूरत पड़ी।
उन्होंने कहा कि सामान्य स्वास्थ्य, थकान, बेचैनी, तनाव, भूख, नींद आदि पर भी इस दवा के सकारात्मक लाभ दिखे हैं। दवा के परीक्षण से इस बात के पर्याप्त प्रमाण मिले हैं कि इसका इस्तेमाल कोरोना के कम से सामान्य मामलों तक में एसओसी के साथ किया जा सकता है। गंभीर मरीजों और आक्सीजन की जरूरत वाले मरीजों पर अभी इसके असर को लेकर परीक्षण की जरूरत है। चोपड़ा ने बताया कि आयुष-64 (Ayush 64) एक आयुर्वेदिक दवा है जिसे 1980 में मलेरिया के इलाज के लिए तैयार किया गया था। अब इसे कोरोना के लिए परखा जा रहा है।